पश्चिम चंपारण के बेतिया में कई ऐतिहासिक तालाबों के अस्तित्व पर संकट
पश्चिम चंपारण के जिला मुख्यालय बेतिया में ऐतिहासिक तालाबेां की भरमार है। लेकिन इनमें अधिकांश अतिक्रमण के शिकार हैं। इन पोखरों में नाली का गंदा पानी बहाया जा रहा है और कूड़ा कर्कट भी फेंका जा रहा है। इस तरह इनके अस्तित्व पर संकट है।
पश्चिम चंपारण (बेतिया), जागरण संवाददाता। जल स्रोतों में हो रहे ह्रास एवं भू-जल स्तर में गिरावट जीव जगत के लिए बहुत बड़ी समस्या बन गई है। भविष्य में यह और अधिक भयावह होने जा रही है। यही कारण है कि विशेषज्ञों के लिए ङ्क्षचता का विषय बन गया है। बढ़ती जनसंख्या एवं प्राकृतिक संसाधनों के निरंतर दोहन से यह समस्या बलवती हो रही है, लेकिन इससे निजात पाने के लिए अभी से ही कारगर पहल की हर स्तर से दरकार है। प्रभावकारी पहल से लोगों में जागरूकता लाना सबसे अहम मुद्दा माना जा रहा है। शासन स्तर पर भी इसमें विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
जिला मुख्यालय बेतिया में अधिकांश पोखरे बेतिया राज के अधीन है। इसमें अधिकांश पोखरे ऐतिहासिक है। जिसका संबंध बेतिया राजशाही से रहा है। इनमें पिउनीबाग का रानीघाट पोखरा, हरिवाटिका पोखरा, दुर्गाबाग पोखरा, सागर पोखरा महत्वपूर्ण है। हरिवाटिका, रानी घाट एवं अन्य पोखरा पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा है। अतिक्रमण के शिकार होने के अलावा इन पोखरों में नाली का गंदा पानी बहाया जा रहा है और कूड़ा कर्कट भी फेंका जा रहा है।
जल इतना दूषित हो गया है कि लोग स्नान करने से तौबा कर लेते हैं। पोखरों के लगभग सभी भाग में अतिक्रमण है। इसके कारण इन ऐतिहासिक पोखरों का सौन्दर्यीकरण भी समाप्त हो चला है। बदबू के कारण लोग यहां बैठना या टहलना भी पसंद नहीं करते हैं। ऐसे में इन ऐतिहासिक पोखरों पर संकट गहराने लगा है। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि इन पोखरों के जीर्णोद्धार के लिए बेतिया राज की कोई योजना नहीं है।बेतिया राज के जमाने में निर्मित ऐतिहासिक दुर्गा बाग पोखरा का खास्ता हाल है। गर्मी में यह पोखरा सूख जाता है। बारिश के पानी के कारण थोड़ा बहुत जल संचय हो जाता है, लेकिन इस ऐतिहासिक पोखरे का अब अस्तित्व दाव पर लग गया है। किसी जमाने में यह पोखरा काफी गहरा था। इस पोखरे से स्नान करने के बाद लोग दुर्गा बाग मंदिर में पूजा पाठ करते थे। शहर में होने वाले यज्ञ के दौरान कलश यात्रा निकालने के क्रम में महिलाएं इस पवित्र पोखरा से जल भरा करती थी, लेकिन स्थिति अब बदल चुकी है। पोखरे का अस्तित्व संकट में है। जानकार बताते हैं कि इस पोखरे के अस्तित्व को बचाने के लिए इसकी गहरी खुदाई भी करनी होगी। तटबंधों को सुरक्षित करना होगा। इन तटबंधों पर हरे -भरे पेड़ लगाने होंगे। भविष्य में इस पोखरे को बचाने के लिए बेतिया राज की क्या भूमिका होगी, यह तो समय बताएगा। बहरहाल पोखरे का अस्तित्व संकट में है।
स्थानीय निवासी सन्नी कुमार का कहना है कि जल संकट एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है। ऐसे में इस गंभीर समस्या पर सबको ध्यान देने की जरूरत है। तालाबों को अतिक्रमण और प्रदूषण रहित करना होगा।
वहीं बेतिया राज के प्रबंधक विनोद कुमार ङ्क्षसह कहते हैं कि बेतिया राज के पोखरों से अतिक्रमण हटाने के लिए इसकी रिपोर्ट लेकर कार्रवाई की जाएगी। वर्तमान में बेतिया राज के पास पोखरों के जीर्णोद्धार के लिए कोई योजना नहीं है। यदि कोई एजेंसी या प्रशासनिक स्तर पर जीर्णोद्धार किया जाता है, तो इसके लिए संबंधित एजेंसी को राजस्व पर्षद से अनुमति लेनी होगी। अनुमति राज प्रबंधन के स्तर से नहीं मिलेगी।