Saurath Sabha: मैथिल ब्राह्मणों की विश्व प्रसिद्ध सौराठ सभा पर कोरोना की साया, कभी जुटती थी लाखों की भीड़ यहां
Saurath Sabha विश्वप्रसिद्ध सौराठ सभा कभी मैथिल ब्राह्मणों के लिए वरदान थी। इच्छुक वर व वधू के घरवाले जुटते थे लेकिन यह भी कोरोना संकट में आ गई है। पढ़ें महत्वपूर्ण जानकारी।
मधुबनी, प्रेम शंकर मिश्रा। विश्वप्रसिद्ध सौराठ सभा कभी मैथिल ब्राह्मणों के लिए वरदान थी। शादी के लिए इच्छुक वर व वधू के घरवाले जुटते थे। आषाढ़ में लगने वाली इस सभा में देश-विदेश से बड़ी संख्या मेंं ब्राह्मण पहुंचते थे। यहीं वैवाहिक संबंध तय होते थे। बिना तामझाम और दहेज के शादी होती थी, लेकिन पिछले कई वर्षों से अस्तित्व के लिए जूझ रही सभा पर इस बार कोरोना का भी साया पड़ गया है।
बारिश और सन्नाटे के बीच हुई शुरुआत
रहिका प्रखंड में शुक्रवार को सौराठ सभा की शुरुआत बारिश और सन्नाटे के बीच हुई। देर शाम पंजीकारों का वास किया गया। 11 जून तक चलने वाली इस सभा में शनिवार से लोगों के पहुंचने की संभावना है। वर्ष 2016 और 2017 में सौराठ सभा में एक-एक हजार से अधिक लोग आए थे। 400-400 सिद्धांत निर्गत किए गए थे। वर्ष 2018 में विशेष अभियान चला तो संख्या बढ़ी। दो हजार लोग आए, लेकिन सिद्धांत 400 ही लिखे गए। वर्ष 2019 में करीब 800 लोग आए। वहीं 375 सिद्धांत निर्गत किए गए। इस साल यह संख्या और भी कम हो सकती है। सिद्धांत में वर-वधू के वंश वृक्षों का मिलान किया जाता था। सात पीढिय़ों तक देखा जाता है कि गोत्र और मूल नहीं मिले। तब शादी की अनुमति दी जाती है।
700 वर्ष से चल रही परंपरा
ऐतिहासिक प्रमाण के अनुसार इस सभा की शुरुआत 1310 ई. में हुई थी। तब पंजी प्रथा का प्रचलन नहीं था। लोग छिटपुट रूप से वंश परिचय रखते थे। वैवाहिक निर्णय स्मरण के आधार पर करते थे। बाद में राजा हरिङ्क्षसह देव के समय में पंजी प्रबंध बना। पंजीकार वंश परिचय रखने लगे। यहां लोगों के रहने के लिए कमरे बनाए गए। सरोवर का निर्माण हुआ। सौराठ सभा की ख्याति बढ़ी। देश के विभिन्न भागों से मैथिल ब्राह्मण लग्न के समय आने लगे। कालांतर में यहां आने वालों की संख्या एक लाख से ऊपर तक पहुंच गई।
विगत दो वर्षों से आ रही गिरावट
विगत दो दशक से यह ह्रास की ओर है। गत पांच वर्षों से तो यह अस्मिता की लड़ाई लड़ रही है। यह स्थान केवल सिद्धांत स्थल के रूप में रह गया है। यहां पोखरौनी, सौराठ के पंजीकार पंजी लेकर बैठते हैं। अब सामान्य दिनों में ये घरों पर ही सिद्धांत लिखते हैं।
हर गांव के लिए तय होता था अलग स्थान
सभास्थल में सभी गांवों का अलग-अलग स्थान तय रहता था। वर अपने अभिभावक के साथ लाल धोती व पाग पहनकर बैठते थे। कुल और गोत्र के आधार पर विवाह तय होता था। कोई आडंबर नहीं। चट मंगनी, पट ब्याह। पंजीकार विश्वमोहन चंद्र मिश्र कहते हैं, उस समय कुल का महत्व था। पैसों का नहीं, लेकिन धीरे-धीरे दहेज का चलन शुरू हुआ। इस कारण उत्तम कुल की गरीब कन्या के विवाह में बाधा आने लगी। इससे एक गलत परंपरा की शुरुआत हुई। सभा से पसंदीदा लड़कों का जबरन विवाह कराया जाने लगा। इस कारण भी वर वाले आने से कतराने लगे।
परंपरा बचाने का नहीं हो रहा प्रयास
सभा अवधि में कुछ जनप्रतिनिधि व समाजसेवी जरूर दिख जाते हैं। वे सौराठ सभा को पुनस्र्थापित करने की बात करते हैं। सौराठ सभा विकास समिति के पूर्व अध्यक्ष सतीश चंद्र मिश्र कहते हैं कि सरकार व प्रशासन के स्तर से योजना बनेगी, तभी इसका उद्धार हो सकता है।
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