कक्षा नौ के बच्चों को 20 तक का पहाड़ा याद नहीं, सामान्य ज्ञान की भी जानकारी नहीं
उत्क्रमित उच विद्यालय बलुआ के नौवीं कक्षा के बचों को सामान्य जानकारी नहीं छुट्टी का आवेदन लिखने में भी फिसड्डी। शौचालय की सुविधा नहीं होने से खुले में शौच की मजबूरी छात्राओं ने अधिकारियों से लगाई गुहार।
बगहा। तमाम सरकारी कोशिशों के बीच प्रखंड के थरुहट क्षेत्र के विद्यालयों की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है। सरकारी विद्यालयों में शैक्षिक गुणवत्ता बढ़ाने को लेकर सरकार के दावे भले ही बड़े-बड़े हों, लेकिन सच्चाई ये है कि खुद विभाग की अनदेखी के चलते स्कूली शिक्षा का ढांचा चरमराता दिख रहा है। इसका कारण, स्कूलों में शिक्षकों की कमी व संसाधनों का अभाव है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा का हाल सभी को पता है। कोरोना के चलते वैसे ही कई महीने तक बंद रहने के बाद अगस्त से स्कूल खुले। पढ़ाई पटरी पर है। अच्छी शिक्षा का दावा भी है, लेकिन हकीकत यह है कि छठी से नौवीं तक के विद्यार्थियों को बेसिक ज्ञान भी नहीं है। करीब आठ सौ बच्चों को पढ़ाने के लिए मात्र 10 शिक्षकों की नियुक्ति : मंगलवार को दैनिक जागरण संवाददाता ने बगहा दो प्रखंड के राजकीय उत्क्रमित मध्य सह उच्च विद्यालय, बलुआ का जायजा लिया। दोपहर के 01:30 बज रहे हैं और विद्यालय में मध्यांतर खत्म हो चुका है। घंटी बजने के बाद सभी बच्चे अपनी कक्षा में जा रहे हैं। जबकि पहली से पांचवीं कक्षा तक के बच्चे पेड़ के नीचे बैठ पठन पाठन में लग जाते हैं। यहां हमने विद्यालय में बच्चों व शिक्षकों की स्थिति के बारे में जाना। प्रधान शिक्षक की अनुपस्थिति में सहायक शिक्षक शत्रुध्न पाठक इस समय प्रभार में हैं। श्री पाठक ने बताया कि विद्यालय में कुल 770 बच्चे नामांकित हैं। जिनमें से मंगलवार को मात्र 412 बच्चे उपस्थित हुए हैं। जबकि इन्हें पढ़ाने के लिए मात्र 11 शिक्षकों की नियुक्ति की गई है। जिनमें से एक शिक्षक का डिप्टेशन अमवां उच्च विद्यालय में हो चुका है। शेष 10 में से 02 शिक्षक चुनावी ड्यूटी में लगे हैं और 02 शिक्षक आकस्मिक अवकाश पर पाए गए। बाकी के मात्र छह शिक्षक विद्यालय में उपस्थित मिलें। ऐसे में आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि मात्र छह शिक्षकों के सहारे कैसे करीब सवा चार सौ बच्चों की पढ़ाई हो रही होगी। आठवीं कक्षा के बच्चों को नहीं याद पहाड़ा : यहां हमने एक एक कर कई वर्ग कक्षों का जायजा लिया। जहां बच्चों में मिली जुली प्रतिक्रिया मिली। सबसे पहले हमने छठी कक्षा का रुख किया। जहां एक एक कर कई बच्चों से सवाल किए इनमें से अधिकतर बच्चों को 20 तक का पहाड़ा भी याद नहीं था। वहीं दूसरी ओर जब आठवीं कक्षा का जायजा लिया तो यहां एक अधिकतर बच्चों को अंग्रेजी रुलाती नजर आई तो हिदी में भी कमजोर दिखें। जब बात गणित की आई तो इस ठंड में भी पसीने छूटते दिखे। यहां कई छात्र-छात्राओं को तो पहाड़ा तक नहीं याद दिखा। आठवीं कक्षा की एक छात्रा तो छह का पहाड़ा तक नहीं सुना पाई। जबकि कई बच्चे आठ, साइंस व प्रार्थना की अंग्रेजी तक बताने में असमर्थ दिखें। नौवीं कक्षा के छात्र के अनुसार बिहार के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी : इधर जब उच्च कक्षा के बच्चों से मुखातिब होते हुए काफी आश्चर्य हुआ कि यहां नौवीं कक्षा के बच्चों को बेसिक जानकारी तक नहीं दिखी। यहां हमने एक बच्चे से पूछा कि बिहार के मुख्यमंत्री कौन हैं तो उसने नरेंद्र मोदी को ही अपना सीएम बना डाला। आश्चर्य तो तब हुआ जब एक अन्य छात्रा ने भी यहीं जवाब दिया। वो तो भला हो एक अन्य बच्चे का जिसने बताया कि नरेंद्र मोदी तो देश के प्रधानमंत्री हैं, जबकि नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री। जबकि कई बच्चों को साइंस की अंग्रेजी लिखनी नहीं आई। वहीं इनमें से 90 फीसद बच्चे तो छुट्टी का आवेदन भी नहीं लिख पाए। कुल मिला जुलाकर यहां बच्चों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को लेकर कुछ ज्यादा सक्रियता नजर नहीं आई। बच्चों के इस रवैये से शिक्षक भी परेशान नजर आए। हालांकि आठवीं व नौंवीं कक्षा के गिनती के कुछ बच्चों के उत्तर काफी बेहतर मिले। विद्यालय में बिजली कि सुविधा उपलब्ध, लेकिन प्रतिदिन नहीं होता स्मार्ट क्लास का संचालन : विद्यालय में प्रतिदिन खेल की घंटी तो बनती है, लेकिन खेल की सामग्री की व्यवस्था नहीं होने की वजह से बच्चे आपस में ही खेलकूद का प्रबंध कर लेते हैं। वहीं दूसरी ओर विद्यालय में बिजली की सुविधा तो है, लेकिन कंप्यूटर की शिक्षा मानो एक हसीन सपने से ज्यादा कुछ नहीं। यहां कंप्यूटर शिक्षक के अभाव में कंप्यूटर ऑफिस कक्ष में शोभा की वस्तु बनी हुई है। जबकि स्मार्ट क्लास की बात करें तो बच्चों के अनुसार दसवीं कक्षा के बच्चों को कभी-कभी इसकी पढ़ाई होती है। स्मार्ट क्लास का संचालन भी महीने एक या दो बार हो जाए वहीं बड़ी बात है। अभी दसवीं कक्षा के बच्चे सेंटप हो चुके हैं। जिससे इसकी पढ़ाई बंद है। शौचालय के अभाव में छात्र-छात्राओं को खुले में शौच की मजबूरी : विद्यालय की सबसे बड़ी समस्या खुले में शौच की मजबूरी है। यहां दो-दो जगह शौचालय के भवन तो दिखेंगे, लेकिन वह काफी जर्जर अवस्था में जीर्ण शीर्ण पड़े हुए हैं। शौचालय की स्थिति सही नहीं होने की वजह से यहां अध्ययनरत छात्र-छात्राओं एवं शिक्षकों को खुले में शौच के लिए विवश होना पड़ता है। छात्राओं ने बताया कि बीते कई वर्षों से विद्यालय का शौचालय काम नहीं करता है। ना विद्यालय प्रबंधन और ना ही विभाग के द्वारा नए शौचालय का निर्माण कराया जा रहा है। जिसकी वजह से हम छात्राओं को शर्मसार होकर खुले में शौच को मजबूर होना पड़ता है। विभागीय नाकामी को कोसते हुए छात्र-छात्राओं ने अधिकारियों से गुहार लगाई है कि शीघ्र ही विद्यालय में शौचालय का निर्माण कराया जाए। ताकि खुले में शौच से इन्हें मुक्ति मिल सके। राजकीय उत्क्रमित मध्य सह उच्च विद्यालय, बलुआ, बगहा दो के शिक्षक व विद्यालय प्रभारी शत्रुघ्न पाठक ने बताया कि कम शिक्षकों व कम संसाधन के बावजूद बच्चों को बेहतर शिक्षा देने की पूरी कोशिश की जाती है। कुछ नए बच्चे हैं जिन्हें पटरी पर लाने में थोड़ा समय लगेगा। हालांकि बच्चों को स्मार्ट क्लास के जरिये भी बेहतर शिक्षा देने का प्रयास किया जाता है। जबकि शौचालय की समस्या से हर रोज बच्चों व शिक्षकों को परेशानी झेलनी पड़ती है।