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मिथिला की बेटी चित्रलेखा ने महिला अध्ययन को समर्पित किया जीवन, शिक्षा को बनाया अपना हथियार

महिला अध्ययन में एम फिल के लिए वर्धा स्थित विवि से पा चुकी गोल्ड मेडल। आइसीएसएसआर से फेलोशिप पाकर दलित महिलाओं के सांस्कृतिक प्रतिरोध पर कर रही शोध।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 08 Apr 2019 09:23 AM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2019 09:23 AM (IST)
मिथिला की बेटी चित्रलेखा ने महिला अध्ययन को समर्पित किया जीवन, शिक्षा को बनाया अपना हथियार
मिथिला की बेटी चित्रलेखा ने महिला अध्ययन को समर्पित किया जीवन, शिक्षा को बनाया अपना हथियार

दरभंगा, जेएनएन। मिथिलांचल की बेटी डॉ. चित्रलेखा अंशु ने अपना जीवन महिला अध्ययन को समर्पित कर रखा है। इनकी मंशा है कि मिथिला जैसे पिछड़े क्षेत्र में, जहां महिलाओं की स्थिति आज भी बहुत बेहतर नहीं मानी जाती, महिला अध्ययन के फील्ड में काम किया जाए। वे चाहती हैं कि यहां के छात्र, विशेषकर छात्राएं इस विधा में आगे आएं। इस क्षेत्र में बेहतर करने के लिए डॉ. चित्रलेखा ने शिक्षा को ही अपना हथियार बनाने का निर्णय लिया। महाराष्ट्र के वर्धा स्थित प्रतिष्ठित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय से महिला अध्ययन में स्नातकोत्तर करने के बाद यहीं से उन्होंने पीएचडी भी की।

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   वर्ष 2018 के अक्टूबर माह में शारदीय नवरात्रा के दौरान ही डॉ. चित्रलेखा को यहां महिला अध्ययन में एम.फिल के लिए गोल्ड मेडल भी मिल चुका है। गोवा की राज्यपाल मृदुला सिंहा के हाथों गोल्ड पाकर डॉ. चित्रलेखा के हौसलों को और बल मिला। फिलहाल वे नई दिल्ली में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय खुला विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ जेंडर एंड डेवलपमेंट के अंतर्गत रिसर्च कर रही है। मिथिला की दलित महिलाओं के संदर्भ में मैथिली लोकगीतों के द्वारा सांस्कृतिक प्रतिरोध पर इस रिसर्च के लिए डॉ. चित्रलेखा को इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस एंड रिसर्च (आइसीएसएसआर) से दो साल का पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप भी मिला है।

   इस फेलोशिप के लिए राष्ट्रीय स्तर पर इनका चयन किया गया। मूल रूप से मधुबनी के शिविपट्टी निवासी अमरनाथ झा व आशा देवी की सबसे बड़ी संतान डॉ. चित्रलेखा अंशु ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दरभंगा से ही पूरी की। फेलोशिप मिलने तक डॉ. चित्रलेखा ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के महिला अध्ययन केंद्र में बतौर प्रशिक्षिका कार्य कर रही थी। कहती हैं कि आज नारी सशक्तीकरण पर काफी जोर दिया जा रहा है, लेकिन वास्तविकता में अभी भी खासकर ग्रामीण क्षेत्र व दलित समाज में महिलाओं की स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती।

   इस दिशा में काफी कार्य करने की जरूरत है। डॉ. चित्रलेखा ने कहा कि महिलाओं के विकास के लिए सबसे पहले महिलाओं को ही आगे आना होगा। कहा कि दलित महिलाओं के पास अभी भी अपना विरोध जताने का कोई हथियार नहीं है। ऐसे में ये महिलाएं लोकगीतों के माध्यम से ही अपनी पीड़ा को बयां करती आईं हैं। जब तक महिलाएं अपने अधिकार के लिए एकजुट नहीं होंगी, पुरूष प्रधान समाज की सोच को चुनौती देना एवं उसमें बदलाव करना उतना आसान नहीं होगा।

   पहले गोल्ड मेडल, और फिर रिसर्च के लिए फेलोशिप पाकर डॉ. चित्रलेखा ने साबित कर दिया कि सफलता किसी क्षेत्र का विशेषाधिकार नहीं होती। अगर आपमें सच्ची लगन व जुनून है तो आप कहीं भी सफलता के झंडे गाड़ सकते हैं।


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