पश्चिम चंपारण में कृत्रिम अंगों के सहारे दिव्यांग बच्चे भर रहे सपनों की उड़ान
West champaran News दिव्यांगता को हरा बच्चे लिख रहे सफलता की नई इबारत 6 से 18 वर्ष के दिव्यांग बच्चों के लिए यहां कैलिपर आर्थोसिस (पैर का सहायक अंग) व स्पाइन ब्रेस का निर्माण किया जाता है ।
बेतिया, पचं {संदेश तिवारी}। जिला मुख्यालय से करीब तीन किमी दूर स्थित उत्क्रमित उच्च विद्यालय बरवत पसराईन में उन बच्चों के जीवन में नई ऊर्जा भरने का काम किया जा रहा है, जो दिव्यांग होने की वजह से निराशा और हताशा में डूब चुके हैं। बिहार के छह जिलों के दिव्यांग बच्चे यहां बनाए जा रहे कृत्रिम अंगों के सहारे न केवल सपनों की नई उड़ान भर रहे हैं बल्कि सफलता की नई इबारत भी लिख रहे हैं।
बिहार शिक्षा परियोजना द्वारा संचालित आर्टिफिशियल लिंब सेंटर में समग्र शिक्षा अभियान के समावेशी शिक्षा कार्यक्रम के तहत पूर्वी एवं पश्चिमी चंपारण के साथ साथ शिवहर, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर और मधुवनी के दिव्यांग बच्चों को कृत्रिम अंगों के सहारे जीवन में आगे बढऩे की प्रेरणा दी जा रही है। बीते दो सालों में 295 बच्चों को सहायक उपकरण देकर उन्हें सम्मानपूर्वक जीवन जीने योग्य बनाया जा चुका है। छह से 18 आयु वर्ग के दिव्यांग बच्चों के लिए यहां कैलिपर (टांगों को जोडऩे वाला अंग), आर्थोसिस (पैर का सहायक अंग) व स्पाइन ब्रेस (हड्डी स्थिरीकरण) का निर्माण किया जाता है। प्रोथेटिक एंड आर्थोटिक इंजीनियर संतोष कुमार श्रीवास्तव, नरेंद्र कुमार, राजेश कुमार, भास्कर व रामचंद्र राम की पांच सदस्यीय टीम द्वारा सहायक उपकरण का निर्माण किया जाता है।
सैकड़ों बच्चे ले चुके हैं लाभ
13 जुलाई, 2014 को तत्कालीन राज्य परियोजना निदेशक राहुल ङ्क्षसह ने इस ङ्क्षलब सेंटर का शुभारंभ किया था। वित्त वर्ष 2020-21 में 179 एवं 2021-22 में अब तक 116 बच्चों को सहायक उपकरण दिया जा चुका है। उपकरण निर्माण के लिए सरकार की ओर से राशि उपलब्ध कराई जाती है। सामग्री खरीद के लिए बाकायदा निविदा जारी की जाती है फिर पटना व गोरखपुर से उपकरण निर्माण की सामग्री खरीदी जाती है।
सर्जरी की भी है व्यवस्था
सिर्फ कृत्रिम अंग ही नहीं, उपकरण लगाने से पूर्व आवश्यकता होने पर बच्चों की सर्जरी भी कराई जाती है। इसके लिए महाबीर आरोग्य संस्थान पटना से अनुबंध किया गया है। हाल ही में 15 बच्चों की सर्जरी भी कराई गई है।
डे केयर सेंटर में शैक्षिक पुनर्वास
इन बच्चों के लिए डे केयर सेंटर में शैक्षिक पुनर्वास कार्यक्रम भी चलाया जाता है। जहां मूक वधिर व श्रवण निशक्त बच्चों को ब्रेल लिपि व सांकेतिक भाषा में शिक्षा दी जाती है। इसके अलावा बच्चों को ब्लाइंड स्टिक, ब्रेल लिपि किट, हियङ्क्षरग एड जैसे सहायक उपकरण भी उपलब्ध कराए जाते हैं। साथ ही सेंटर में आने वाले बच्चों को मार्ग व्यय की राशि भी दी जाती है। समावेशी शिक्षा संभाग की जिला समन्वयक किरण दीप कहती हैं स्वजन के कंधों पर बैठकर आए बच्चे जब अपने पैरों पर चलकर यहां से जाते हैं तो उन्हें देख काफी खुशी होती है। किरण दीप खुद दिव्यांग हैं। वर्ष 2006 में एक सड़क दुर्घटना में वह एक हाथ गंवा बैठी थीं।