पश्चिम चंपारण में सर्वशिक्षा अभियान को चुनौती दे रहे कचरे के ढेर में कबाड़ चुनते बच्चे
गरीब परिवारों के बच्चे आज भी शहर की विभिन्न जगहों पर कंधों पर आजीविका का बोझ लिए चल रहे हैं। जिनके कंधों पर कॉपी-किताब बस्ते रहनी चाहिए उनके कंधों पर ्जरकचरा चुनने वाली बोरी का बोझ लटका हुआ है।
पश्चिम चंपारण, जागरण संवाददाता। कचरे के ढेर में कबाड़ चुनते बच्चे जिले में सर्वशिक्षा अभियान को सीधी चुनौती दे रहे हैं। उनके अभिभावक भी उन्हेंं स्कूल भेजने की जगह उन्हेंं सुबह कूड़ा चुनने के लिए रवाना कर देते हैंंं। ये बच्चे नशे की लत में भी फंस जाते हैं। इन्हेंं देख स्कूल चलो अभियान के दावे फेल दिख रहे हैं। सच तो यह हैं कि ये आज भी शिक्षा की बुनियादी सुविधाओं से दूर रोजी-रोटी की तलाश में भटकते रहते है।
परिवार चलाने के लिए कचरा चुनने की है मजबूरी :
डोलबाग इलाके में कचरे की ढेर से कबाड़ चुनती एक महिला नजर आती है। नाम पूछने पर तारा देवी बताती है। उसके साथ दो-तीन बच्चे भी कूड़े के ढेर से कबाड़ को चुन रहे हैं। पता पूछने पर तारा देवी कुछ संकोच कर रही थी। लेकिन बाद में उसने बताया कि वह रक्सौल की है। लेकिन लोकलाज के कारण बेतिया स्टेशन चौक के पूर्वी गुमटी के पास रहती है और यहीं रहकर पूरे परिवार के साथ कचरे से कबाड़ चुनती है। कहती हैं कि बच्चों को स्कूल नहीं भेजना मजबूरी है। क्योंकि सभी मिल कर कचरे से कबाड़ चुनते है तब जाकर प्रतिदिन 200 से 300 रुपये का कबाड़ मिलता है और इससे परिवार चलता है।
कॉूपी-किताब की जबह आजीविका के बोझ के तले दबे हैं ये मासूम :
गरीब परिवारों के बच्चे आज भी शहर की विभिन्न जगहों पर कंधों पर आजीविका का बोझ लिए चल रहे हैं। जिनके कंधों पर कॉपी-किताब बस्ते रहनी चाहिए, उनके कंधों पर आजीविका का बोझ लटका हुआ है। कॉपी-किताब का नाता तोड़ वे रोजाना पांच- दस रुपये कमाने के लिए कूड़े के ढेर पर घुमते फिरते नजर आएंगे।
सरकार की कल्याणकारी योजनाएं नहीं आ रही हैं काम :
भले ही सरकार ने निर्धन बच्चों के लिए निशुल्क पढ़ाई की व्यवस्था कर रखी है। इसके लिए उन्हेंं प्रतिमाह निर्धारित राशि भी दी जानी है, लेकिन इन मासूमों के लिए योजनाएं काम नहीं आ रही हैं।