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मुजफ्फरपुर में शवयात्रा में पैसा चुनने वाले बच्चों ने पकड़ी शिक्षा की राह

मुजफ्फरपुर में तीन युवा बदल रहे मुक्तिधाम क्षेत्र के बच्चों की तकदीर। 2017 में झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों के लिए शुरू की अप्पन पाठशाला। पहले दिन नौ बच्चे आए। वर्ष के अंत तक 46 बच्चे हो गए। अगले दो साल में यह संख्या क्रमश 56 व 60 हो गई।

By Ajit kumarEdited By: Published: Wed, 03 Mar 2021 10:02 AM (IST)Updated: Wed, 03 Mar 2021 10:02 AM (IST)
मुजफ्फरपुर में शवयात्रा में पैसा चुनने वाले बच्चों ने पकड़ी शिक्षा की राह
सभी बच्चों का पास के सरकारी स्कूल में नामांकन कराया गया है।

मुजफ्फरपुर, [प्रेम शंकर मिश्रा]। एक ओर बहती बूढ़ी गंडक नदी और दूसरी ओर जलते शव। नदी किनारे इस मुक्तिधाम में लोग तभी आते हैं, जब किसी का अंतिम संस्कार करना हो। ऐसी जगह में आसपास के गरीब बच्चों के लिए चार साल से पाठशाला चला रहे तीन दोस्त। यहां पढऩे वाले बच्चे कभी शवयात्रा में फेंके जाने वाले सिक्के चुनते थे। आज इन्होंने शिक्षा की राह अपना ली है। 

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इसकी शुरुआत हुई वर्ष 2017 में। प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे बेतिया निवासी सुमित कुमार एक शवयात्रा में शामिल होने यहां पहुंचे थे। बच्चों को सिक्के चुनते देख मर्माहत हो गए। उन्होंने उन बच्चों को शिक्षित करने का संकल्प लिया। उन्हें साथ मिला सीतामढ़ी के सुमन सौरभ व मुशहरी के मझौली धर्मदास के अभिराम कुमार का। तीनों ने मुक्तिधाम के कार्यालय के बरामदे में 'अप्पन पाठशालाÓ की शुरुआत की। मुक्तिधाम के दीपू कुमार व अशोक कुमार के सहयोग से आसपास के एक-एक घर पहुंचे। अभिभावकों से बच्चों को पाठशाला भेजने की अपील की। पहले दिन नौ बच्चे आए। वर्ष के अंत तक 46 बच्चे हो गए। अगले दो साल में यह संख्या क्रमश: 56 व 60 हो गई। फिलहाल, 71 बच्चे हैं। यहां कक्षा छह तक की पढ़ाई हो रही। सभी बच्चों का पास के सरकारी स्कूल में नामांकन कराया गया है।

सफाई से शुरू होती क्लास 

बच्चे हर शाम पौने चार बजे यहां आ जाते हैं। सफाई के बाद चार बजे से कक्षा शुरू होती है। व्यावहारिक ज्ञान देने के बाद कोर्स की पढ़ाई होती है। शाम छह बजे राष्ट्रगान के साथ कक्षा समाप्त होती है। नियमित आने वाली निधि कभी कचरा चुनती थी। अब पांचवीं कक्षा में जाने के साथ स्क्वायर (वर्ग) और रेक्टेंगल (आयत) समझने लगी है। कभी स्कूल नहीं जानेवाली सात साल की नंदनी भी अब किताब पढ़ ले रही है। शव जलाने वाले मनोज सहनी की बेटी प्रियंका और बेटा शिवजी पाठशाला से जुड़े हैं। वह कहते हैं कि अब दोनों बच्चे सुबह पैर छूकर उन्हेंं प्रणाम करते हैं।

अभी बहुत तय करना है सफर 

सुमित कहते हैं कि पहले बच्चों के चारित्रिक और नैतिक विकास पर ध्यान दिया। इसके बाद खेल-खेल में पढ़ाई कराने लगे। बच्चों को नेतरहाट, सैनिक स्कूल, सिमुलतला, जवाहर नवोदय और विद्यापीठ आदि में नामांकन के लिए तैयार करना है। किताब व स्टेशनरी का खर्च चंदे से जुटाते हैं। इस बार सांसद अजय निषाद के सहयोग से बच्चों के लिए ड्रेस कोड लागू किया गया है। 


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