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Chhath Puja 2020: नहाय-खाय के साथ आस्था का महापर्व आज से शुरू, रवियोग में हो रही पूजा की शुरुआत

Chhath Puja 2020 सूर्योपासना का महापर्व छठ बुधवार को नहाय-खाय के साथ शुरू होगा। आज के दिन व्रती कद्दू की सब्जी अरवा चावल का भात चने की दाल सहित विविध व्यंजन बनाकर लगाएंगे भगवान को भोग। जानिए पूजा की विधि व जरूरी पूजन सामग्री के बारे में...

By Murari KumarEdited By: Published: Wed, 18 Nov 2020 07:25 AM (IST)Updated: Wed, 18 Nov 2020 09:36 AM (IST)
Chhath Puja 2020: नहाय-खाय के साथ आस्था का महापर्व आज से शुरू, रवियोग में हो रही पूजा की शुरुआत
नहाए खाए के दिन सिकंदरपुर सीढ़ी घाट पर स्नान के बाद छठवर्ती एक दूसरे को सिंदूर लगाती

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। सूर्योपासना का महापर्व छठ बुधवार को नहाय-खाय के साथ शुरू होगा। पर्व को लेकर व्रतियों में काफी उत्साह है। लोग तैयारी में जुट गए हैं। बाजार से सामान की खरीदारी कर रहे हैं। बुधवार को व्रती नहा-धोकर कद्दू की सब्जी, अरवा चावल का भात, चने की दाल सहित विविध व्यंजन बनाकर भगवान को भोग लगाएंगे। उसके बाद सपरिवार प्रसाद ग्रहण करेंगे। पंडित हरिशंकर पाठक व रमेश मिश्रा ने कहा कि कार्तिक शुक्ल षष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है। 

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* फोटो- सिकंदरपुर सीढ़ी घाट बूढ़ी गंडक में नहाए खाए  के दिन छठ  वर्ती   स्नान के बाद भगवान भास्कर को जल अर्पण करती

नहाय-खाय से पूजा की शुरुआत 

छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ हो जाती है। इस दिन व्रती स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं। व्रती के भोजन करने के बाद ही घर के बाकी सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं।

* फोटो- नहाए खाए के दिन छठवर्ती सिकंदरपुर घाट बूढ़ी गंडक से प्रसाद बनाने के लिए जल ले जाती

रवियोग में शुरू हो रहा महापर्व

पंडितों ने बताया कि रवियोग में व्रती नहाय-खाय से व्रत का आरंभ करेंगे। वही महापर्व का समापन द्विपुष्कर योग में उगते सूर्य को अघ्र्य देने के बाद होगा। आचार्य पीके युग ने बताया कि छठ का पर्व आरोग्य, संतान, यश कीर्ति के लिए फलदायी है। व्रती नहाय-खाय के दिन व्रत का संकल्प लेते हैं। पंचमी को चंद्रमा को अघ्र्य देकर खरना का प्रसाद ग्रहण करते हैं। षष्ठी तिथि को पश्चिम मुखी होकर अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अघ्र्य एवं सप्तमी तिथि को पूर्व की ओर मुख कर उदयीमान सूर्य को अघ्र्य देकर व्रत का समापन करते हैं। शास्त्रों के अनुसार पूर्व की ओर मुख कर उपासना करने से उन्नति और पश्चिम मुख उपासना से दुर्भाग्य का अंत होता है। 

 शाम में प्रसाद ग्रहण कर खरना करते हैं व्रती

 कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रती शाम के समय एक बार प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं। शाम को साठी चावल व गुड़ की खीर बनाई जाती है। चावल की घी लगी हुई रोटी ग्रहण करने के साथ ही प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है।

डूबते सूर्य को अघ्र्य देते हैं व्रती

कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। प्रसाद तैयार करते हैं। शाम के समय किसी नदी, तालाब या कृत्रिम घाट पर पानी में खड़े होकर व्रती डूबते हुए सूर्य को अघ्र्य देते हैं। रात भर जागरण किया जाता है।

उगते सूर्य को देते हैं अघ्र्य

कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह पानी में खड़े होकर उगते हुये सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। अघ्र्य देने के बाद व्रती सात बार परिक्रमा करते हैं। एक दूसरे को प्रसाद देकर व्रत की पूर्णाहुति होती है। घर जाकर पारण किया जाता है।

छठ पर्व में इनका खास महत्व 

पंडितों ने कहा कि छठ की पूजा में बांस की टोकरी का विशेष महत्व होता है। बांस को आध्यात्म की दृष्टि से शुद्ध माना जाता है। छठ पूजा में ठेकुए का प्रसाद सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। गुड़ और आटे को मिलाकर ठेकुए का प्रसाद बनाया जाता है। इसके बिना छठ की पूजा अधूरी मानी जाती है। छठ की पूजा में गन्ने का भी विशेष महत्व है। अघ्र्य देते समय पूजा की सामग्री में गन्ने का होना जरूरी है। कहा जाता है कि यह छठी मइया को बहुत प्रिय है।


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