मुजफ्फरपुर से रहा छन्नूलाल मिश्र का गहरा नाता, जानिए उन्हें क्यों शहर छोड़कर जाना पड़ा
शहर से उपेक्षित होकर जाना पड़ा वाराणसी। यहां चतुर्भुज स्थान में रहते थे एक छोटी सी कोठरी में। ठुमरी व किराना गायन शैली में मिश्रण बेहद लोकप्रिय रहा।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। मसाने में खेले होली दिगंबर, मसाने में खेले होली। निर्गुण गीत को अपने खास अंदाज में सुनाने वाले महान गायक पं. छन्नूलाल मिश्र का जिले से गहरा नाता रहा। वे यहां की उपेक्षा से खिन्न होकर लगभग चार दशक पूर्व वाराणसी गए थे। वहीं पर संगीत साधना कर रहे हैं। आज पूरी दुनिया में शास्त्रीय गायक के रूप में विख्यात हैं।
मिश्र का जन्म 3 अगस्त 1936 में यूपी के आजमगढ़ में हुआ था। उनकी सांगीतिक शिक्षा मुजफ्फरपुर में हुई। चतुर्भुज स्थान में एक कोठरी में रह कर संगीत साधना करते थे। वे किराना व बनारस दोनों घराने से जुड़े सधे हुए कुशल गायक हैं।
यहां के विख्यात संगीतज्ञ पं. सीताराम हरि दांडेकर, उस्ताद बज्जन खां, गणेश गुरुजी, विंदेश्वरी गुरु जी, लाला प्रसाद मेहता व देवकी नंदन द्विवेदी आदि के साथ सानिध्य रहा। इन सभी के साथ मिलकर जिले के संगीत जगत को ऊंचाई प्रदान की थी। यहां बहुत लोगों को संगीत की शिक्षा दी।
यहां उनकी साधना को कोई खास मुकाम नहीं मिला। अपनी उपेक्षा से विवश होकर करीब 4 दशक पूर्व वाराणसी चले गए। वहां जाकर अपनी संगीत साधना की धार को और तेज किया। पं. छन्नूलाल मिश्र किराना व बनारस घराने के मिश्रित ठुमरी गायक हैं। वे खयाल, ठुमरी, भजन, दादरा, कजरी और चैती गायकी के लिए भी प्रसिद्ध रहे हैं।
(डॉ. राकेश कुमार मिश्र, प्राध्यापक संगीत विभाग, श्यामनंदन सहाय महाविद्यालय मुजफ्फरपुर से बातचीत पर आधारित )