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पूर्वी चंपारण में इस जगह पर भगवान राम और माता सीता के विवाहोपरांत चौठारी की हुई थी रस्म

सरकार की नजर से ओझल होता जा रहा पौराणिक सीताकुंड धाम। पीपरा रेलवे स्टेशन एवं एनएच-28 से दो किमी उत्तर तथा जिला मुख्यालय मोतिहारी से 22 किमी पूर्व दिशा में स्थित यह धाम भगवान राम व देवी सीता से जुड़े होने के कारण काफी लोकप्रिय है।

By Ajit KumarEdited By: Published: Wed, 02 Dec 2020 08:45 AM (IST)Updated: Wed, 02 Dec 2020 08:45 AM (IST)
पूर्वी चंपारण में इस जगह पर भगवान राम और माता सीता के विवाहोपरांत चौठारी की हुई थी रस्म
सीताकुंड 12 फीट ऊंचे टीलानुमा स्थान पर करीब 20 एकड़ के विशाल भूखंड में फैला हुआ है। फाइल फोटो

पूर्वी चंपारण, जेएनएन। जिले के चकिया प्रखंड अंतर्गत पीपरा स्थित सदियों से आस्था का केंद्र रहे पौराणिक सीताकुंड धाम की ओर शासन प्रशासन की नजर नहीं है। पीपरा रेलवे स्टेशन एवं एनएच-28 से दो किमी उत्तर तथा जिला मुख्यालय मोतिहारी से 22 किमी पूर्व दिशा में स्थित यह धाम भगवान राम व देवी सीता से जुड़े होने के कारण काफी लोकप्रिय है। लगभग 12 फीट ऊंचे टीलानुमा स्थान पर करीब 20 एकड़ के विशाल भूखंड में फैला हुआ यह स्थल सीताकुंड के नाम से जाना जाता है। यहां एक बड़ा तालाब भी है। यहां के अवशेष, प्राचीन मूर्तियों सहित पवित्र कुंड इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं। विडम्बना है कि अपने आप में इतनी पौराणिक स्मृतियों को सहेजे हुए सीताकुंड धाम की अब तक उपेक्षा होती रही है। बताते हैं कि अगर सही तरीके से इसको विकसित किया जाए तो यह जिले में पर्यटन का एक मुख्य केंद्र बन सकता है। हालांकि, हाल के महीनों में इसके विकास के लिए राज्य सरकार द्वारा कई अहम योजनाएं बनाई गई हैं। अब यहां प्रति वर्ष सरकारी स्तर पर सीताकुंड धाम महोत्सव मनाया जाएगा। वहीं अगर सब कुछ योजना मुताबित हुआ तो जल्द ही इसे रामायण सर्किट से भी जोडा जाएगा।

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श्रीराम-जानकी की जोड़ी यहां विश्राम के लिए रुकी

कहते हैं कि त्रेता युग में जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की बरात अयोध्या से जनकपुर वापस लौट रही थी। उसी समय नवविवाहित श्रीराम-जानकी की जोड़ी यहां विश्राम के लिए रुकी थी। उस समय यह क्षेत्र राजा विदेह के भाई कुशध्वज का राज्य हुआ करता था। यहीं पर श्रीराम व सीता के कंगन को खोलने का रस्म भी पूरा हुआ था। जिसे लोकभाषा में चौठारी के नाम से जाना जाता हैं। राजा जनक के भाई ने तब बरातियों के ठहरने के लिए उस समय की परंपरा का निर्वहन करते हुए कई निर्माण कार्य कराए थे। शिवालय, बाग-बगीचा एवं कईं तालाबों का निर्माण भी हुआ था। आज भी सीताकुंड के आस पास में कई प्राचीन पोखर स्थित हैं। यहां एक पवित्र कुंड भी है। जिसके बारे में मान्यता है कि यह कभी नही सूखता। कहते हैं कि इस कुंड में माता सीता ने स्वयं स्नान किया था।

उपेक्षा का रहा शिकार

नवयुवक सेना के संस्थापक अध्यक्ष अनिकेत पांडेय कहते हैं कि धाम की अनदेखी नहीं की गई होती तो आज यह देश के पर्यटन मानचित्र पर अंकित होता। जल्द ही वे अपने स्तर से वहां ध्वज लगवाने वाले हैं। पिपरा विधायक श्यामबाबू प्रसाद यादव ने कहा कि सीताकुंड धाम के विकास के लिए सरकारी स्तर पर कई योजनाएं बनाई गई हैं। प्रयास है कि इसे मुख्य पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए। इससे क्षेत्र में लोगों को रोजगार के अवसर भी मिल सकेगा।  


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