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Bihar Chunav Results 2020: दशकों तक कांग्रेस का गढ़ रहा चंपारण, अब सिर्फ शून्य

Bihar Chunav Results 2020 21 सीटों में से 15 पर भाजपा का कब्जा दो सीटों पर जदयू। महागठबंधन में राजद को तीन और भाकपा-माले को एक सीट। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को प्राप्त बेतिया व नरकटियागंज सीट इस बार खिसकी।

By Murari KumarEdited By: Published: Wed, 11 Nov 2020 09:15 PM (IST)Updated: Wed, 11 Nov 2020 09:15 PM (IST)
Bihar Chunav Results 2020: दशकों तक कांग्रेस का गढ़ रहा चंपारण, अब सिर्फ शून्य
चंपारण जो कभी कांग्रेस का गढ़ था, इस चुनाव में नहीं जीत सकी एक भी सीट

पूर्वी चंपारण, अनिल तिवारी। आजादी के बाद से दशकों तक कांग्रेस का गढ़ रहे चंपारण में आज वह नहीं दिख रही। यहां की 21 सीटों में दो तिहाई से अधिक पर भाजपा का पताका है। भाजपा ने 15 सीटों पर जीत हासिल की है। दो सीटों पर सहयोगी जदयू ने कब्जा जमाया है। शेष बची तीन सीटों पर राजद व एक पर भाकपा माले काबिज हैं। कांग्रेस के लिए निराशाजनक बात यह है कि पिछले चुनाव में मिलीं दो सीटें भी उसने गवां दीं। चंपारण की 21 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को नौ सीटों पर चुनाव लडऩे का अवसर मिला था।

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 इनमें दो सीटें बेतिया व नरकटियागंज पर तो पहले से उसका कब्जा था। ऐसे में एक बार फिर उसे अपना प्रभाव दिखाने का अवसर था। मगर, वह जनता का विश्वास हासिल करने में कामयाब नहीं हो सकी। अव्वल तो यह कि राजद भी तीन सीटों पर सिमट कर रह गया। महागठबंधन में थोड़ा बहुत लाभ अगर मिला तो वह भाकपा-माले ही रहा। उसने अर्से बाद चंपारण में दमखम सिकटा सीट पर दिखाया है। पार्टी के जुझारू नेता वीरेंद्र प्रसाद ने वहां जदयू प्रत्याशी सह मंत्री खुर्शीद उर्फ फिरोज अहमद को न सिर्फ परास्त किया, बल्कि तीसरे नंबर पर कर दिया। दूसरे नंबर पर निर्दलीय दिलीप वर्मा रहे।

धीरे-धीरे लुप्त हो गई कांग्रेस

चंपारण की अधिसंख्य सीटों पर एनडीए व महागठबंधन के बागी हावी रहे। ये विभिन्न छोटे दलों के साथ या निर्दलीय मैदान में थे। लोजपा ने भी अपना जाल बिछाया था। उन्होंने जनता को बरगलाने की हरसंभव कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिल सकी। एनडीए व महागठबंधन के बागियों को भी यहां की जनता ने किनारे लगा दिया। इतिहासकार रामशेखर सिंह बताते हैं कि वर्ष 1952 से चंपारण बंटने के पूर्व तक यह पूरा इलाका कांग्रेस का गढ़ बना रहा। 

 मगर, आपातकाल के दौर में चंपारण के लोगों के भी विचार बदले। उनका कांग्रेस से मोहभंग शुरू हो गया। जनसंघ व कम्युनिस्ट के साथ जनता खड़ी होने लगी। आपातकाल के बाद के चुनावों में कांग्रेस सिमटती चली गई। वहीं, छोटे व क्षेत्रीय दलों की उछल-कूद में कम्युनिस्टों की राजनीति भी हाशिए पर आ गई। वर्तमान परिदृश्य यह है कि 2000 के बाद से कांग्रेस व कम्युनिस्टों के लिए चंपारण में सांसद का पद पाना सपना बनकर रह गया। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को प्राप्त बेतिया व नरकटियागंज सीट भी इस बार खिसक गई। अब उसके पास सिर्फ शून्य बचा है।


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