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Sheohar News : अस्पताल के कमरे में बांधी जा रही मवेशी, रखा जा रहा भूसा और गोबर

अस्पताल भवन पर ग्रामीणों का कब्जा हाल शिवहर जिले के पिपराही प्रखंड अंतर्गत कुअमा अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का दशकों पूर्व स्थापित इन अस्पतालों में चिकित्सक कर्मी फार्मासिस्ट कंपाउंडर की तैनाती भी की गई थी। साल 2000 आते-आते अधिकांश अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बंद हो गए।

By DharmendraEdited By: Published: Sun, 06 Dec 2020 03:28 PM (IST)Updated: Sun, 06 Dec 2020 03:28 PM (IST)
Sheohar News : अस्पताल के कमरे में बांधी जा रही मवेशी, रखा जा रहा भूसा और गोबर
शिवहर में अस्पताल के कमरे में रखा गया भूसा। जागरण

शिवहर, जेएनएन । जन-जन तक स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ पहुंचाने के लिए सुदूर ग्रामीण इलाकों में अतिरिक्त अस्पताल की  स्थापना की परिकल्पना तैयार की गई थी। वैसे इलाके जहां से प्रखंड मुख्यालय स्थित  प्राथमिक  स्वास्थ्य  केंद्र की दूरी अधिक थी, सरकार ने वहां अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना की। दशकों पूर्व  स्थापित  इन अस्पतालों में चिकित्सक, कर्मी, फार्मासिस्ट, कंपाउंडर की तैनाती भी की गई थी। पर्याप्त मात्रा में  दवा उपलब्ध कराए गए थे। साल 2000 आते-आते अधिकांश अतिरिक्त प्राथमिक  स्वास्थ्य  केंद्र  बंद हो गए। सुशासन की सरकार  ने इन अस्पतालों की तस्वीर बदलने की कवायद शुरू की। आयुष  चिकित्सकों की तैनाती की। इसके बाद उन अस्पतालों में बहारों की वापसी हुई। लेकिन कुछ साल बाद ही इन  अतिरिक्त  अस्पतालों की बदहाली  का  दौर शुरू हो गया जो अबतक जारी है। कुछ ऐसी ही तस्वीर है शिवहर जिले के पिपराही प्रखंड अंतर्गत कुअमा अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की।

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दशकों पूर्व इस अस्पताल की  स्थापना की गई थी। शुरूआती दिनों में अस्पताल में दवा मिली। इलाज भी हुआ। लेकिन कुछ समय बाद ही यह अस्पताल व्यवस्था के  संक्रमण  का शिकार बन गया। चिकित्सक और कर्मी अस्पताल से गायब हो गए। स्वास्थ्य  विभाग भी अस्पताल को भूल गया। आखिरकार ग्रामीणों ने अस्पताल पर कब्जा जमा लिया। अब  अस्पताल को देखकर यह पता करना मुश्किल हो जाता हैं कि यह अस्पताल घर है या गैराज। मवेशी घर हैं या  भूसा घर। अस्पताल परिसर ग्रामीणों का सामूहिक पुआल घर बन गया। पूरे परिसर में गोबर रखा गया है। एक कमरे को गैराज बना दिया।

दूसरे कमरे में मवेशी बांधी जाती है। तीसरे कमरे को जलावन और भूसाघर बना  दिया गया हैं। सरकार की व्यवस्था और ग्रामीणों की मनमानी बयां करती इस अस्पताल की जिम्मेदारी इकलौती नर्स के जिम्मे है। एक चिकित्सक भी प्रतिनियुक्त है जो प्रत्येक शनिवार को आते है। हालांकि ग्रामीणों के अनुसार डॉक्टर कभी-कभी ही नजर आते है। जबकि अस्पताल परिसर और कमरों पर ग्रामीणों का कब्जा है। दूर से देखने पर लगता ही नही कि, यह अस्पताल भी है। वैसे इस अस्पताल में न बिजली की व्यवस्था है और नही पानी और शौचालय की ही।  महिला एएनएम की प्रतिनियुक्ति के बावजूद शौचालय और पेयजल की व्यवस्था नही होने से परेशानी झेलना नर्स की मजबूरी है। ग्रामीणों के अतिक्रमण को लेकर नर्स सविता कुमारी परेशान रहती है। लेकिन उनकी कोई सुनने वाला नहीं है। वैसे पूरे अस्पताल भवन और परिसर के अतिक्रमण का शिकार होने की वजह से डॉक्टर को ओपीडी चलाना भी मुश्किल हो रहा है।


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