West Champaran: एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बना व्यवसायी, बेरोजगार युवकों को दे रहा रोजगार
West Champaran पिछले वर्ष लगे लॉकडाउन में आसाम से चला आया था घर गांव में खोली इलेक्ट्रॉनिक्स सामान की दुकान लंबे अरसे बाद गांव में काफी वक्त बिताने पर गांव की आबोहवा उसे ऐसी भा गई की नौकरी के लिए बाहर जाने से तौबा कर ली।
पश्चिम चंपारण, [मनोज कुमार मिश्र]। एक कहावत है कि जब मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो राह में आने वाले रोड़े रास्ता नहीं रोक सकते। दृढ़ इच्छा शक्ति वाला व्यक्ति राह की हर बाधा को पार कर अपना मंजिल पा ही लेता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है चनपटिया प्रखंड के महनाकुली निवासी मैनुद्दीन अंसारी उर्फ मुन्ना ने। पेसे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर मैनुद्दीन पिछले वर्ष लॉकडाउन में नौकरी छोड़कर आसाम से घर चला आया। लॉकडाउन में काफी दिन घर पर ही रह गया। लंबे अरसे बाद गांव में काफी वक्त बिताने पर गांव की आबोहवा उसे ऐसी भा गई की नौकरी के लिए बाहर जाने से तौबा कर ली। वह गांव में रुक तो गया लेकिन खेती बारी में हाथ बटाने के अलावा दूसरा कोई काम दिख नहीं रहा था।
मैनुद्दीन बताता है कि रोजगार के अभाव में गांव के कई युवक बेकार घूमते रहते थे। थोड़े सोच-विचार के बाद गांव में ही इलेक्ट्रिक दुकान खोलने का मूड बना लिया। क्योंकि यहां कोई इलेक्ट्रॉनिक दुकान नहीं था। परिवार के लोगों से चर्चा की तो पहले तो परिवार वालों ने ना नूकुर की। लेकिन समझाने बुझाने के बाद घर के लोग भी राजी हो गए। मैनुद्दीन आज गांव के एक बड़े दुकान का मालिक है। गांव में बेकार घुमने वाले कई युवक उसके दुकान पर काम करते हैं। इंजीनियर आज पूरी तरह व्यवसाई बन गया है। परिवार के लोग भी खुश हैं।
दुकान खोलने में पिता ने की सहयोग
मैनुद्दीन के पिताजी सेवानिवृत्त शिक्षक सरफुद्दीन अंसारी पहले तो बेटे के दुकान खोलने की सोच पर नाराजगी जताई। लेकिन समझाने बुझाने पर बाद में उन्हें भी एहसास हो गया कि यहां दुकान खोलने पर बेटा उनके साथ ही रहेगा। फिर पिता ने भी दुकान खोलने में काफी मदद की। दुकान खोलने के लिए खुद की जमीन थी। सरफुद्दीन अंसारी बताते हैं कि पहले तो बेटे के निर्णय पर असमंजस की स्थिति बना था। लेकिन अब उसके निर्णय से खुशी है। बेटा हमेशा आंख के सामने रहता है। जरूरत पड़ने पर दुकान पर मैं भी हाथ बटा लेता हूं।
तीन लोगों को दिया है रोजगार
मैनुद्दीन गांव के तीन युवकों को रोजगार दिया है। दो युवक दुकान पर हाथ बटाते हैं। जबकि एक युवक माल लाने, ऑर्डर लेने और डिलेवरी पहुंचाने के काम में व्यस्त रहता है। लहना वसूली की जिम्मेवारी भी इसी युवक की है। तीनों युवकों को मासिक वेतन पर रखा गया है। मैनुद्दीन बताता है कि प्रतिमाह खर्च छाट कर अच्छी कमाई हो जाती है। नौकरी छोड़ने का कोई मलाल नहीं है।
बीएस 6 प्रोजेक्ट में था कार्यरत
लॉकडाउन से पहले मैनुद्दीन इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन आसाम में बीएस 6 प्रोजेक्ट में सीनियर इंजीनियर के पद पर कार्यरत था। वहां उसकी अच्छी खासी कमाई थी। लेकिन लॉकडाउन में लंबे अर्से तक घर रहने पर गांव में ही रम गया। वह कहता है कि शहरी आबोहवा से गांव की आबोहवा सुकून भरी है। गांव के सुकून की तुलना शहर से नहीं की जा सकती।