मुजफ्फरपुर, [प्रमोद कुमार]। उत्तर बिहार की जीवनदायिनी नदी बूढ़ी गंडक मूल पहचान खोते जा रही है। अब इसकी पहचान कूड़ा-कचरा ढोने वाली नदी के रूप में होने लगी है। स्थिति यह है कि शहर के हर नाले का बहाव नदी की ओर है। कचरा और औद्योगिक अपशिष्ट निष्पादन का यह आसान माध्यम बनी हुई है। प्रदूषण से इसकी कलकल करती धाराओं का रंग बदरंग हो चुका है।
न सिर्फ नदी की गहराई घट रही बल्कि इसका पानी जहरीला हो रहा है। नदी को प्रदूषित होने से रोकने की कोई व्यवस्था सरजमी पर आज तक नहीं दिखी। न जन प्रतिनिधियों का ध्यान प्रदूषण की मार झेल रही नदी की ओर गया और न ही किसी राजनीतिक दल ने इसे बचाने की मुहिम को अपने एजेंडा में शामिल किया। अब जनता इसे मुद्दा बनाएगी। इसे बचाने की मुहिम के कसौटी पर उम्मीदवारों को परखेगी।
शहर की सभी नालियों का अंत बूढ़ी गंडक नदी में होता है। इन नालों के जरिए शहर भर की गंदगी अनवरत इस इसमे पहुंचती रहती है। चीनी मील, डेयरी समेत कई अन्य उद्योगों के अपशिष्ट पदार्थो को नदी में प्रवाहित किए जा रहे है। आम लोग भी नदी में कूड़ा-कचरा फेकने से बाज नहीं आते। इस कारण कभी पूर्णत साफ दिखने वाली नदी का पानी अब जैसे काला हो गया है। विभिन्न अवसरों पर आस्थावान हजारों लोग डुबकी लगाने आते रहे है लेकिन अब स्थिति यह है कि इसमें स्थान करने भी हिचकते है।
प्रतिवर्ष 7.5 प्रतिशत की दर से प्रदूषित हो रही नदी
शहर की उत्तरी सीमा पर बहने वाली बूढ़ी गंडक नदी कराह रहीं है। पर्यावरण संरक्षण को काम करने वाली संस्था ऑक्सीजन के संयोजक रवि कपूर के अनुसार बूड़ी गंडक नदी प्रतिवर्ष 7.5 प्रतिशत की दर से प्रदूषित हो रही है। जिओलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की 2010 की रिपोर्ट में इसके प्रदूषण का स्तर 67 फीसद बताया गया था। यहां तक कि इसे उत्तर बिहार की सबसे अधिक प्रदूषित नदी बताई गई। पारा, लेड, सोडियम नाइट्रेट, प्लेटिनम, क्रोमियम जैसे घातक रासायनिक पदार्थ इसके पानी को जहरीला बना रही है।
पर इस रिपोर्ट पर किसी ने ध्यान नही दिया।
प्रदूषण के कारण हजारों की आबादी प्रभावित
प्रदूषण से न सिर्फ नदी कराह रही बल्कि हजारों की आबादी इसके प्रभाव में है। राजेश श्रीवास्तव कहते है कि नदी के प्रदूषण से इसकी पेटी में बसे अखाड़ाघाट, सिकंदरपुर तथा चंदवारा मोहल्लों के ग्राउंड वाटर में आर्सेनिक की मात्रा बढ़ सकती है। इसका लोगों के स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न हो जाएगा। डा. फिरोजद्दीन फैज कहते है कि बूढ़ी गंडक के प्रदूषित होने के कारण किनारे बसे स्लम एरिया के लोग जलजनित रोगों का हो रहे शिकार हो रहे है। इसपर किसी का ध्यान नहीं। राजीव सहनी कहते है कि प्रदूषण की मार से जलीय जीवों को भी झेलना पर रहा है। रासायनिक कचरा पटने से जलीय जीवों का नाश हो रहा है। डा. संजय श्रीवास्तव के अनुसार नदी के पानी में कारसियोजेनिक एवं टॉक्सिन की मात्रा बढ़ रही है। इसका सेवन करने वाले कैंसर जैसे घातक रोगों के शिकार हो सकते हैं।
नहीं मिला नियंत्रण के किसी प्रयास का निशान
संजय कुमार सिंह, ब्रजेश कुमार, रागिनी देवी, सोनी कुमारी, पप्पू सिंह बताते है कि नदी को प्रदूषित होने से रोकने की कोई व्यवस्था सरजमीं पर आज तक नहीं दिखी। नालों के गंदा पानी को साफ कराने की योजना बस मास्टर प्लान का अंग ही बनी रही। हां, इसे बचाने के नाम पर बड़ी-बड़ी बात होते रही। गंदा पानी को नदी में प्रवाहित होने से पूर्व ट्रीटमेंट की योजना बनती रही। पर कोई भी योजना जमीन पर नही उतरी। सब अपनी धुन में मस्त है। यह वोट का जरिया नहीं सो वे इसकी चिंता क्यों करें।
अप्रैल-मई में काला हो जाता है पानी, मर कर उपलाने लगती है मछलियां
हर साल अप्रैल-मई महीने में नदी का पानी काला हो जाता है। गन्ना पेराई का सीजन होने के कारण नदी किनारे स्थित चीनी मिलो द्वारा भारी मात्रा में अपशिष्ट नदी में प्रवाहित किया जाता है। इससे नदी का पानी जहरीला हो जाता है और मछलियों के साथ-साथ अन्य जलीय जीव मरकर नदी में उपलाने लगते है। आश्रम घाट मोहल्ला निवासी छेदी गुप्ता कहते है, अप्रैल में नदी का पानी सबसे ज्यादा प्रदूषित हो जाता है।
इस प्रकार प्रदूषित हो रही नदी :-
- शहर से निकलने वाला गंदा पानी बगैर ट्रीटमेंट सीधे नदी में प्रवाहित की जा रही है।
- छोटी-बड़ी फैक्ट्रियों से निकलने वाला विषैला पदार्थ नदीं में प्रवाहित किया जा रहा है।
- मूर्ति विसर्जन के कारण नदी के पानी में घोला जा रहा जा रहे है पारा, लेड, सोडियम नाइट्रेट, प्लेटिनम, क्रोमियम
- सजावट सामग्री के रूप में नदी की पेटी में जमा हो रहा घातक पॉलीथिन
- लकड़ी, पुआल एवं अन्य सामान से घट रही नदी की गहराई
- मृत पशुओं को रात के अंधेरे में सीधे नदीं में फेक दिया जाता है।
- नदीं के किनारे खेते में रासायनिक दवाओं का प्रयोग
- नदीं किनारे मल-मूत्र त्यागने, वह शहर का कचड़ा नदीं में फेकने
- कई स्थानों पर नंदी किनारे धोबी घाट स्थापित कर गंदा कपड़ा धोने
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