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एक कमरे से शुरू होकर वट वृक्ष बन गया मुजफ्फरपुर का बीआरए बिहार विश्वविद्यालय

BRABU Foundation Day शिक्षाविद् डा.श्यामनंदन सहाय के काफी प्रयासों के बाद इसका मुख्यालय मुजफ्फरपुर आया। उस समय छाता चौक स्थित सहाय सदन में ही एक कमरे में मुख्यालय बना। इसके संस्थापक कुलपति श्यामनंदन सहाय बने और नाम बिहार विश्वविद्यालय रखा गया।

By Ajit KumarEdited By: Published: Sun, 02 Jan 2022 11:35 AM (IST)Updated: Sun, 02 Jan 2022 11:35 AM (IST)
एक कमरे से शुरू होकर वट वृक्ष बन गया मुजफ्फरपुर का बीआरए बिहार विश्वविद्यालय
प्रत्येक वर्ष करीब दो लाख विद्यार्थी इस विवि से अध्ययन करते हैं। फाइल फोटो

मुजफ्फरपुर, [अंकित कुमार]। दो जनवरी, 1952 वह स्वर्णिम दिन था जब उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए यूनिवर्सिटी आफ बिहार की स्थापना पटना में की गई। उस समय इसका मुख्यालय पटना में था। शिक्षाविद् डा.श्यामनंदन सहाय के काफी प्रयासों के बाद इसका मुख्यालय मुजफ्फरपुर आया। उस समय छाता चौक स्थित सहाय सदन में ही एक कमरे में विवि का मुख्यालय बना। इसके संस्थापक कुलपति श्यामनंदन सहाय बने और इसका नाम बिहार विश्वविद्यालय रखा गया। यहां से जमीन उपलब्ध होने के बाद धीरे-धीरे बिहार विश्वविद्यालय को वर्तमान भूमि पर स्थापित किया गया। एक कमरे से शुरू हुआ विवि अब एक विशाल वट वृक्ष का रूप धारण कर चुका है। वर्तमान में 16 होम्योपैथिक, आठ आयुर्वेदिक, दो यूनानी, तीन ला, 42 अंगीभूत, 66 डिग्री, एक एकेडमिक स्टाफ और 60 बीएड कालेज इस विवि के अंतर्गत संचालित हो रहे हैं। इसके अलावा 25 विषयों में पीजी और दूरस्थ शिक्षा निदेशालय भी विवि के अंतर्गत संचालित हैं। प्रत्येक वर्ष करीब दो लाख विद्यार्थी इस विवि से अध्ययन करते हैं। 

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विश्वविद्यालय से जुड़ीं मुख्य जानकारियां

- 1952 में हुई थी विश्वविद्यालय की स्थापना, 70 वर्ष में 60 लाख विद्यार्थी हुए पास

- 1960 में मुख्यालय में हुई विवि की स्थापना, इसके बाद बने भवन

- 1992 में बिहार विश्वविद्यालय का नाम बदलकर भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय किया गया

- एक कमरे में छाता चौक स्थित सहाय भवन में शुरू हुआ था विश्वविद्यालय

- वर्तमान में क्षेत्रफल के हिसाब से बिहार का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है बीआरएबीयू

इतिहास पर एक नजर

पटना विवि से अलग होकर बिहार विश्वविद्यालय की स्थापना दो जनवरी 1952 को हुई। 1960 में बिहार विश्वविद्यालय अधिनियम द्वारा इसमें तीन और नए विश्वविद्यालय विभाजित किए गए। बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर, रांची विश्वविद्यालय रांची और भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर थे। 1961 में इसी अधिनियम के तहत बिहार विश्वविद्यालय का फिर से विभाजन किया गया। एक नया मगध विश्वविद्यालय स्थापित हुआ। 1973 में एक और विभाजन करके इसमें से मिथिला विश्वविद्यालय की नींव रखी गई। 1990 में एक और विभाजन के बाद जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय छपरा की स्थापना हुई। 1992 में बिहार विश्वविद्यालय का नाम बदलकर भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय रखा गया।

सत्र नियमित करना प्राथमिकता, रोजगारपरक कोर्स होंगे शुरू : कुलपति

बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.हनुमान प्र.पांडेय ने कहा कि विवि की स्थापना के 70 वर्ष हो गए हैं। कुछ समय से सत्र विलंब रहना बड़ी समस्या रही है। इसे समाप्त करना उनकी पहली प्राथमिकता है। इस नववर्ष में एकेडमिक कैलेंडर तैयार कर सत्र नियमित किया जाएगा। रोजगार को बढ़ावा देने के लिए नए कोर्स शुरू किए जाएंगे। स्नातक और पीजी में प्रायोगिक कक्षाओं का संचालन और पढ़ाई के बाद प्लेसमेंट हो इसकी व्यवस्था कराई जाएगी। विवि पूरी तरह डिजिटल हो रहा। व्यवस्था बदल रही तो इस क्रम में कुछ परेशानियां तो हैं, लेकिन आने वाले समय में कार्यप्रणाली और पठन-पाठन का तरीका सुगम हो जाएगा।

सिर्फ डिग्री बांटना विद्यार्थियों के पलायन का मुख्य कारण : डा.एएन यादव

बीआरए बिहार विवि के पूर्व कुलपति प्रो.अमरेंद्र नारायण यादव ने कहा कि बिहार विवि का स्वर्णिम इतिहास रहा है। वर्तमान में सत्र विलंब और रोजगार नहीं मिलने से विद्यार्थियों का तेजी से दूसरे राज्यों की ओर पलायन हो रहा है। पीजी स्तर के कोर्स में लैब और प्रायोगिक कक्षाओं की स्थिति दयनीय है। विवि सिर्फ डिग्री बांटने की फैक्ट्री बनकर रह गया है। ऐसे में विद्यार्थियों का पलायन होना जायज है। स्नातक और पीजी स्तर पर रोजगारपरक शिक्षा मिले। प्रायोगिक कक्षाएं हों और तकनीकी ज्ञान मिले, जिससे विद्यार्थियों को पढ़ाई के बाद उस आधार पर रोजगार मिल सके। इससे उनका पलायन रोका जा सकता है। आसपास के विवि की स्थिति कुछ समय में यहां से बेहतर हुई है।

1974 के छात्र आंदोलन के बाद विलंबित होने लगा सत्र : डा.सतीश राय

बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के पीजी हिंदी विभागाध्यक्ष डा.सतीश कुमार राय बताते हैं कि इसकी स्थापना के बाद से करीब 22 वर्षों तक सत्र नियमित रहा। 1974 में हुए छात्र आंदोलन में इसका सत्र पहली बार विलंब हुआ। दो वर्ष का पीजी चार वर्ष में होने लगा। पहले स्नातक और पीजी में एक-एक परीक्षाएं होती थीं। अब स्नातक में तीन और पीजी में चार परीक्षाएं हो रही हैं। सत्र को नियमित करने के लिए चाहिए कि छह महीने के सत्र में चार महीने कक्षा चले, पांचवें महीने में परीक्षा हो और छठे महीने में परिणाम जारी हो। कार्ययोजना बने और एकेडमिक कैलेंडर बनाकर उस अनुसार कार्य हो तो विश्वविद्यालय का सत्र नियमित हो सकता है।  


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