बिहार एमएलसी चुनाव 2022: बराबरी के मुकाबले की चर्चा ने ही बढ़ा दी मुजफ्फरपुर के नेताजी की बेचैनी
Bihar MLC Election 2022 स्थानीय निकायों से होने वाले बिहार विधान परिषद चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है। मुजफ्फरपुर के एक नेताजी पिछले कई दशक से इस पर काबिज हैं। अब उनके मुकाबले में एक मजबूत दावेदार का नाम सामने आ रहा है।
मुजफ्फरपुर,[प्रेम शंकर मिश्रा]। पिछले कई दशक से जिले की एक सीट पर नेताजी का दबदबा रहा। कारण यह भी रहा कि मुकाबला बराबरी का हुआ ही नहीं। अब एक-दो माह बाद फिर चुनाव की बिसात बिछने वाली है। नेताजी ने पहले से ही जीत की तैयारी कर ली थी। सबकुछ ठीक चल रहा था, मगर एक चर्चा ने उनकी बेचैनी बढ़ा दी है। मुकाबले में जिले का एक बड़ा नाम सामने आ गया है। निर्माण एजेंसी में इनका वर्षों से दबदबा है। उनकी राजनीति में यह इंट्री ही होगी। मुकाबला बराबरी की होने की उम्मीद है। ऊंट अब किस करवट बैठेगा यह भविष्यवाणी करना कठिन है। वहीं मुकाबले का परिणाम जो भी हो यह तय है कि नए चेहरे के लिए राजनीतिक जमीन जरूर तैयार हो जाएगी। वहीं अपनी ही जीत के अंतर के रिकार्ड को तोडऩे की उम्मीद पाले नेताजी की परेशानी जरूर बढऩे वाली है। साथ ही ठंड में जिले का राजनीतिक तापमान।
अपनों के कब्जे से तो मुक्त कराएं
राज्य में मठ-मंदिर की जमीन को कब्जे से मुक्त कराने की पहल सरकार ने की है। इसके लिए एक माननीय लगातार समीक्षा कर रहे हैं। अवैध दस्तावेज को रद करने की भी बात कह रहे हैं। उनके निर्देश के बाद जिले में ऐसी जमीन की सूची भी बन रही है। इसमें कुछ नाम को शामिल करने पर पदाधिकारियों के हाथ-पैर फूल रहे होंगे। कारण यह कि मठ-मंदिर की जमीन पर कब्जे के मामले में माननीय से लेकर बड़े समाजसेवी का भी नाम शामिल है। समाजसेवी के मामले में जांच की फाइल कहां दबी है उसकी किसी को जानकारी नहीं। माननीय के मामले की तो जांच भी बंद हो गई, जबकि सीधे बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड ने पुख्ता सुबूत प्रशासन को उपलब्ध कराए थे। इसलिए सरकार की मंशा पर शहरवासी यही सवाल उठाते, पहले अपनों के कब्जे से तो मठ-मंदिर की जमीन मुक्त कराएं।
बेटी को उत्तराधिकारी बनाने की जुगत
जिले में इस पूर्व माननीय को दलित राजनीति का बड़ा नाम माना जाता था। लगातार दो हार के बाद भी प्रभाव कम नहीं हुआ, मगर अब वे राजनीति की पिच पर बल्लेबाजी करने की स्थिति में नहीं हैं। इसलिए बेटी के लिए मैदान तैयार करने में जुटे हैं। फीङ्क्षल्डग सजाई जा रही। क्षेत्र में साथ लेकर घूम भी रहे। समस्याओं को उठा रहे हैं। संयोग से उनकी कर्मभूमि रहे विधानसभा में उप चुनाव भी होने जा रहा है। उम्मीद है कि अंत समय में जिस दल के साथ रहे उससे बेटी की उम्मीदवारी तय हो जाए। कार्यकर्ताओं को बताया जा रहा है कि उनका प्रभाव कम नहीं हुआ। स्वास्थ्य कारणों से बस मैदान में नहीं उतर सकते, मगर उनकी बात पर संबंधित दल के आलाकमान को यकीन हो यह मुश्किल है। लगातार दो हार ने उनकी ताकत का अहसास करा दिया है। बेटी को उत्तराधिकारी बनाने की पूर्व माननीय की आशा पर कहीं तुषारापात ना हो जाए।
कार्रवाई या राजनीति
कहते हैं राजनीति करने पर नेताओं का एकाधिकार है, मगर पुलिस-प्रशासन के पदाधिकारी अब उन्हें चुनौती दे रहे हैं। उनकी कुछ कार्रवाई तो यही कह रही। खासकर अतिक्रमण हटाने के मामले में। हाईकोर्ट के आदेश पर एक शैक्षणिक संस्थान की जमीन से अतिक्रमण हटाना था। दबाव पड़ा तो प्रशासन ने कार्रवाई शुरू की, मगर जो वास्तविक अतिक्रमणकारी थे उन्हें हटाने में पांव ठिठक गए। हटाए जगह पर फिर कब्जा होना ही था वह हो गया। अगली कड़ी में साहब ने जाम से मुक्ति दिलाने के लिए अतिक्रमण हटाने के लिए जो पहली सड़क की सूची दी वहां कुछ हुआ ही नहीं। चूंकि साहब की गाड़ी इधर से आती-जाती है इसलिए सूची में पहला नाम था, मगर अतिक्रमणकारियों के बारे में जहां विस्तृत जानकारी मिली, पांव ठिठक गए। शहरवासी भी चुटकी ले रहे, पदाधिकारी भी सीख गए हैं राजनीति।