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Buddha poornima : पश्चिम चंपारण के रमपुरवा में त्याग दिए थे राजसी वस्त्र, और निकल पड़े थे सत्य की खोज में

Buddha poornima 2020 पश्चिम चंपारण के रमपुरवा से ही सत्य की खोज में निकले थे भगवान बुद्ध। सम्राट अशोक ने दो स्तंभ कराए थे स्थापित। जान‍िए यहां की विशेषताएं...

By Murari KumarEdited By: Published: Thu, 07 May 2020 05:11 PM (IST)Updated: Thu, 07 May 2020 05:11 PM (IST)
Buddha poornima : पश्चिम चंपारण के रमपुरवा में त्याग दिए थे राजसी वस्त्र, और निकल पड़े थे सत्य की खोज में
Buddha poornima : पश्चिम चंपारण के रमपुरवा में त्याग दिए थे राजसी वस्त्र, और निकल पड़े थे सत्य की खोज में

पश्चिम चंपारण (नरकटियागंज) प्रभात मिश्र। गौतम बुद्ध से जुड़े गौनाहा प्रखंड के रमपुरवा का बौद्ध इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। यहीं उन्होंने राजसी वस्त्र का त्याग करने के साथ मुंडन कराया था। फिर सत्य की खोज में निकल पड़े थे। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के साथ बुद्ध की याद में रमपुरवा में दो स्तंभों का निर्माण कराया था। पूरे विश्व में रमपुरवा ही ऐसी जगह है, जहां अशोक ने दो स्तंभ स्थापित कराए थे। एक पर वृषभ एवं दूसरे पर सिंह का प्रतीक चिह्न् था, जो टूटकर गिर चुका है। वृषभ का शीर्ष राष्ट्रपति भवन की आर्ट गैलरी में तथा सिंह का शीर्ष कोलकाता के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा है।

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रमपुरवा में बौद्ध धर्मावलंबी और पर्यटक आते रहते हैं। लेकिन, कोरोना के चलते आजकल सन्नाटा पसरा है। यहां तैनात केयरटेकर भी नहीं आ रहे। वर्ष 2012 में लौरिया में बौद्ध महोत्सव में भाग लेने के बाद आठ देशों के 275 बौद्ध धर्मावलंबी रमपुरवा आए थे। रमपुरवा बौद्ध स्थल को विकास की दरकार है। यहां पहुंचने के लिए न समुचित मार्ग और न ही शौचालय व बैठने की व्यवस्था। दोनों टूटे स्तंभों को एक टीनशेड के नीचे रखा गया है।

रामनगर की विधायक भागीरथी देवी का कहना है कि रमपुरवा अशोक स्तंभ पर सम्राट अशोक के संदेश अंकित हैं। इसके संरक्षण और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए विभागीय मंत्री और मुख्यमंत्री से मिलकर पहल होगी।

बौद्ध पर्यटन स्थलों में शामिल कोल्हुआ का अशोक स्तंभ

मुजफ्फरपुर के सरैया प्रखंड के कोल्हुआ का गौतम बुद्ध से गहरा नाता रहा है। यह देश के प्रमुख बौद्ध स्थलों में से एक है। बुद्ध यहां कई बार चौमासा करने पहुंचे थे। यहां अशोक स्तंभ, स्तूप, कुटागरशाला,स्वास्तिक विहार सहित अन्य चीजें उत्खनन में सामने आई हैं। ऐतिहासिक मान्यता के अनुसार यह वही स्थल है जहां महिलाओं को बौद्ध भिक्षुणी बनने का अवसर प्राप्त हुआ था। यहीं भगवान बुद्ध ने वैशाली के राजा का आतिथ्य अस्वीकार कर राजनर्तकी आम्रपाली का आतिथ्य स्वीकार किया था।


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