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West Champaran: ... घबड़ाएं नहीं साहब, चचरी पुल तो यहां की नियती है, बीडीओ व सीओ की घबड़ाहट देख बोला-ग्रामीण

बीडीओ व सीओ को चचरी पुल पार करने के पूर्व उनकी घबड़ाहट देख एक ग्रामीण ने कही यह बातशत फीसद टीकाकरण के लिए चचरी पुल से नरकटिया गांव पहुंचे थे दोनों अधिकारी कोरोना संक्रमण से बचाव के ल‍िए गाइडलाइन का पालन जरूरी है।

By Dharmendra Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 18 Jul 2021 05:45 PM (IST)Updated: Sun, 18 Jul 2021 05:45 PM (IST)
West Champaran: ... घबड़ाएं नहीं साहब, चचरी पुल तो यहां की नियती है, बीडीओ व सीओ की घबड़ाहट देख बोला-ग्रामीण
धोबहा नाला पर बने चचरी पुल पार करते बीडीओ मीरा शर्मा व सीओ मनीष कुमार। जागरण

 पश्‍च‍िम चंपारण, (शेष नाथ तिवारी) । ... घबराएं नहीं साहब चचरी पुल तो यहां की नियती है। जब भी बाढ़ आती है,तो यहां के लोगों को गांव से बाहर निकलने के लिए यही सहारा बनती है। वरना आपूनुमा इस क्षेत्र निकलना संभव नहीं है। यह कहना है सिकटा प्रखंड के धनकुटवा पंचायत के बाढ़ प्रभावित नरकटिया गांव के चित्रांगद मणि गिरी का। नरकटिया गांव में जब शत फीसद टीकाकरण कार्य की मॉनीटङ्क्षरग करने सिकटा के बीडीओ मीरा शर्मा व अंचल अधिकारी मनीष कुमार यहां पहुंचे, तो अपनी गाड़ी सडक पर खडी कर वहां जाने की तैयारी करने लगे। टापूनुमा गांव में जाने के लिए बस एक चचरी ही सहारा था और खतरनाक चचरी पुल से उन्हें पार करने में थोड़ी हिचकिचाहट हुई। ऐसे में मौके पर उपस्थित उक्त ग्रामीण ने उनसे यह दर्द भरी बात कहकर उन्हें पार कराने में सहयोगी बने। यहां के लोगों को आज भी आवागमन के लिए चचरी पुल का सहारा लेना पड़ रहा है। विकास के इस दौर में जगह-जगह पुल पुलियों का निर्माण हो रहा है, लेकिन जिले के कई ऐसे गांव हैं, जहां के लोग बरसात में टापू की ङ्क्षजदगी जीने को मजबूर हैं।

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नरकटिया गांव के लोग सिकरहना और करताहां नदी में बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित हो जाते हैं। गांव के उत्तर में करताहां और दक्षिण में सिकरहना नदी बहती है, बाढ़ आ जाने के बाद पूरा का पूरा इलाका टापू में तब्दिल हो जाता है। ऐसे में जरूरी काम से इस गांव से कही निकलना खतरे से खाली नहीं है। इस बार एक माह से बाढ़ और बारिश के कारण इनकी समस्या और ही अधिक हो गई है। इस गांव के शक्तिनाथ पाण्डेय, राकेश मिश्र, सोनालाल शर्मा, बबुआजी गिरी, गुड्डू पासवान आदि की माने, तो सिकरहना व करताहां नदी हर साल बाढ लाकर कंगाल बना देती है। गांव से निकले के लिए चार सड़कें हैं। लेकिन बाढ के सभी पर चार से छह फीट पानी रहता है। गांव से बेतिया सिकटा मुख्य सड़क पर डूमरा जाने की सड़क प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना से बनी थी। वह भी गढ्ढें में तबदील हो गई है। इसी सड़क में धोबहा नाला पर पहले से पुल बना था, जो बाढ में बह गया था। सरकरी स्तर पर अब तक कोई पहल नहीं किए जाने पर जनसहयोग से ही चचरी पुल बनाकर किसी तरह काम चलाया जा रहा है।

ग्रामीणों से ह्यम पाइप की बात कह वापस लौट गए सीओ

पांच दिन पूर्व प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी मीरा शर्मा व अंचल अधिकारी मनीष कुमार को भी चचरी पुल से गुजरना पडऩा। चचरी पुल से गुजरने में ग्रामीणों ने सहयोग किया, लेकिन उनकी समस्या से वाकिख होकर सीओ ने यहां ह्यूम पाइप लगवाने की बात कही। इसके लिए ग्रामीणों से आवेदन लेकर सिकटा वापस चले गए, लेकिन पांच दिन बीत जाने के बाद भी अब तक ग्रामीणों को इसकी इंतजार है।

इस सस्या से प्रभावित हैं चार हजार आबादी

बाढ़ के कारण आवागन की समस्या से इस गांव का एक हजार परिवार प्रभावित हैं। प्रभावित चार हजार आबादी को बाढ़ की बात सुनकर ही उनका कलेजा कांप उठता है।


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