चंपारण के बासमती, मरचा व आनंदी धान को मिलेगी ग्लोबल पहचान, GI टैगिंग के लिए जिला प्रशासन ने की पहल
West Champaran News चंपारण में उपजाए जाने वाले बासमती मरचा व आनंदी प्रभेद के धान को ग्लोबल पहचान मिलेगी। जीआइ टैगिंग की कवायद में जुटा जिला प्रशासन। एक माह में भारत सरकार को भेजा जाएगा प्रस्ताव।
बेतिया (पश्चिम चंपारण) [शशि कुमार मिश्र]। चंपारण में उपजाए जाने वाले बासमती, मरचा व आनंदी प्रभेद के धान को ग्लोबल पहचान मिलेगी। ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआइ) टैगिंग के लिए जिला प्रशासन ने पहल की है। इससे संबंधित प्रस्ताव केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय को भेजा जाएगा। प्रक्रिया एक माह में पूरी कर ली जाएगी।
जिले के रामनगर, बगहा, मैनाटांड़, गौनाहा एवं नरकटियागंज प्रखंड के कुछ हिस्से बासमती धान की खेती करीब एक हजार एकड़ में होती है। इसकी खेती में 600 से अधिक किसान जुड़े हैं। मरचा धान की खेती भी करीब एक हजार एकड़ में होती है। 500 किसान इसकी खेती करते हैं। इसकी खेती नरकटियागंज, गौनाहा, सिकटा एवं मैनाटांड़ प्रखंडों में की जा रही है। आनंदी धान की खेती सिकटा प्रखंड की झूमका पंचायत सहित जिले के अन्य हिस्सों में करीब एक सौ एकड़ में होती है।
बेहतर सुगंध व लजीज स्वाद पहचान
इन तीनों ही प्रजातियों की पहचान चंपारण की मिट्टी से जुड़ी है। चंपारण में होने वाला बासमती धान बेहतर सुगंध एवं लजीज स्वाद के लिए पहचान रखता है। मरचा धान भी सुगंधित होता है। इसका चूड़ा काफी पसंद किया जाता है। आनंदी धान की ऐसी किस्म है, जिसका भूंजा काफी अच्छा होता है। विशेष रूप से इसका इस्तेमाल भूंजा बनाने में ही होता है।
किसान कपिलदेव यादव, बिसन गुमस्ता, आनंद ङ्क्षसह और विजय पांडेय का कहना है कि जिला प्रशासन की यह पहल सराहनीय है। जीआइ टैगिंग मिलने से इन उत्पादों की मांग विदेशों में भी हो जाएगी। हमारी अलग पहचान होगी।
क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र माधोपुर, के नोडल पदाधिकारी डॉ. अजित कुमार का कहना है कि तीनों धान की इस प्रजाति यहां की विशेष तरह की मिट्टी एवं जलवायु के चलते होती है। इनकी खेती के लिए ऐसी अनुकूल जलवायु अन्य जगह नहीं है। इसी कारण दूसरी जगह पर खेती में यहां की तरह स्वाद नहीं होता है।
जिलाधिकारी कुंदन कुमार ने बताया कि जीआइ टैगिंग के बाद दूसरे क्षेत्र के लिए इसका निबंधन नहीं हो पाएगा। प्रस्ताव तैयार करने के लिए वरीय उप समाहर्ता को निर्देश दिया गया है। सबकुछ ठीकठाक रहा तो धान के इन तीनों प्रजाति की पहचान ग्लोबल स्तर पर हो जाएगी।