सफलता के सफेद दामन पर पिछड़ेपन का दाग
मुजफ्फरपुर। मोतिहारी ,केंद्रीय योजना कायाकल्प में दो-दो बार उत्कृष्टता का परचम लहराने वाला मोतिहारी
मुजफ्फरपुर। मोतिहारी ,केंद्रीय योजना कायाकल्प में दो-दो बार उत्कृष्टता का परचम लहराने वाला मोतिहारी सदर अस्पताल अब सफलता के सफेद दामन पर पिछड़ेपन का दाग लगता नजर आ रहा है। पिछले एक महीने में अस्पताल के अलग-अलग विभागों की कार्यकुशलता में जो गिरावट आई है, उसकी गवाही अस्पताल का स्वमूल्यांकन दे रहा है। जिन विभागों को अच्छे अंक मिले थे, वहां भी निराशाजनक स्थिति है। इस दौरान बुनियादी व्यवस्था भी प्रभावित हुई है। स्थिति ऐसी बनी कि पानी तक का परिसर में अभाव हो गया। आइपीडी में लगे प्याऊ से लेकर सभी आरओ सिस्टम तक बंद हो गए। अस्पताल के अंदरूनी हिस्से में लगा चापाकल भी काम नहीं कर रहा। हद तो यह है कि पैथो लैब में सी¨रज तक का अभाव हो गया। मरीजों को खुद के स्तर पर इसकी व्यवस्था करनी पड़ती थी। दवा से लेकर ऑक्सीजन तक की व्यवस्था जैसे-तैसे हो रही है। आखिर ऐसा क्यों है, यह एक बड़ा सवाल है। उत्कृष्टता में आई गिरावट को राज्य स्वास्थ्य समिति के कार्यपालक निदेशक लोकेश कुमार ¨सह ने भी गंभीरता से लिया है। तुरंत पड़ताल कर उसे ठीक करने का निर्देश जारी किया है। लेबर रूम में 22 अंकों की हुई गिरावट
भारत सरकार के 'लक्ष्य' कार्यक्रम के लिए किए गए मूल्यांकन में लेबर रूम में आश्चर्यजनक रूप से 22 अंकों की गिरावट दर्ज की गई है। जबकि नेशनल क्वालिटी एस्योरेंस स्टैंडर्ड (एनक्यूएएस) के लिए केंद्रीय टीम द्वारा किए गए मूल्यांकन में लेबर रूम को 86 प्रतिशत अंक मिले थे। हाल के मूल्यांकन में इस इकाई को 64 प्रतिशत अंक मिले हैं। वहीं, ऑपरेशन थियेटर में भी ऐसी ही स्थिति सामने आई है। एनक्यूएएस मूल्यांकन में 74 प्रतिशत अंक मिले थे, जो गिरकर 54 पर आ गया है। एनक्यूएएस मूल्यांकन में लैब का बुरा हाल
राष्ट्रीय स्तर के एनक्यूएएस मूल्याकंन में अस्पताल में सबसे बुरा हाल पैथो लैब का ही सामने आया। उसे मात्र 44 प्रतिशत अंक मिले। जबकि उत्कृष्टता का मानक कम से कम 70 प्रतिशत है। मानक से कम अंक पानेवाले अन्य विभागों में ओपीडी-66, आइपीडी-67, सामान्य प्रशासन-68, इंज्यूरी इमरजेंसी-69 एवं एसएनसीयू-69 शामिल हैं। बेहतर स्थिति जिन विभागों की रही उनमें लेबर रूम को 86, मैटरनिटी वार्ड को 82, ओटी को 74 एवं मरचूरी को 70 अंक मिले थे। कायाकल्प में संभले तो एमक्यूएएस फिसले
इस अस्पताल को कायाकल्प योजना में दो-दो बार सफलता मिल चुकी है। पहली सफलता वर्ष 2015-16 में तो दूसरी 2017-18 में मिल चुकी है। इसके लिए अस्पताल प्रबंधन को दिल्ली में आयोजित स्वास्थ्य विभाग के कार्यक्रम में सम्मान भी मिला है। इतना ही नहीं इस सफलता के लिए 50-50 लाख रुपये की राशि भी पुरस्कार स्वरूप अस्पताल को मिली। मगर दूसरी ओर भारत सरकार के नेशनल क्वालिटी एस्योरेंस स्टैंडर्ड के मूल्यांकन में यह अस्पताल मानक पर खरा नहीं उतर सका। इसे मात्र 62 प्रतिशत अंक मिले। प्रमाणन के लिए कम से कम 70 प्रतिशत अंको की दरकार होती है। कायाकल्प में इस अस्पताल ने 75.16 प्रतिशत अंक प्राप्त कर प्रदेश में अव्वल स्थान हासिल किया था। अस्पताल की व्यवस्था चरमराई
इधर, अस्पताल में व्यवस्था की यह स्थिति है कि यहां का काम जैसे-तैसे चल रहा है। दवा को लेकर संकट की स्थित यहां की पुरानी समस्या हो चुकी है। ऑक्सीजन की आपूर्ति भी राम भरोसे है। आपूर्तिकर्ता का भुगतान लंबे समय से लंबित है। ऐसे में इस व्यवस्था पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है। लैब में सी¨रज तक की कमी हो गई है। पिछले दिनों मरीजों को स्वयं के स्तर पर सी¨रज लाना पड़ता था। रोस्टर के अनुपालन में लापरवाही और नर्सों में भी असंतोष का वातवारण है। ड्यूटी रोस्टर को लेकर उन्होंने अधीक्षक को आवेदन भी दिया था। अस्पताल में केंद्रीकृत प्रबंधन का अभाव दिख रहा है। जिसे जो समझ में आ रहा है, कर रहा है। यू कहें कि व्यवस्था पर प्रबंधन की पकड़ ही नहीं है, तो गलत न होगा। सदर अस्पताल उपाधीक्षक डॉ ़ मनोज कुमार ने बताया किअस्पताल की व्यवस्था को लेकर हम चौकसी बरत रहे हैं। जहां कहीं भी कमी है उसे ठीक किया जा रहा है। चिकित्सक एवं चिकित्सा कर्मी ससमय ड्यूटी करें इस व्यवस्था को सख्ती से लागू किया जा रहा है। सदर अस्पताल प्रबंधक विजयचंद्र झा ने बताया किव्यवस्था को लेकर हम नए सिरे से समीक्षा कर रहे हैं। जो भी कमी है उसे हम ठीक करने का प्रयास कर रहे हैं। भारत सरकार ने एनक्यूएएस मूल्यांकन के लिए दो माह का समय दिया है। लक्ष्य को पाने के लिए सामूहिक प्रयास की दरकार है। इस दिशा में हम प्रयासरत हैं।