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Coronavirus: 18वें फ्लोर पर डरे-सहमे वो दिन...वतन पहुंचे तो जान में आई जान

चीनी शहर गुआंगशी 28 नवंबर के बाद हो गया था बंद शहर में प्रवेश व निकासी लॉकडाउन। मोतीपुर रोसड़ा के अकीब अहमद खान वायरस अटैक के उस दौर को याद कर सिहर जाते।

By Murari KumarEdited By: Published: Fri, 20 Mar 2020 08:17 AM (IST)Updated: Fri, 20 Mar 2020 08:17 AM (IST)
Coronavirus: 18वें फ्लोर पर डरे-सहमे वो दिन...वतन पहुंचे तो जान में आई जान
Coronavirus: 18वें फ्लोर पर डरे-सहमे वो दिन...वतन पहुंचे तो जान में आई जान

समस्तीपुर, शंभूनाथ चौधरी। 18वें फ्लोर पर डरे-सहमे वो दिन...! बाहर निकलने की मनाही, हर मूवमेंट की निगरानी। कमरे में टीवी नहीं, मोबाइल का सहारा। उसपर भी चीन सरकार का पहरा। बंद कमरे में मोबाइल नेट पर रोज मिलती मौत की खबरें...। कोरोना वायरस का खौफ ऐसा कि पूरा शहर रातोंरात खाली। मोतीपुर, रोसड़ा के असफाक अहम खान और नजमुस सेहर के पुत्र अकीब अहमद खान उस दौर को याद कर सिहर जाते। 

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 चीन के गुआंगशी शहर में रहकर एमबीबीएस दूसरे वर्ष की पढ़ाई करनेवाले अकीब जब अपनी सर जमीं पर पहुंचे तो जान में जान आई। ये बातें उन्होंने दैनिक जागरण से गुरुवार को शेयर कीं। पढ़ाई की चिंता है, लेकिन ऑनलाइन क्लास शुरू होने से राहत मिल रही है। 

 हॉस्टल में थे 35 भारतीय स्टूडेंट्स

अकीब कहते हैं कि गुआंगशी में 28 नवंबर के बाद वायरस अटैक हुआ। इससे पहले थोड़ी-बहुत चर्चा थी, पर देखते-देखते यह पसरती चली गई। शहर में प्रवेश और निकास बंद। बॉर्डर सील। यूनिवर्सिटी में परीक्षा की तैयारी चल रही थी। जनवरी में एक्जाम होना था। लेकिन, डीन ने छुट्टी की घोषणा कर दी। हमलोग पूरी तरह फंस चुके थे। चीनी मेस कंट्रोलर को बाहर भेज दिया गया। हमारे सामने अब खाने का टेंशन। पूरे हॉस्टल में हम 35 भारतीय स्टूडेंट्स थे। सबके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं। बीच-बीच में वार्डन आतीं और अपडेट कर जातीं। 

जंक फूड खाकर रहे महीनों

इधर, नए साल को लेकर एक सप्ताह बंद रहनेवाला बाजार पहले ही बंद हो गया था। अकीब बताते हैं कि हमारे सामने सबसे बड़ी चिंता खाने-पीने की थी। ऑनलाइन ऑर्डर बंद। गनीमत थी कि पहले से जो थोड़ा बहुत जंक फूड खरीदे थे, उसी से काम चला। पर कितना दिन...! देखते-देखते वो भी खत्म। हमलोगों ने वहां से निकलने का फैसला किया। लेकिन, एक्जिट पास तो सीज था। वार्डन को हमलोगों ने सूचना भेजी। वहां से ओके होने के बाद इमरजेंसी वीजा के लिए अप्लाई किया गया। पर, मुश्किल यह कि गुआंगशी एयरपोर्ट बंद कर दिया गया था। हमें निकलने को कोई रास्ता भी नहीं सूझ रहा था। 

बुलेट ट्रेन से पहुंचे ग्वांग

तीन फरवरी को हमें बुलेट ट्रेन से नजदीकी शहर ग्वांग-जो जाने की सलाह दी गई। हम 22 छात्र खुद की व्यवस्था कर ग्वांग जो पहुंचे। वहां चार फरवरी को बेयूल एयरपोर्ट से कोलकाता के लिए फ्लाइट थी। पांच को यहां पहुंचे। आते ही एयरपोर्ट ऑथोरिटी की ओर से थर्मल स्क्रीनिंग कराकर अन्य जांच की गई। हमें अन्य यात्रियों से अलग रखा गया था। छह फरवरी को घर पहुंचे। यहां आते ही मेडिकल टीम को सूचना मिल गई। अनुमंडलीय अस्पताल के चिकित्सक पहुंचे। उनके जाने के बाद पटना से भी एक टीम पहुंची। लेकिन, शुक्र रहा कि सारी रिपोर्ट निगेटिव रही। 


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