बिहार के बाद मध्य प्रदेश के किसानों की भी पसंद बन रही मुजफ्फरपुर की लीची
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के पूर्व निदेशक डा. विशालनाथ कहते हैं कि गंडकी संपदा व लालिमा के 200-200 पौधों गंडकी योगिता के 40 व गंडकी लौंगन के 20 पौधों पर 2015-2019 के बीच किया ट्रायल सफल रहा। फल बेहतर रहे।
मुजफ्फरपुर, [अमरेंद्र तिवारी]। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुजफ्फरपुर में विकसित लीची के पौधों की मांग देश के अन्य प्रदेशों में भी है। मध्य प्रदेश मेंं पहली बार पंचमढ़ी में 30 पौधे भेजे गए। अगले साल फरवरी में तीन हजार और पौधे वहां के बैतूल, बालाघाट भेजे जाएंगे। दो दिन पहले ढाई हजार पौधे उत्तर प्रदेश के मेरठ भी भेजे गए थे। इन पौधों में शाही लीची, गंडकी संपदा, चाइना सहित अन्य प्रजाति हैं।
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के पूर्व निदेशक डा. विशालनाथ कहते हैं कि गंडकी संपदा व लालिमा के 200-200 पौधों, गंडकी योगिता के 40 व गंडकी लौंगन के 20 पौधों पर 2015-2019 के बीच किया ट्रायल सफल रहा। फल बेहतर रहे। शाही का एवरेज वजन 24 से 25 ग्राम और चाइना का 28 से 29 ग्राम है। वहीं गंडकी संपदा का एवरेज वजन 38 ग्राम तक जाता है। नई प्रजाति का प्रचार-प्रसार होने में समय लगता है। पांच-10 साल और उससे भी ज्यादा वक्त लगता है।
संपदा अभी पंजाब, असम और उत्तराखंड के पंतनगर इलाके में गई है। इसी तरह से योगिता व लालिमा का भी मदर प्लांटेशन के रूप ज्यादा प्रसार किया जा रहा है।
मदर प्लांटेशन के लिए सात राज्यों में जा रहे पौधे
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डा. एसडी पांडेय ने कहा कि मुजफ्फरपुर में विकसित लीची की तीन प्रजातियां गंडकी योगिता, गंडकी लालिमा और गंडकी संपदा देश के सात अन्य राज्यों के किसानों को आसानी से उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना के तहत अलग-अलग राज्य के सेंटर पर इसे भेजा जा रहा है। सभी प्रजातियों के 50-50 पौधे वहां भेजे जाएंगे। वहां की मिट्टी व वातावरण के अनुसार इन्हें विकसित किया जाएगा। उसके बाद यह किसानों को उपलब्ध होगा। बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर, भागलपुर, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना, बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय मोहनपुर, पश्चिम बंगाल, गोङ्क्षवद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर, उत्तराखंड, आरसीईआर रिसर्च सेंटर नामकुम रांची झारखंड, डा.यशवंत ङ्क्षसह परमार यूनिवर्सिटी ऑफ हार्टिकल्चरल एंड फोरेस्ट्री सोलन, हिमाचल प्रदेश और सेंट्रल हार्टिकल्चरल एक्सपेरिमेंट स्टेशन, चेट्टाली, कर्नाटक को ये प्रजातियां भेजी जाएंगी। इसके साथ केंद्र में आकर भी किसान इन्हें ले जाते हैं।