आथरघाट पुल बनने से पांच लाख लोगों को होगी आवागमन में सुविधा
बूढ़ी गंडक नदी पर बना पुल अब तक अधूरा पांच लाख आबादी को हो रही परेशानी। बोचहां गायघाट औराई कटरा दरभंगा मधुबनी से पटना जाने वालों के लिए एकमात्र यही रास्ता।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। मुशहरी प्रखंड का आथरघाट पुल इस बार चुनावी मुद्दा बनकर सामने आया है। लंबे जनांदोलन के बाद बूढ़ी गंडक नदी पर पुल निर्माण की सरकार ने स्वीकृति दी थी। 22 नवंबर 2014 को काम आरंभ हुआ, लेकिन मामला मुआवजा के मुद्दे पर फंस गया। इस पुल के बन जाने से करीब पांच लाख से अधिक की आबादी को सीधा लाभ मिलेगा। बोचहां, गायघाट, औराई, कटरा, दरभंगा, मधुबनी से पटना जाने वाले यात्री आथर होकर द्वारिका नगर चौक से सिलौत होते हुए सीधे महुआ रोड पहुंच जाएंगे।
उन्हें मुजफ्फरपुर शहर जाने की जरूरत ही नहीं होगी। इससे करीब 15 से 20 किमी दूरी कम हो जाएगी। अभय सिंह का कहना है कि न जनप्रतिनिधियों का ध्यान इस ओर गया और न ही किसी राजनीतिक दल ने अपने एजेंडे में इसे शामिल किया। जनता यदि इसे चुनावी मुद्दा बनाए तो कुछ न कुछ फलाफल भी निकलेगा। रामबाग चौरी आदर्श लोक कॉलोनी, कला संगम में दैनिक जागरण की ओर से शुक्रवार को आयोजित 'चुनावी चौपालÓ में ये बातें सामने आईं।
इन्होंने लिया भाग
अमित कुमार मिश्रा, साहिल सिन्हा, ज्योति कुमारी, मनीषा दास, नीलम वर्मा, रीना श्रीवास्तव, मधुलिका सिन्हा, अशोक कुमार सिंह, अभय सिंह, अमित कुमार, वीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव, राजेश कुमार, सुषमा कुमारी, अंकिता कुमारी। बरसात में टापू बन जाता गांव : बारिश के दिनों में या बाढ़ के समय आथर गांव ही नहीं, आसपास के अन्य इलाके जिला मुख्यालय से पूरी तरह कट जाते हैं। यह टापू बन जाता है।
उस समय शर्फुद्दीनपुर या बिंदा रूट भी सुरक्षित नहीं माना जाता। ऐसी स्थिति में केवल नाव ही सहारा रह जाता है। इस कार्य के पूर्ण होने की तिथि से दो वर्ष अधिक का समय गुजर गया, लेकिन काम अधूरा है। मुआवजा नहीं मिलने पर किसानों ने मात्र एक स्लैब के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी है। करीब डेढ़ किमी तक बालू में पैदल चलना पड़ता है। बारिश का दिन बहुत कष्टदायक होता है।
प्रसिद्ध चित्रकार अशोक कुमार सिन्हा ने कहा कि वर्तमान में पीपा पुल के सहारे आवागमन हो रहा। यदि प्रशासन ने उपेक्षा नहीं की होती तो यह पुल तय समय में बन गया होता। अब भूअर्जन में पेच फंसा है। चुनाव में स्थानीय लोगों के लिए यह बड़ा मुद्दा है।
रसायनशास्त्र शिक्षक डॉ. आरके वर्मा ने बताया कि हमारी प्रशासनिक व्यवस्था संवेदनशून्य है। बात एक आदमी के हित की हो या 15 लाख लोगों के, उनकी कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं आता। आथर घाट पुल का निर्माण अधूरा रहना वाकई चिंताजनक है।