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मुजफ्फरपुर: बाढ़ की नैहर में नावों पर टिकी आवाजाही, 23 नावों से 22 पंचायतों में बाढ़ की जंग जीतने की तैयारी

Muzaffarpur Flood मुजफफ्फरपुर के कटरा प्रखंड की 22 पंचायतों में 23 नावों से बाढ़ की जंग जीतने की तैयारी है। कटरा प्रखंड में प्रतिवर्ष बाढ़ का आना निश्चित है। बाढ़ के दौरान अप्रशिक्षित नाविक ही करते नावों का परिचालन।

By Murari KumarEdited By: Published: Sun, 20 Jun 2021 09:19 AM (IST)Updated: Sun, 20 Jun 2021 09:19 AM (IST)
मुजफ्फरपुर: बाढ़ की नैहर में नावों पर टिकी आवाजाही, 23 नावों से  22 पंचायतों में बाढ़ की जंग जीतने की तैयारी
बाढ़ की नैहर में नावों पर टिकी आवाजाही

मुजफ्फरपुर, जागरण संवाददाता। कटरा प्रखंड क्षेत्र को बाढ़ की नैहर कहा जाता है। प्रतिवर्ष बाढ़ का आना निश्चित है। कभी- कभी बाढ़ की विनाशलीला यादगार बन जाती है। इसे लेकर बाढ़ पूर्व तैयारी की समीक्षा प्रतिवर्ष प्रशासनिक स्तर पर होती है तथा संसाधनों की व्यवस्था की जाती है। इस बार भी प्रखंड में एसडीओ, डीसीएलआर, बीडीओ, सीओ आदि की बैठक में समीक्षा हुई जिसमें संसाधनों की कमी सामने आई। बाढ़ के समय बचाव के लिए सबसे महत्वपूर्ण संसाधन नाव है जिसकी प्रखंड में इसकी भारी किल्लत है। प्रखंड में महज छह नाव उपलब्ध है जिसके भरोसे बाढ़ की जंग जीतने की तैयारी की जा रही है। आपदा काल में अधिग्रहण के लिए निजी नावों की संख्या 17 है जिनका उपयोग किया जा सकता है। प्रखंड की 22 पंचायतों के लिए कुल 23 नावें हैं। बाढ़ आने पर एक ही पंचायत में कई नावों की जरूरत होती है। इसके अलावा अधिकारियों की निगरानी व जल प्लावित परिवार के बचाव के लिए अतिरिक्त नाव की जरूरत है। लेकिन, आपदा प्रभारी अंचलाधिकारी इसके प्रति गंभीर नहीं दिखते। उन्होंने सीधे लहजे में कहा कि जितनी मांग होती है, उतनी नाव कहां से आएगी।

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बताते चलें कि कटरा में बागमती पर निर्मित पुल जब 1998 में ध्वस्त हो गया तो विकल्प के रूप में नाव परिचालन शुरू किया गया। इस दौरान एक दिन नाव दुर्घटना में तीन लोग डूब गए। दो सगे भाइयों का शव दो दिनों बाद बरामद कर लिया गया। लेकिन, तीसरे युवक मिथिलेश कुमार का शव 9 दिनों बाद बरामद हुआ। नाविक बिकाऊ सहनी अप्रशिक्षित था। लिहाजा उसपर प्राथमिकी दर्ज की गई। गिरफ्तारी से बचने के लिए वह ऐसे भागा कि आज तक घर नहीं लौटा। यह घटना एक बानगी मात्र है।

प्रशिक्षण का अभाव

बाढ़ के समय प्रशिक्षित नाविकों की बजाए अप्रशिक्षित को भी नाविक बना दिया जाता है जिससे दुर्घटना की संभावना बनी रहती है। ऐसे ही एक नाविक बुधन सहनी से पूछा तो बताया कि प्रशिक्षण कहां लें। बचपन से बाढ़ देखते आए हैं और नाव खेने आ गया। अब जरूरत पर नाव चला लेते हैं। सिकंदर सहनी ने बताया कि बागमती किनारे जन्म हुआ। बचपन से ही नाव पर खेलते आए हैं। इसी क्रम में नाव चलाना आ गया। अब जरूरत पडऩे पर सरकारी नाव भी चलाते हैं।

इन गांवों में चलती नाव

प्रखंड के बकुची, बसघटृा, खंगुरा, नगवारा, गंगेया, भवानीपुर, तेहवारा, चंदौली, अंदामा, माधोपुर, लखनपुर, कटाई, यजुआर पश्चिम आदि ऐसे गांव हैं जहाँ कई स्थानों पर नाव चलाने की नौबत आती है। बड़े घाटों पर दो से चार नाव की जरूरत होती है। ऐसे में बाढ़ के समय जानमाल की सुरक्षा कैसे होगी-यह यक्ष प्रश्न है। कई बार बाढ़ पीडि़तों ने अधिकारी पर ही हमला बोल दिया और कानून-व्यवस्था की नौबत आ गई। अत: बाढ़ पूर्व ही संसाधनों की भरपाई की जरूरत है। इस मामले में प्रखंड फिसड्डी दिख रहा है।

इस संबंध में सीओ सुबोध कुमार ने कहा कि उपलब्ध संसाधनों द्वारा ही बाढ़ से सुरक्षा और बचाव का प्रयास किया जाएगा। समीक्षा बैठक में सभी बिंदुओं पर विचार किया गया है। किसी को डूबने नहीं दिया जाएगा।


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