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AES in Muzaffarpur: एईएस के 23 मरीजों में 18 स्वस्थ होकर लौटे घर, चार बच्चों की चली गई जान

AES in Muzaffarpur मुजफ्फरपुर में एईएस पीडित एक का चल रहा इलाज चार बच्चों की चली गई जान। मौसम की नरमी से मरीजों की संख्या में कमी की संभावना।

By Murari KumarEdited By: Published: Tue, 02 Jun 2020 09:18 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jun 2020 09:18 PM (IST)
AES in Muzaffarpur: एईएस के 23 मरीजों में 18 स्वस्थ होकर लौटे घर, चार बच्चों की चली गई जान
AES in Muzaffarpur: एईएस के 23 मरीजों में 18 स्वस्थ होकर लौटे घर, चार बच्चों की चली गई जान

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। गर्मी में बच्चों के लिए जानलेवा एईएस (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) के अबतक जिले में 23 मरीज आए। इनमें 18 स्वस्थ होकर लौट चुके हैं। एईएस    पर लगातार शोध पर शोध, लेकिन बीमारी रह गई अज्ञात। इस साल अबतक गर्मी का असर कम और मौसम की नरमी से मरीज भी अपेक्षाकृत आए हैं। जिला वेक्टर जनित रोग पदाधिकारी डॉ. सतीश कुमार ने बताया कि पिछले साल मई महीने में  सौ से ज्यादा बच्चे बीमार होकर आए थे। लेकिन इस बार यह संख्या कम है।

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एक बच्चे का चल रहा इलाज

जिले में इस साल 23 मरीज आए जिसमें 18 स्वस्थ होकर लौटे। अभी एक बच्चे का इलाज केजरीवाल अस्पताल में चल रहा है। जबकि चार बच्चों की मौत हुई है। जिन बच्चों की जान गई है उनमेंं सकरा का एक, मुशहरी के दो, औराई का एक बच्चा शामिल है। 

 एसकेएमसीएच में 42 बच्चे भर्ती हुए, जिनमें 33 स्वस्थ होकर गए। इनमें मोतिहारी के नौ, सीतामढ़ी के दो, शिवहर के चार, वैशाली के दो व पश्चिम चंपारण के दो बच्चे शामिल हैं। यहां सीतामढ़ी के एक व पश्चिम चंपारण के दो मरीजों का इलाज फिलवक्त चल रहा है।

बीमारी का प्रभाव कम होने ये ये हैं कारण 

- पीएचसी स्तर पर ही पीडि़त बच्चे का फस्र्ट एड हो जाता है।

- गर्मी का प्रभाव कम है। मौसम में नरमी है।

-पंचायत स्तर तक जागरूकता के लिए प्रचार-प्रसार व गांवों में चमकी को धमकी अभियान प्रभावी रूप से चल रहा है।

ऐसे हो रही बचाव की पहल 

इस साल पहली बार सर्वाधिक  प्रभावित 169 गांवों को जिलाधिकारी डॉ. चंद्रशेखर सिंह की देखरेख में गांवों को गोद लेकर वहां जागरूकता के साथ गरीबों को सरकारी योजनाओं के लाभ की पड़ताल की जा रही है। मौत की दर कम हो, इसके लिए इस बार विभाग ने नई रणनीति बनाई है। इसके तहत आशा, एएनएम, ग्रामीण चिकित्सकों को जागरूक व प्रशिक्षित किया गया है। मार्च के पहले सप्ताह में पीएचसी तक तय मानक के मुताबिक दवा व उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं। 

 जिला वेक्टर जनित रोग पदाधिकारी डॉ. सतीश कुमार ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग के साथ इस बार यूनिसेफ व अन्य संस्था की टीम बीमारी के बचाव में सहयोग कर रही है। बीमार बच्चों के खून, पेशाब, रीढ़ के पानी का नमूना संग्रह किया गया। आरएमआरआइ पटना, पुणे, सीडीसी दिल्ली व अटलांटा की टीम ने संग्रहित नमूनों की जांच की। इनकी जांच रिपोर्ट में बीमारी का कारण वायरस नहीं मिला।

बीमारी रोकथाम को कई विभाग एक साथ कर रहे काम

रोकथाम के लिए संयुक्त अभियान की योजना बनी है। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने विभिन्न विभाग से समन्वय बनाया है। पशुपालन विभाग, मत्स्य पालन, आइसीडीएस, पीएचईडी, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, जिला पंचायतीराज, जिला शिक्षा विभाग, महिला समाख्या समिति, आपूर्ति विभाग, सूचना व जनसंपर्क विभाग, जिला वेक्टर जनित रोग विभाग की संयुक्त टीम बनी है। ये टीमें अपने-अपने स्तर से जागरूकता अभियान चला रही हैं और आगे शोध में सहयोग करेंगी।

इन बातों का रखें ध्यान 

- कुपोषण से बचाव के लिए बच्चों के खान-पान पर दें ध्यान। उन्हें दिन में चार से पांच बार भोजन कराएं।

- बच्चों को सारा टीकाकरण अवश्य कराएं। खासकर उन्हें जेई वैक्सीन जरूर लगे।

- रात में बच्चा भूखा नहींं रहे।

- धूप में बच्चों को न जाने दें, खूब पानी पिलाएं।

- बच्चे को तेज बुखार होने पर तुरंत सरकारी अस्पताल ले जाएं।

- ओझा व बगैर डिग्री वाले चिकित्सकों के चक्कर में न पड़ें।

इस बारे में सिविल सर्जन डॉ.एसपी सिंह ने बताया क‍ि पीएचसी से लेकर सदर अस्पताल तक इलाज की व्यवस्था है। कोरोना को लेकर थोड़ी परेशानी है। लेकिन शारीरिक दूरी का पालन करते हुए जागरूकता अभियान चल रहा है। हर पंचायत में एंबुलेंस के अतिरिक्त निजी वाहन को चिह्नित बीमार बच्चे को अस्पताल लाने की व्यवस्था है।

एसकेएमसीएच के शिशु रोग विभागध्यक्ष डॉ. गोपाल शंकर साहनी ने कहा क‍ि शोध में बीमारी का मुख्य कारण गर्मी, नमी व कुपोषण सामने आया है। इसका प्रकाशन इंडियन पीडियेट्रिक जर्नल में हुआ है। 


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