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पश्चिमी दियारे के नक्सली क्षेत्र का 'रंग' बदलेगा खरबूजा

मुजफ्फरपुर। कहते हैं खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। इस बार तो जिले के नक्सल प्रभाव वाले पश्चिम

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Feb 2018 02:38 AM (IST)Updated: Thu, 15 Feb 2018 02:38 AM (IST)
पश्चिमी दियारे के नक्सली क्षेत्र का 'रंग' बदलेगा खरबूजा
पश्चिमी दियारे के नक्सली क्षेत्र का 'रंग' बदलेगा खरबूजा

मुजफ्फरपुर। कहते हैं खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। इस बार तो जिले के नक्सल प्रभाव वाले पश्चिमी दियारे का रंग ही खरबूजा बदलने वाला है। इस साल इस क्षेत्र के किसान मल्चिंग विधि से बड़े पैमाने पर खरबूजे की खेती करेंगे। उन्हें इसके लिए तकनीकी ज्ञान व प्रशिक्षण सरैया के भटौलिया स्थित मुजफ्फरपुर बॉटनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एमबीआरआइ) की ओर से उपलब्ध कराया जा रहा है।

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बोए जा रहे बीज : खरबूजा की बुआई के लिए समय अनुकूल है। जिले के सरैया, पारू, साहेबगंज व पड़ोसी वैशाली जिले के लालगंज में खरबूजा की खेती की तैयारी चल रही है। वैसे तो इस इलाके में पहले भी इक्के-दुक्के खरबूजे की खेती होती थी, लेकिन एमबीआरआइ के प्रयास से इस साल सौ हेक्टेयर में खेती की जा रही है। पारू के मनीष कुमार, कांटी के धीरज कुमार, कुढ़नी के श्याम बिहारी, सरैया के जितेंद्र व अर्जुन भगत ने बताया कि मल्िचग विधि से खरबूजा की खेती शुरू की है। इसके लिए प्रशिक्षण भी लिया है।

नई तकनीक बदल रही अवधारणा : अब तक यह अवधारणा थी कि खरबूज की खेती रेतीली मिट्टी में ही हो सकती है। मल्िचग विधि इस अवधारणा को समाप्त करने जा रही है। इस विधि से दोमट मिट्टी में भी खेती संभव है। मात्र 55 दिनों में फसल तैयार हो जाएगी। कम समय में किसानों को बेहतर लाभ मिलेगा। इस विधि से कृषि कार्य में पानी कम लगता है। पौधे का विकास बेहतर होता है और फल भी चमकीला होता है।

बॉबी व तिरीसा प्रभेदों का चयन : मल्िचग विधि से खेती के लिए बॉबी व तिरीसा प्रभेदों का चयन किया गया है। यह अन्य प्रभेदों से अलग है। इसकी मिठास अन्य से ज्यादा है। एक सप्ताह तक इसे सुरक्षित रखा जा सकता है। दूर तक पहुंचाने में समय मिल जाता है। एक एकड़ की खेती में लगभग 70 से 75 हजार रुपये लागत आती है। इससे डेढ़ से दो लाख रुपये की आय होती है।

क्या है मल्चिंग विधि : खेत में लगे पौधे की जमीन को चारों तरफ से प्लास्टिक से सही तरीके से ढकने की प्रणाली को मल्चिंग कहते हैं। तकनीक से खेत में नमी बनी रहती है और वाष्पीकरण रुकता है। मिट्टी का कटाव भी नहीं होता। इससे खर-पतवार को रोका जा सकता है। इसके लिए सौ माइक्रॉन वाली प्लास्टिक का प्रयोग किया जाता है। एक एकड़ में इसे लगाने में लगभग आठ हजार रुपये की लागत आती है।

क्षेत्र के किसानों व युवाओं को खेती की इस विधि से अवगत कराया गया है। इससे क्षेत्र की तस्वीर व सोच बदलने जा रही है। बड़ी संख्या में किसान खरबूजा की खेती को लेकर आगे आए हैं।

-अविनाश कुमार

संस्थापक, एमबीआरआइ, भटौलिया

मल्चिंग तकनीक किसानों के लिए वरदान है। बदलते मौसम में वर्षा कम होने से फसलों को उगाने में कठिनाई हो रही है। इससे पानी की बचत हो रही है। उपज भी दोगुनी होती है।

-डॉ. केके सिंह

कृषि वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, सरैया।


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