मन में कोई कुंठा नहीं, कोई संकीर्णता नहीं, उसे स्वर्ग कहते हैं
संवाद सहयोगी जमालपुर (मुंगेर) जमालपुर व आसपास से बड़ी संख्या में आनंद मार्गी के धर्म महासम्
संवाद सहयोगी, जमालपुर (मुंगेर) : जमालपुर व आसपास से बड़ी संख्या में आनंद मार्गी के धर्म महासम्मेलन में भाग ले रहे हैं। कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए निकटवर्ती आनंद नगर में आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से विश्वस्तरीय धर्म महासम्मेलन के पहले दिन ब्रह्म मुहूर्त में साधक-सधिकाओं ने गुरु सकाश व पा†चजन्य में बाबा नाम केवलम का गायन कर वातावरण को मंत्रमुग्ध कर दिया। पुरोधा प्रमुख जी के पंडाल पहुंचने पर कौशिकी व नृत्य किया गया। प्रभात संगीत का अनुवाद हिदी में आचार्य अवधूत, अंग्रेजी में आचार्य रागानुगानंद अवधूत व बांग्ला में अवधूतिका आनंद दयोतना आचार्या ने किया। साधकों को संबोधित करते हुए आनंद मार्ग प्रचारक संघ के पुरोधा प्रमुख श्रद्धेय आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने कहा की विस्तारित मन ही बैकुंठ है। मन के संकुचित अवस्था में आत्मा का विस्तार संभव नहीं है। इस संकुचित अवस्था को हटा दिया जाए, दूर कर दिया जाए तो मन में स्वर्ग की स्थापना हो जाती है। इसलिए बाबा कहते हैं विस्तारित हृदय ही वैकुंठ है। जहां मन में कोई कुंठा नहीं है, कोई संकीर्णता नहीं है, उसे ही स्वर्ग कहते हैं।
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कृष्ण चिता का भाव समझें भक्त
भक्त कहता है कि मैं हूं और मेरे परम पुरुष हैं दोनों के बीच में कोई और तीसरी सत्ता नहीं है। मैं किसी तीसरे सत्ता को मानता ही नहीं हूं।इस भाव में मनुष्य प्रतिष्ठित होता है तो उसी को कहेंगे ईश्वर प्रेम में प्रतिष्ठा, भगवत्प्रेम में प्रतिष्ठा हो गई। यही है भक्ति की चरम अवस्था। चरम अवस्था में भक्त के मन से जितने भी ईष्र्या, द्वेष, घृणा , भय, लज्जा , शर्म ,मान, मर्यादा, यश -अपयश इत्यादि के भाव समाप्त हो जाते हैं। उनका मन सरल रेखा कार हो जाता है और उनमें ईश्वर के प्रति भक्ति का जागरण हो जाता है। पुरोधा प्रमुख ने ईश्वरीय प्रेम युक्त भक्तऔर तथाकथित कुंठाग्रस्त मन वाले भक्त के चरित्र चित्रण कृष्ण के सिर दर्द वालीकथा के माध्यम से समझाया। इस आयोजित धर्म सम्मेलन की जानकारी आनंद मार्ग के केंद्रीय जन संपर्क सचिव आचार्य हरीशानन्द अवधूत ने दिया।