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सवयंभू मनु व सतरूपा की कठोर तपस्या की कहानी सुन भाव विभोर हुए श्रद्धालु

मुंगेर। शहीद विश्वनाथ सिंह खेल मैदान में आयोजित श्री राम कथा ज्ञान यज्ञ महोत्सव के अवसर पर रायब

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 08:05 PM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2019 08:05 PM (IST)
सवयंभू मनु व सतरूपा की कठोर तपस्या की कहानी सुन भाव विभोर हुए श्रद्धालु
सवयंभू मनु व सतरूपा की कठोर तपस्या की कहानी सुन भाव विभोर हुए श्रद्धालु

मुंगेर। शहीद विश्वनाथ सिंह खेल मैदान में आयोजित श्री राम कथा ज्ञान यज्ञ महोत्सव के अवसर पर रायबरेली उत्तर प्रदेश से आई कथा वाचिका स्वाति शर्मा ने भगवान श्री राम के अवतार से पूर्व की कथा सुनाई। उन्होंने महाराज स्वयंभू मनु और उनकी पत्नी महारानी सतरूपा द्वारा भगवान के समान ही पुत्र स्वरूप पुत्र की कामना की थी। स्वाति शर्मा ने कहा कि महाराज स्वयंभू मनु और उनकी पत्नी महारानी शतरूपा से मनुष्य जाति की अनुपम सृष्टि की रचना हुई। जब उन्हें शासन करते बहुत समय बीत गया और बुढ़ापा आ गया तो उन्हे चिता हुई कि सारा जीवन भक्ति बिना ही बीत गया। पुत्र उत्तानपाद को राज सौंप दोनों ने प्रसिद्ध नैमिषारण्य तीर्थ की ओर गमन किया। जहां दोनों ने द्वादश अक्षर मंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय का जाप किया। उनके मन में एक ही लालसा थी की प्रभु दर्शन हो जाएं। वह फलाहार करते और हरि का स्मरण करते। कुछ समय बाद वे श्रीहरि के लिए कठोर तप करने लगे और फलों का त्याग कर केवल जल पर रहने लगे। मन में प्रभु को देखने की प्रबल अभिलाषा थी। इसी प्रकार तप करते जब उन्हें छह हजार वर्ष बीत गए तो जल भी छोड़ दिया और केवल वायु पर तप करने लगे। जब 10 हजार वर्ष बीत गए तो वायु का भी त्याग कर दिया और दोनों एक एक पांव पर खड़े होकर कठोर तपस्या करने लगे। उनकी ऐसी अडिग आस्था देखकर भगवान ब्रम्हा, विष्णु व शंकर कई बार मनु के समीप आए और लालच दिए। कितु दोनों ने आंखें नहीं खोली। उनके शरीर बस अस्थियों का ढांचा रह गया और उनके मन में जरा भी पीड़ा नहीं थी। उनकी तपस्या से श्री प्रभु प्रसन्न और संतुष्ट हुए और आकाशवाणी से बोले कि वर मांगों। आकाशवाणी सुनकर दोनों के शरीर हष्ट पुष्ट हो गए।

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सुश्री शर्मा ने कहा कि वे दोनो दंडवत हो बोले की प्रभु यदि आप प्रसन्न हैं तो कृपया हमें अपना वह स्वरूप दिखाएं जो शिवजी और काग भुसुंडी जैसे आपके परम भक्तों के मन में सदैव बना रहता है। इस पर सर्व समर्थ भगवान अपने मेघ के सामान श्याम वर्ण रूप में प्रकट हुए। श्री हरि भगवान के दर्शन पाकर मनु ओर शतरूपा खुश हो गए और प्रभु के चरणों से लिपट गए। भगवान ने उन्हें उठाया और कहा कि मनचाहा वरदान मांगो।

मनु महाराज बोले कि हे प्रभु आपसे क्या छिपाना, मुझे आपके सामान पुत्र चाहिए। इस पर भगवान ने वरदान देते हुए कहा कि राजन मैं स्वयं आपके पुत्र रूप में आऊंगा। महारानी सतरूपा ने भी कहा कि जो वह मेरे पति महाराज मनु ने मांगा मुझे भी वहीं अच्छा लगा। कुछ समय पश्चात मनु और शतरूपा अयोध्या के राजा दशरथ और महारानी कौशल्या के रूप में जन्म लिए और सर्वशक्तिमान सर्वेश्वर भगवान उनके घर इच्छा निर्मित मनुष्य रूप में श्री राम होकर आए।


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