अवैध हथियारों का हब बना मुंगेर, यहां रूसी एके-47 की नकल कर बनी पहली 'लोकल मेड'
बिहार का मुंगेर जिला अवैध हथियारों के निर्माण के लिए बदनाम रहा है। अब तो यहां लोकल मेड एके 47 रायफल्स भी बनने लगे हैं। यहीं रूसी एके-47 की तरह पहली लोकल मेड एके 47 बनाई गई थी।
भागलपुर [कौशल किशोर मिश्र]। अवैध हथियारों के निर्माण के लिए बदनाम बिहार के मुंगेर में अब लोकल मेड एके 47 भी बनने लगे हैं। नक्सलियों से लेकर बड़े अपराधियों व आतंकियों तक में इनकी डिन्मांड है। बताया जाता है कि मुंगेर में रूसी एके-47 की नकल कर पहली 'लोकल मेड' एके 47 बनाई गई थी।
पूर्वोत्तर में सक्रिय संगठन उल्फा से जुड़े एक उग्रवादी के जरिये 1995 में पहली बार रूसी एके-47 मुंगेर लाया गया था। ऐसा कहा जाता है कि असम के न्यू बोगाई गांव इलाके में रहने वाले समद नामक ट्रक ड्राइवर का रिश्ता मुंगेर के बरदह गांव के अवैध हथियार निर्माता और तस्करों से था।
समद सिल्चर से लकड़ी लेकर बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश तक का सफर करता था। उसने न्यू बोगाई गांव में ही उग्रवादी और मुंगेर निवासी तस्कर की डील कराई थी। फिर ट्रक में ही छिपाकर एक एके-47 मुंगेर के बरदह लाया गया था। यहां स्थानीय कारीगरों ने उसकी नकल कर लोकल मेड एके-47 बना डाला।
शुरू में तो कट्टा, सिंगल शॉट, डबल बैरल, मस्केट, राइफल, कार्बाइन, सिक्सर और पिस्टल की डिमांड करने वाले इस घातक शस्त्र की उपयोगिता को संभालने लायक नहीं थे। लेकिन कुछ समय बाद इस घातक हथियार की डिमांड बड़े सरगना, उग्रवादी संगठन और नक्सली संगठनों को होने लगी।
आगे चलकर अर्धसैनिक बलों से लोहा लेने के लिए नक्सलियों, ठेकेदारों और आपराधिक वर्चस्व की लड़ाई में लोकल मेड एके-47 की खरीद करने वालों की तादाद बढऩे लगी। तस्करों ने कूट भाषा में उसका तड़तडिय़ा नाम भी दे दिया।
कहा जाता है तब उल्फा उग्रवादियों को बड़े पैमाने पर सीमा पार से रूसी एके-47 मुहैया कराए गए थे। उस दौर में देवेंद्र दुबे और डॉन सतीश पांडेय को भी असम के उग्रवादियों से ही रूसी एके-47 मिले थे। उस दौर में ठेकेदार अनिल राय, जेपी यादव, बृजेश राय और पुलिस सर्किल इंस्पेक्टर की हत्या में एके-47 का इस्तेमाल किया गया।
देवेंद्र दुबे समेत उनके कई समर्थकों को 25 फरवरी 1998 में एके-47 से ही भून दिया गया था। उसी हत्या के प्रतिकार में बिहार सरकार के कैबिनेट मंत्री रहे बृज बिहारी प्रसाद को 13 जून 1998 में पटना के आइजीएमएस में ही रूसी एके-47 से भून दिया गया था।
बदलते दौर में सीमांचल के नार्थ लिबरेशन आर्मी को भी उल्फा उग्रवादियों से हथियार मुहैया कराने की बात चर्चा में आई। पुरुलिया हथियार कांड में भी इस घातक हथियार की चर्चा सूबे में खूब रही थी।
नक्सलियों को डेढ़ से दो लाख में बेचे गए लोकल मेड एके-47
लोकल मेड एके-47 शुरुआती दौर में बरदह गांव से नक्सलियों को महज डेढ़ से दो लाख रुपये में ही मुहैया कराया जाने लगा। झारखंड के गिरीडीह और बुंडु और उड़ीसा में सक्रिय नक्सलियों के अलावा बिहार के जमुई, चकाई, झाझा, लखीसराय, कजरा और चरकापाथर के जंगलों में सक्रिय नक्सलियों को लोकल मेड हथियार बड़े पैमाने पर बेचे गए।
लेवी से मिली रकम से आसानी से नक्सली संगठन लोकल मेड 47 खरीदने लगे। सेंट्रल आर्डिनेंस डिपो जबलपुर से चोरी की गई 70 एके-47 की खेप मुंगेर लाए जाने के बाद उसे कई आपराधिक गिरोह और नक्सलियों के बीच बेचे जाने की बात अबतक की जांच में सामने आ ही चुकी है।
बरदह गांव ही एके-47 की चोरी का केंद्र बिंदु बन कर सामने आया है। सीओडी जबलपुर से चोरी कर लाए गए एके-47 की बरामदगी का आंकड़ा अब तक एक दर्जन भी नहीं पहुंच सका है।