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छठ में बदला बदला सा है गांव का माहौल, बिखरी है खुशियां

मुंगेर। छठ में लोग अपने गांव आ गए हैं। 2 जून की रोटी के लिए प्रदेश रह कर काम आने वाले

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 09:24 PM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 09:24 PM (IST)
छठ में बदला बदला सा है गांव का माहौल, बिखरी है खुशियां
छठ में बदला बदला सा है गांव का माहौल, बिखरी है खुशियां

मुंगेर। छठ में लोग अपने गांव आ गए हैं। 2 जून की रोटी के लिए प्रदेश रह कर काम आने वाले परदेसी के वापस आने से गांव में रौनक लौट आई है। लोक आस्था का महापर्व को लेकर साल भर लोग कहीं भी रहे। लेकिन पर्व में अपने घर जरूर आते हैं। गांव में जिन के माता-पिता जीवित हैं। वह इस आश में सालों भर रहते हैं कि बेटे या बहू होली दीपावली में आए ना आए लेकिन छठ में जरूर आएंगे। कोई ट्रेन से तो कोई प्लेन से ट्रेन और प्लेन नहीं मिला तो कोई अपने पर्सनल वाहन से ही गांव चले आते हैं। गांव में लोगों के आने से छठ में गांव की अनूठी छटा देखने को मिल रही है।

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क्या कहते हैं वापस आने पर परदेसी उड़ीसा मे रहने वाले पप्पू ने कहा कि भले ही मैं अन्य किसी त्योहार में घर न आऊं, पर छठ में घर पहुंच ही जाता हूं। ट्रेन में इतनी भीड़ थी कि रेलवे स्टेशन और ट्रेनों में पैर रखने तक की जगह नहीं थी। लेकिन छठ मनाने आने वाले लोगों की भीड़ के सामने सारी व्यवस्था बौनी नजर आई।

नया गांव के अमित कुमार फंटूश मुंबई रेलवे में कार्यरत है। छठ पर अपने गांव आने से खुद को रोक नहीं पाए। उन्होंने कहा कि छठ मुंबई में भी मनाया जाता है। परिवार के साथ वहां रहता हूं। लेकिन अपने गांव में छठ मनाने की बात ही निराली है ।

पेशे से फैशन डिजाइनर अमल कुमार उर्फ डब्बू नीति बाग रायसर में रहते हैं। वे गुजरात में जॉब करते हैं। उन्होंने कहा कि हर साल दीपावली, दुर्गा पूजा या होली में घर आऊं ना आऊं, लोक आस्था के महापर्व में घर आने के लिए महीने पूर्व भी तैयारी कर लेता हूं। इस बार अपने गुजराती दोस्त अमन और जितेंद्र को साथ लाया हूं। उनकी जिद थी कि बिहार में छठ देखने जाऊंगा।

नीरज मुंबई में रहकर प्रोडक्शन हाउस में ड्राइवर का काम करते हैं। नीरज ने कहा कि मैं प्रत्येक छठ अपने घर आता हूं।

आशुतोष नोएडा में सरकारी अस्पताल में चिकित्सक के पद पर कार्यरत हैं। छठ में घर आने का जुनून डॉक्टर साहब पर इतना सवार हुआ कि वे अपने वाहन से ही घर पहुंच गए। मध्य प्रदेश सहकारिता विभाग के डीसी के पद पर कार्यरत सुनील कुमार ¨सह को भी जब आने का कोई साधन नहीं मिला तो वह अपने परिवार सहित चार चक्का वाहन से ही हजारों किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश मुरैना से बाय रोड मुंगेर अपने गांव ¨बदवाड़ा पहुंच गए। उन्होंने कहा कि परिवार के साथ अस्ताचल गामी और उदयीमान सूर्य को अ‌र्घ्य देने की बात ही निराली है। साल में छठ पर्व एक जरिया बनता है कि बिछड़े दूर रह रहे भाइयों से मिलने का।

ौट आए हैं और अपने साथ चमचमाती कार भी लाए हैं।


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