थोड़े से जल से ही अतिप्रसन्न होते शिव
मधुबनी। धर्मग्रंथों में श्रावण शिव का माह कहा गया है। भगवान शिव त्रिनेत्रधारी के रूप में भी पूजा-अर्चना की जाती है।
मधुबनी। धर्मग्रंथों में श्रावण शिव का माह कहा गया है। भगवान शिव त्रिनेत्रधारी के रूप में भी पूजा-अर्चना की जाती है। शिव पुराण में भगवान शिव की एक आंख चंद्रमा, दूसरी सूर्य व तीसरी आंख अग्नि के रूप का उल्लेख मिलता है। त्रिनेत्रधारी महज जलाभिषेक से ही प्रसन्न होते हैं। श्रावण माह की आध्यात्मिक महत्ता पर चर्चा करते हुए मंगरौनी भुवनेश्वरी माता मंदिर के पंडित व प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पीताबंर झा कहते हैं कि समुद्र मंथन के समय विषपान के बाद भगवान शिव का शरीर ताप से भर गया। इसे शीतलता के लिए जल की आवश्यकता पड़ी। फिर जमकर वर्षा होती रही। ताकि, भगवान शिव का ताप कम हो सके। यह माह सावन का ही था। इसीलिए इस माह में लोग पवित्र जलाशयों के जल से शिव का अभिषेक करते हैं। इससे भगवान शिव अतिप्रसन्न होते हैं। भगवान शिव व्रतियों के सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। थोड़े से जल से ही भगवान शिव अतिप्रसन्न हो जाते हैं। श्रावण माह के सोमवार को व्रत का विशेष महत्व होता है। शिव आराधना में व्रत आवश्यक है। शिव आराधना के समय ललाट पर त्रिपुंडधारण रुद्राक्ष की माला का धारण करना चाहिए। शिव आराधना के साथ महारुद्राभिषेक अनुष्ठान से समाज का कल्याण होता है। सावन में शिव आराधना से भक्तों को विद्या, बुद्धि, आरोग्यता की प्राप्ति होती है। धार्मिक अनुष्ठान की पवित्रता बहाल रखना निहायत जरूरी होता है। कोरोना को देखते हुए शिव भक्तों को घर में शिव की आराधना करना उचित होगा।