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रोजी-रोटी की तलाश में शहरों में जाने को विवश, विकास की दरकार

पिलखबाड़ का नाम आते ही एक ऐसे गांव की तस्वीर सामने आती है जिसमें मिश्रित आबादी बसती है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 12 Apr 2019 10:59 PM (IST)Updated: Fri, 12 Apr 2019 10:59 PM (IST)
रोजी-रोटी की तलाश में शहरों में जाने को विवश, विकास की दरकार
रोजी-रोटी की तलाश में शहरों में जाने को विवश, विकास की दरकार

मधुबनी। पिलखबाड़ का नाम आते ही एक ऐसे गांव की तस्वीर सामने आती है, जिसमें मिश्रित आबादी बसती है। यह गांव झंझारपुर लोकसभा में राजनगर प्रखंड के अधीन आता है। यहां की आबादी के गुजर-बसर का मुख्य जरिया खेती, पशुपालन, मजदूरी है। रोजी-रोजगार के लिए पलायन करने की भी विवशता है। जिला मुख्यालय से महज ढ़ाई किमी दूर स्थित इस गांव में अभी भी बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। शासन-प्रशासन ने इस गांव को उपेक्षित ही छोड़ रखा है। इस गांव के सैकड़ों गरीब अभी भी शुद्ध पेयजल, एक अदद छत, शौचालय के लिए तरस रहे हैं। एक सरकारी चापाकल पानी के साथ रेत भी निकलता है। कई तारा पंप खराब होकर प्यासों को मुंह चिढ़ा रहा है। सिचाई का समुचित साधन नहीं रहने के कारण खेती घाटे का सौदा साबित हो रहा है। स्टेट बोरिग दो वर्षों से बंद पड़ा है। विद्युत पोल एवं जर्जर तार के कारण हमेशा हादसे की आशंका बनी रहती है। गांव की गलियां अपने पक्कीकरण होने का बाट जोह रहा है। जलनिकासी की समुचित व्यवस्था नहीं रहने के कारण कई माह तक जलजमाव की समस्या से भी ग्रामीणों को जूझना पड़ता है। हर घर-नल का जल योजना भी इस गांव में धतारल पर नहीं उतर पाई है। स्वास्थ्य उपकेन्द्र भी सफेद हाथी साबित हो रहा है। हाईस्कूल भी इस गांव में नहीं है। कहने को तो संस्कृत उच्च विद्यालय है, लेकिन यह भी मृतप्राय ही है। गन्ना किसानों को चीनी मिलों के बंद होने की मार झेलनी पड़ रही है। इस गांव के सैकड़ों परिवारों का कोई न कोई सदस्य रोजी-रोटी के लिए पलायन कर चुके हैं। पशुपालकों के लिए यहां एक अदद मवेशी अस्पताल तक नहीं है। इधर लोकसभा चुनाव की बिगुल फूंका जा चुका है। वोट के लिए नेता मतदाताओं के दरवाजे पर दस्तक देने लगे हैं। लेकिन पिलखबाड़ अपने भावी सांसद से क्या चाहता है, इस पर दैनिक जागरण ने जागरण चौपाल का आयोजन कर किसानों, मजदूरों, व्यापारियों व गणमान्य लोगों से इस लोकसभा क्षेत्र के प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की।

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------------------ केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार जो भी योजनाएं बनाती है उसे पारदर्शी तरीके से इमानदारी से धरातल पर उतारनी चाहिए। अगर सरकार ऐसा नहीं कर पाती है तो फिर योजनाए बनाने का क्या मतलब। किसान, मजदूर, गरीब, कमजोर वर्ग, छोटे-छोटे व्यापारी के मांगों को भी गंभीरता से सरकार को लेनी चाहिए।

भागेश्वर यादव, पूर्व मुखिया, पिलखबाड़।

------------------ भारत की आत्मा गांवों में बसती है। भारत कृषि प्रधान देश है। अन्नदाता गांव में ही रहते हैं। गांव की पहचान अभी भी प्राय: गरीबी से ही होती है। जिस कारण सरकार को गांवों, किसानों, खेतिहर मजदूरों आदि को खुशहाल बनाने के लिए असरदार नीति बनाकर धरातल पर उतारना चाहिए।

राम सेवक ठाकुर, व्यापारी।

-------------- गांवों को भी बुनियादी सुविधाओं से लैस करना चाहिए गांवों को भी बुनियादी सुविधाओं से लैस करना चाहिए। ताकि शहरों की ओर पलायन पर ब्रेक लग सके। गांवों में अभी भी बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। गांवों को अभी भी कच्ची गलियों से निजात नहीं मिला है। अभी भी कई ग्रामीण सड़कें कच्ची है। गांवों में रोजगार का अभाव है।

शंभू यादव, समाजसेवी।

---------------- पशुपालकों की समस्याओं का भी समाधान होना चाहिए सरकार को चाहिए कि पशुपालकों की समस्याओं पर भी ध्यान दें। पशुपालकों की समस्याओं का भी हल करे। पशुपालकों को अच्छी नस्ल की दुधारू पशु उपलब्ध कराने के लिए आसान नीति बनानी चाहिए। ताकि पशुपालन की ओर लोगों को रुझान बढ़ सके।

उत्तीम लाल यादव, पशुपालक।

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