आस्था के मौसम में घाट को सजाया, फिर वहीं फेंक रहे कचरा
मधुबनी। दस दिन पहले जिन घाटों पर रंग-बिरंगी रौशनियां फैली हुई थीं जिन घाटों पर आस्था
मधुबनी। दस दिन पहले जिन घाटों पर रंग-बिरंगी रौशनियां फैली हुई थीं, जिन घाटों पर आस्था और भक्ति के साथ छठ व्रतियों ने सूर्य भगवान को अर्घ्य अर्पण कर आराधना की, उन घाटों पर एक बार फिर गंदगी का साम्राज्य कायम होने लगा है। आस्था के महापर्व के लिए दिन-रात मेहनत कर नगर परिषद सहित स्थानीय लागों ने जिन घाटों की साफ-सफाई कर चकाचक कर दिया, एक बार फिर उन घाटों पर जाने से पहले नाक पर रुमाल रखने की नौबत बनती जा रही है। मानों छठ बीतते ही उन घाटों की जरूरत और महत्व भी समाप्त हो गए हों। नगर परिषद हो या फिर स्थानीय लोग, मानो उनकी जवाबदेही भी छठ के साथ ही खत्म हो गई। क्या अब इन घाटों को एक बार फिर अगले साल के छठ का इंतजार करना पड़ेगा, जब लोगों के साथ ही प्रशासन को भी इनकी याद आएगी, आज यह एक यक्ष प्रश्न बन चुका है।
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छठ में भी कई तालाब रहे उपेक्षित : हालांकि, सच तो यही है कि कई तालाब तो छठ के दौरान भी उपेक्षित ही रह गए। नगर परिषद प्रशासन की लापरवाही कहें या मानव संसाधन के उचित प्रबंधन की कमी, कई तालाबों में छठ घाटों की सफाई स्थानीय लोगों पर ही निर्भर रही। नतीजा यह हुआ कि तालाबों की पूरी सफाई भी नहीं हो सकी। ऐसे में एक बार फिर गंदगी के विस्तार से तालाबों की स्थिति का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। जिन तालाबों में सफाई हुई भी, उसे संतोषप्रद नहीं कहा जा सकता। कई तालाबों में गंदे जल में ही छठ व्रतियों ने अर्घ्य दिया था।
------------------ बिगड़ने लगी तालाबों की सूरत : छठ बीतते ही तालाबों की सूरत भी बदलनी शुरू हो गई है। तालाबों के शहर कहे जाने वाले मधुबनी में तालाबों की दुर्दशा कोई नई बात नहीं है। जिन तालाबों के जल से कभी लोगों के घर में भोजन पका करता था, उन तालाबों के जल से आज कोई कुल्ला करने को भी तैयार नहीं है। शहर का प्रसिद्ध गंगासागर तालाब हो या नगर परिषद तालाब, सूडी स्कूल तालाब हो या फिर मुरली मनोहर तालाब या फिर शहर के अन्य तालाब, कमोबेश सभी तालाबों की स्थिति एक जैसी ही है। छठ के समय तो इन तालाबों पर सबकी नजर होती है पर छठ बीतते ही कोई इनकी तरफ नजर उठा कर देखता तक नहीं।
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स्थानीय लोग भी कर रहे उपेक्षा : तालाबों की दुर्दशा के लिए केवल प्रशासन को ही कसूरवार मानना भी तर्कसंगत नहीं लगता। इसके प्रति स्थानीय लोगों की भी जवाबदेही से इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन, हालत ऐसी है कि छठ समाप्त होते ही लोगों के घरों का कचरा तालाबों में गिरना शुरू हो गया है। तालाबों के किनारे पशुओं का विचरण भी शुरू है। शहर के प्रमुख तालाबों पर गौर करें तो शायद ही कोई तालाब मिले जिसके चारों ओर पॉलिथिन सहित अन्य कचरा पड़ा ना मिले। ऐसे में तालाबों की सुरक्षा और सफाई के लिए आम लोगों को भी अपनी जवाबदेही समझनी होगी।
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लोगों को बदलनी होगी मानसिकता : मुख्य पार्षद मुख्य पार्षद सुनैना देवी का मानना है कि तालाबों की साफ-सफाई के लिए लोगों को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। छठ के मौके पर नगर परिषद की ओर से सघन सफाई अभियान चलाया जाता है। नगर परिषद तो सफाई के लिए जिम्मेवार है ही, लोगों को भी अपनी जवाबदेही समझनी होगी। लोगों को समझना होगा कि जिन तालाबों में हम आस्था के साथ छठ मनाते हैं, उसे हमें पूरे साल साफ रखना चाहिए। नगर परिषद की ओर से तालाबों के सौंदर्यीकरण की कई योजनाओं पर काम चल रहा है। हम सौंदर्यीकरण तो कर देंगे पर उसे कायम रखना आम लोगों के सहयोग के बिना संभव नहीं।