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प्राचीन काल के अमरावती नदी स्थल से पुरातात्विक साक्ष्य मिलने की संभावना बढ़ी

मधुबनी। सरिसवपाही से होकर गुजरने वाली प्राचीन कालीन अमरावती नदी से उस समय के काफी अवशेष

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Apr 2021 12:00 AM (IST)Updated: Mon, 12 Apr 2021 12:00 AM (IST)
प्राचीन काल के अमरावती नदी स्थल से पुरातात्विक साक्ष्य मिलने की संभावना बढ़ी
प्राचीन काल के अमरावती नदी स्थल से पुरातात्विक साक्ष्य मिलने की संभावना बढ़ी

मधुबनी। सरिसवपाही से होकर गुजरने वाली प्राचीन कालीन अमरावती नदी से उस समय के काफी अवशेष व अन्य जानकारियां मिलने की संभावना जाग उठी है। अंचल अधिकारी पंकज कुमार शुक्रवार को पंडौल थानाध्यक्ष अनोज कुमार एवं अन्य पदाधिकारियों व कर्मियों के संग ईसहपुर-संकोर्थ स्थित अमरावती नदी क्षेत्र में भूमि व अवशेष की जांच पड़ताल को पहुंचे। जहां दो वर्ष पूर्व बहुत ही बड़े-बड़े ईट मिट्टी खुदाई के क्रम में ईसहपुर निवासी उपेंद्र झा को मिले थे। जिसे उन्होंने साक्ष्य के रूप में रखा था। इसकी जानकारी पदाधिकारियों को भी दी थी। उसी की जांच पड़ताल में शुक्रवार को पदाधिकारी पहुंचे और वहां थोड़ी बहुत खुदाई कर प्राप्त अवशेषों को इकट्ठा किया। कुछ अवशेष पदाधिकारी अपने साथ ले गए। सीओ पंकज कुमार ने बताया कि प्राप्त अवशेष को जिला पदाधिकारी को साक्ष्य के रूप में सुपुर्द किया जाएगा । क्या है अमरावती नदी का इतिहास: प्राचीन काल में जब अमरावती नदी विकसित थी तब सरिसब पाही एक मुख्य व्यापारिक केंद्र हुआ करता था। जिसे हाटे बाजार कहा जाता था। अभी उस जगह को हाटी कहा जाता है। जब यहां व्यापार चरम पर था उस समय लगभग 1320 ई0 से 1326 ई0 के मध्य बाहरी आक्रमणकारियों के द्वारा यहां के व्यापारिक स्थान को बर्बाद कर दिया। हाट को लूट लिया। बहुत सारे व्यापारी मारे गए तो कुछ भाग गए। सरिसब पाही में वर्तमान में अभी भी ऐसे दो स्थान काफी ऊंचे टीले की तरह हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह एक व्यापारिक प्रतिष्ठान था। सरिसब पाही पश्चिमी पंचायत स्थित ठठेरी टोल और दर्जी टोल यह दोनों टोल अमरावती नदी के पूर्वी तट पर स्थित हैं। इसी नदी किनारे सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर भी हैं। कहा जाता है व्यापारी व्यापार प्रारंभ करने से पूर्व प्रतिदिन यहां पूजा करते थे। यहां के तटीय क्षेत्र से मिट्टी के सिक्के, तांबे के सिक्के मिलना भी इस बात का प्रमाण है। कहां जाता है यहां मीनाक्षी नाम की एक राजनर्तकी थी जिसे स्थानीय लोग मनकी के नाम से जानते थे। उसने सरिसब पाही की संस्कृति एवं मिथिला की संस्कृति और शिक्षा को बचाने के लिए अपने आप को नृत्य कौशल से नष्ट कर दिया था। यहां की बहुत ही उपयोगी व रहस्य की पुस्तकें जो गलत हाथों में जाने के बाद मानवता के लिए हानिकारक हो सकती थी उसे अमरावती नदी में विसर्जित कर दी गई थी। मनकी डीह जो मीनाक्षी का आवास स्थान था अभी भी हाटी गांव में स्थित है। जब बंगाल में सेन वंश का राजा बल्लाल सेन का अधिपति था तो उन्होंने उस समय मिथिला के कुछ प्रमुख क्षेत्रों को अपने साम्राज्य में मिला लिया था। जिसमें सरिसब पाही भी एक क्षेत्र था जो आर्थिक ²ष्टिकोण से परिपूर्ण था। लैसो मेले के द्वारा 1960 ई0 में जो इंडियन गजट प्रकाशित हुआ था उसमें भी सरिसब पाही को प्रमुख व्यापारिक केंद्र के रूप में बताया गया। कहा जाता है यहां विशेष प्रकार का नमक (ऊस) मिलता था जिस नमक से बारूद जैसी वस्तु बनाई जाती थी। सिक्की की बनी वस्तु तथा ध्वनि उत्पन्न करने वाले वस्तु आदि का व्यापार यहां मुख्य रूप से होता था। आज भी यहां भारी मात्रा में घंटी व घंटा का निर्माण किया जाता है। ऐसे में अमरावती नदी किनारे स्थित उक्त व्यापारिक केंद्रों के ऊंचे टीले यथा सातो डीह, मनकी डीह सहित ईसहपुर -संकोर्थ स्थित उक्त स्थानों का पुरातत्व विभाग द्वारा जांच व खुदाई की जाए तो काफी कुछ मिलने की संभावनाएं हैं।

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