दीवारों व बरामदा पर साग-सब्जी व फूलों की खेती
मधुबनी । वैज्ञानिक युग में हर असंभव कार्य भी संभव हो जाता है। किसी ने कभी सोचा भी नहीं होगा की घर की दीवारों व बरामदे का भी उपयोग साग-सब्जी फूल सजावटी पौधे उगाने में किया जा सकता है।
मधुबनी । वैज्ञानिक युग में हर असंभव कार्य भी संभव हो जाता है। किसी ने कभी सोचा भी नहीं होगा की घर की दीवारों व बरामदे का भी उपयोग साग-सब्जी, फूल, सजावटी पौधे उगाने में किया जा सकता है। लेकिन, अब यह खेती संभव हो चुकी है। आप भी चाहें तो अपने मकान की दीवारों, बरामदे, बालकनी से लेकर छत तक का उपयोग साग-सब्जी, फूल, सजावटी पौधे की खेती करने के लिए कर सकते हैं। यह तरकीब सस्ता एवं पर्यावरण व मौसम के अनुकूल भी है। राजनगर प्रखंड की सिमरी पंचायत स्थित पंचायत सरकार भवन परिसर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आगमन पर गुरुवार को उक्त खेती-बारी का प्रदर्शन कर लोगों को इस तरह की खेती करने के लिए जागरूक किया गया। इस दौरान कम जगह में और कम समय में प्राकृतिक विधि से सघन वन तैयार करने के लिए अकीरा मियावाकी पद्धति से पौधारोपण का भी प्रदर्शन किया गया। इस आयोजन का मकसद अति आधुनिक एवं वैज्ञानिक पद्धति से लोगों को खेती-बारी करते के लिए उत्साहित, प्रोत्साहित व जागरुक करना था। ताकि कम खर्च में कम समय में पर्यावरण एवं मौसम के अनुकूल लाभकारी खेती की जा सके। इस तरह उगाई जाती है दीवार पर साग-सब्जी :
दीवार पर साग-सब्जी उगाने की विधि को वर्टिकल गार्डेन भी कहा जाता है। इस विधि में दीवार के समानांतर कुछ मिमी की दूरी पर लोहे से बना चैनल लगाया जाता है। इस चैनल में प्लास्टिक का पॉट लगाया जाता है, जिसमें मिट्टी की बजाए कोकोपीट का उपयोग किया जाता है। इस विधि से पालक, धनियां, सलाद पत्ता, चेरी, टमाटर, सजावटी पौधे समेत ऐसे पौधे लगाए जा सकते हैं। यह दूषित वायु को अवशोषित कर वातावरण को शुद्ध करता है। वर्टिकल गार्डेनिग से कमरे का तापमान भी अनुकूल बना रहता है। बरामदे, बालकनी से लेकर छत पर कर सकते हाइड्रोफिल पोनिक विधि से खेती :
हाइड्रोफिल पोनिक विधि से बरामदे, बालकनी से लेकर मकान के छत पर भी साग-सब्जी की खेती कम लागत में कर सकते हैं। इस विधि से पालक, धनियां, पुदिना, गोभी, टमाटर, मूली, गाजर, सलाद पत्ता आदि उगाया जा सकता है। विपरीत जलवायु परिस्थिति में भी इस विधि से खेती की जा सकती है। बिना मिट्टी के ही इस विधि से खेती की जाती है। इस विधि से खेती करने में बीमारी एवं कीट का प्रकोप नहीं होता है। महज पांच हजार की लागत से यह खेती की जा सकती है। इस विधि में भी मिट्टी की बजाए कोकोपीट का उपयोग किया जाता है। मियावाकी विधि से पौधारोपण से होती दस गुनी वृद्धि :
कम जगह में प्राकृतिक वन तैयार करने के लिए जापानी पद्धति अकीरा मियावाकी विधि से पौधारोपण करना फायदेमंद होता है। इस विधि से लगाए गए पौधे की वृद्धि दस गुणा तेजी से होता है। इस विधि में स्थानीय वन प्रजातियों के पौधे ही विभिन्न ऊंचाई में लगाए जाते हैं। यह वन एक सौ वर्ग मीटर में सृजित किया जा सकता है। ड्रिप सिचाई से भी खेती लाभकारी :
ड्रिप सिचाई अर्थात टपक विधि से मल्चिग एवं बिना मल्चिग के साग-सब्जी उगाने के तौर-तरीकों का भी प्रदर्शनी लगाई गई। इस विधि से खेती में 60 प्रतिशत जल, 30 प्रतिशत तक उर्वरक की बचत होती है। लागत में भी 35 प्रतिशत तक की कमी आती है। 35 प्रतिशत तक अधिक उत्पादन होता है।