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लाखों खर्च के बाद भी नहीं कम हो रहा बच्चों की कुपोषण दर

मधेपुरा। स्वास्थ्य विभाग की तमाम प्रयास के बावजूद कोसी के इस इलाके में बच्चों का कुपोषण दर कम

By JagranEdited By: Published: Wed, 16 Oct 2019 12:47 AM (IST)Updated: Wed, 16 Oct 2019 12:47 AM (IST)
लाखों खर्च के बाद भी नहीं कम हो रहा बच्चों की कुपोषण दर
लाखों खर्च के बाद भी नहीं कम हो रहा बच्चों की कुपोषण दर

मधेपुरा। स्वास्थ्य विभाग की तमाम प्रयास के बावजूद कोसी के इस इलाके में बच्चों का कुपोषण दर कम नहीं हो पा रहा है। जबकि कुपोषण दर को कम करने के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से लाखों रुपये अभियान पर खर्च किए जा रहे हैं। बच्चों का कुपोषण से मुक्त करने के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों पर ग्रामीण स्वास्थ्य, स्वच्छता, पोषण सहित कई अन्य कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है। इन कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य गांव टोले में रहने वाली महिलाओं एवं गर्भवती माताओं को कुपोषण से बचाव, जच्चा व बच्चा के स्वस्थ रहने, साफ-सफाई आदि जानकारी देकर लोगों को जागरूक करना है। लेकिन स्वास्थ्य विभाग द्वारा उचित पर्यवेक्षण व निरीक्षण के अभाव में यह कार्यक्रम कागजों पर दम तोड़ रहा है। यहीं वजह है कि नैनिहालों कुपोषण का शिकार हो रहे है। डेढ़ फीसदी शिशु की हो रहीं है गर्भ में मौत :

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जिले के बिहारीगंज अस्पताल का आंकड़ा बताते है कि लगभग 21 फीसदी नवजात कुपोषित व अतिकुपोषित का शिकार हो रहे है।जिसमें डेढ़ फीसदी नवजात की गर्भ में ही मौत हो रहीं है। इसमें ग्रामीण क्षेत्र के नवजात शिशुओं की अधिक संख्या होती है। जिसका असर नवजात शिशुओं के साथ-साथ उसकी माता पर भी पड़ रही है। अस्पताल के चिकित्सक भी स्वीकार करते हैं कि कुपोषण के कारण ही नवजात शिशु कमजोर व मृत जन्म लेते हैं। इसके लिए गर्भवती माताओं को साफ-सफाई के साथ पौष्टिक भोजन की सही जानकारी की जरूरत है। पोषण कार्यक्रम नहीं हो रहा प्रभावी : आंगनबाड़ी केंद्रों पर ग्रामीण स्वच्छता एवं पोषण कार्यक्रम चलाया जाता है। लेकिन हकीकत यह है कि आंगनबाड़ी केंद्रों पर यह कार्यक्रम कब चलता है इसकी जानकारी अधिकांश पोषक क्षेत्र के लोगों को पता ही नहीं रहता है। गत सितंबर माह 2017 से अगस्त 2018 तक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बिहारीगंज में 3249 शिशुओं के जन्म होने का आंकड़े बताते है। जिसमें 49 मृत एवं 601 शिशु कुपोषित एवं अतिकुपोषित जन्म लिये है। महिलाएं गर्भधारण के दौरान अपने पोषण पर ध्यान नहीं देती है। इसका असर गर्भ में पल रहें शिशुओं पर पड़ता है। समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चें जन्म से कमजोर होते है। वहीं कम उम्र में मां बनना एवं शिशुओं में तीन वर्ष का अंतराल नहीं होने से बच्चें कुपोषण का शिकार होते हैं। कुपोषित शिशु जन्म से ही बीमारियों से ग्रसित रहते है। कुपोषण से शिशु को बचाने के लिए माता को लगातार छह माह तक अपना दूध का सेवन कराना चाहिए। -डॉ. मिथलेश, चिकित्सक , पीएचसी ,

बिहारीगंज


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