कोरोना की जंग में पिछड़ रहा मेडिकल कॉलेज
मधेपुरा। कोरोना के कहर से बचाने के लिए रेलवे के कोच को आइसोलेशन वार्ड के रूप में तैया
मधेपुरा। कोरोना के कहर से बचाने के लिए रेलवे के कोच को आइसोलेशन वार्ड के रूप में तैयार किया गया है। वहीं कोसी-सीमांचल के पहले और सबसे बड़े मधेपुरा मेडिकल कॉलेज इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। इस बड़ी लड़ाई में भी मधेपुरा का जन नायक कर्पूरी ठाकुर मेडिकल कॉलेज की कोई उपयोगिता नहीं है।
हाल यह है कि कोरोना संदिग्ध कोई मरीज अगर जांच के लिए मेडिकल कॉलेज में आता है तो उसे सदर अस्पताल रेफर कर दिया जाता है। आम तौर पर राज्य के सभी मेडिकल कॉलेज में कोरोना को लेकर बेहतर व्यवस्था की गई है। जांच के लिए सैंपल लेने की व्यवस्था सभी मेडिकल कॉलेजों में कई गई है, जबकि मधेपुरा मेडिकल कॉलेज में अब तक इसकी कोई व्यवस्था नहीं की जा सकी है। कोरोना से जंग के नाम पर इस मेडिकल कॉलेज में बस 106 बेड का आइसोलेशन वार्ड तैयार कर कर्तव्य की इतिश्री कर ली गई है। इस मेडिकल कॉलेज से पूरे कोसी-सीमांचल के लोगों को चिकित्सीय सुविधा मिलने की उम्मीद थी। उसका हालात यह है कि वह मधेपुरा के लोगों को भी इस विषम परिस्थिति में कोई सुविधा नहीं दे पा रहा है।
जांच की नहीं है सुविधा मेडिकल कॉलेज में पूरे जिले के सभी सरकारी अस्पताल के लगभग बराबर चिकित्सक पदस्थापित हैं। बाहर से आए लोगों की जांच का भार पीएचसी व सदर अस्पताल पर है। मधेपुरा मेडिकल कॉलेज में 92 चिकित्सक पदस्थापित हैं। वहीं जिले में कुल 99 चिकित्सक पदस्थापित हैं। इन्हीं 99 चिकित्सकों पर अभी पूरे जिले का भार है। जबकि सिर्फ मेडिकल कॉलेज में पदस्थापित 92 चिकित्सक से सिर्फ वहां कुछ घंटे की ओपीडी चलाई जा रही है।
स्वास्थ्य विभाग का नहीं है ध्यान कोसी क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज रहने के बावजूद कोरोना से बचाव के लिए इसका इस्तेमाल नहीं किया जाना कई सवाल खड़े कर रहा है। संसाधन की कमी के बावजूद भी जिले के पीएचसी और सदर अस्पताल में सारा कार्य कराया जा रहा है। लेकिन कोरोना से संबंधित किसी भी प्रकार के कार्यों के लिए मेडिकल कॉलेज में व्यवस्था नहीं की गई है। मेडिकल कॉलेज में कोरोना को लेकर सारी सुविधाओं की व्यवस्था करनी चाहिए थी। कोसी के विभिन्न जिलों के सदर अस्पतालों से आए मरीजों की जांच व इलाज यहां होना चाहिए था। लेकिन स्थिति यह है कि कोरोना संबंधित मरीजों के मेडिकल कॉलेज जाने पर उसे सदर अस्पताल भेज दिया जाता है।
786 करोड़ की लागत से हुआ है तैयार 786 करोड़ की लागत से इस मेडिकल कॉलेज को तैयार किया गया है। लंबे इंतजार के बाद सात मार्च को सीएम द्वारा इसका उद्घाटन भी किया गया। यह मेडिकल कॉलेज सीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट था। वहीं स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने तो इसे विश्वस्तरीय मेडिकल कॉलेज बताया था। लेकिन उद्घाटन के बाद ही आई बड़ी आपदा की घड़ी में मेडिकल कॉलेज अपनी उपयोगिता साबित नहीं कर पाई।
आखिर मीडिया से इतना परहेज क्यों मेडिकल कॉलेज से संबंधित किसी भी प्रकार की सूचना देने से मेडिकल कॉलेज प्रशासन परहेज करता है। यहां किसी भी प्रकार की जानकारी ले पाना मीडिया कर्मियों के लिए भी कठिन कार्य है। अधीक्षक व प्राचार्य एक-दूसरे पर जवाबदेही फेंकते रहते है। इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं आखिर किन वजह से मीडिया को जानकारी नहीं दी जाती है।