मां काली मंदिर में भक्तों की हर मुराद होती हैं पूरी
मधेपुरा। प्रखंड के ड्योढी परिसर स्थित भगवती मंदिर में होने वाले काली पूजा क्षेत्र के लोगों के
मधेपुरा। प्रखंड के ड्योढी परिसर स्थित भगवती मंदिर में होने वाले काली पूजा क्षेत्र के लोगों के लिए आस्था का केंद्र के साथ-साथ सांप्रदायिक सौहार्द की भी मिसाल है। इस माह 14 नवंबर को होने वाली काली पूजा को लेकर प्रखंड क्षेत्र स्थित काली मंदिर के साथ-साथ अन्य जगहों पर भी तैयारी जोरों पर है। मंदिर में मां काली की प्रतिमा कार्तिक अमावस्या की शाम स्थापित की जाती है। इसके बाद पूरी विधि-विधान व प्राण प्रतिष्ठा कर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता ये है कि मां काली सभी भक्तों की हर मुरादें पूरी करती है। पूजा के अवसर पर माता को छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। साथ ही सैकड़ों क्विंटल की मिठाई चढ़ावा के रूप में चढ़ाई जाती है।
मनवांछित फल मांगते हैं श्रद्धालु मंदिर में भक्तगण पूजा-अर्चना कर मन्नत मांगते हैं। मन्नत पूरी होने पर माता के सामने छागर की बलि दी जाती है। काली पूजा को लेकर क्षेत्र में कई किवंदती भी प्रचलित है। इसको लेकर लोगों का मान्यता ये है कि 1890 में ब्रिटिश शासन काल के दौरान छय प्रांगण की राजधानी शाह आलमनगर के तत्कालीन राजा नंदकिशोर सिंह के कुछ लोगों द्वार लगान का पैसा गबन कर लिया गया है। इसके बाद अंग्रेजों को लगान देने के लिए नवगछिया के साहूकार से राजा ने कर्ज लेकर ब्रिटिश हुकुमत का धन चुकाया। कर्ज देते समय साहूकर ने पूस के माह तक कर्ज की रकम नहीं चुकाए जाने पर रियासत देने की बात कही थी। इसके बाद समय से काफी पहले ही राजा के द्वारा कर्ज लौटाने की पेशकश किए जाने के बाद साहूकार ने कागज के बिना कागजी प्रक्रिया नहीं करने की बात कह आनाकानी की। इसके बाद राजा ने मां काली से मन्नत मांगी और इसके बाद राजा की मन्नत पूरी भी हुई। तब से आज तक कार्तिक माह की अमावस्या को काली एवं महाकाल की की पूजा विधि-विधान के साथ तांत्रिक पूजा भहोती आ रही है। इसके अलावा कार्तिक चतुर्दशी के दिन विधवाओं के द्वारा शमशान में शिव पूजा की भी प्रथा है। 14 फीट की बनाई जाती है मां काली की प्रतिमा प्रखंड क्षेत्र में मां काली की पूजा करने की परंपरा आज तक कायम है। कार्तिक अमावस्था के दिन मां काली की 14 फीट ऊंची भव्य प्रतिमा बनाकर पूजा की जाती है। विशेष व्यंजनों का भोग अमावस्या के दिन मां काली के प्रतिमा के प्राण-प्रतिष्ठा के बाद विशेष व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। इसमें छप्पन प्रकार के विशेष व्यंजन सहित मांस, मछली, पूरी, भुज्जा व अपराजिता व कनैल के फूल के बीच संसर्ग कराया जाता है। साथ ही पंचमाकार बनाकर माता की विशेष पूजा के फलस्वरूप उन्हें अर्पित की जाती है। सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक काली पूजा के बाद प्रतिमा विसर्जन की रात प्रतिमा निकलने के दौरान सभी लोग अपने घरों पर दिए जलाते हैं। इस बावत राज्य परिवार के सदस्य एवं मुख्य यजमान सर्वेश्वर प्रसाद सिंह ने बताया कि मां काली पूजा के दौरान परिवार के कोई भी सदस्य बाहर रहते हैं। तो इस अवसर पर गांव अवश्य हीं चले आते है। ये प्रथा हमारे परिवार के पहले राजा के द्वारा शुरु किया गया था। वो आज तक कायम है।