शिव धनुष खंडित होने पर क्रोधित हुए परशुराम
लखीसराय । बड़हिया नगर स्थित राधामोहन ठाकुरबाड़ी में आयोजित नौ दिवसीय राधामोहन वार्षिकोत्स
लखीसराय । बड़हिया नगर स्थित राधामोहन ठाकुरबाड़ी में आयोजित नौ दिवसीय राधामोहन वार्षिकोत्सव सह रामकृष्ण चितन अमृतवर्षा सत्संग समारोह के आठवें दिन सोमवार को कथा वाचक अखिलेश शास्त्री ने धनुष यज्ञ एवं लक्ष्मण परशुराम संवाद की विस्तृत चर्चा की। उन्होंने कथा के दौरान कहा कि सीता स्वयंवर में राम द्वारा शिव धनुष भंग का समाचार मुनि परशुराम को क्रोधित कर देता है, वे अपने फरसे को चमकाते हुए राजा जनक के सभा में पहुंचते हैं और राजा जनक से उस व्यक्ति का नाम बताने का आग्रह करते हैं जिसने शिव धनुष तोड़ने का दुस्साहस किया है। श्री राम आगे आकर कहते हैं कि इस धनुष को आपके ही किसी दास ने तोड़ा होगा। वह स्वयं को मुनि का सेवक बताते हैं तो परशुराम बिफर उठते हैं कि सेवक वह होता है जो सेवा करता है। जिसने यह धनुष तोड़ा है वह तो मेरा परम शत्रु है। लक्ष्मण अपने कथनों से परशुराम को और भी क्रोधित कर देते हैं। लक्ष्मण जी कहते हैं कि उनके लिए तो सभी धनुष एक समान है अत: उन के क्रोध को अकारण बताया। मुनि परशुराम लक्ष्मण को अपनी शूरवीरता और महिमा से परिचित कराते हैं तथा स्वयं को बहुत बड़ा योद्धा एवं क्रोधी बताते हैं। इस पर लक्ष्मण हंसकर उत्तर देते हैं कि हम भी कोई बतिया के समान कोमल नहीं है। हम देवता, ब्राह्मण, गौ आदि पर वार नहीं करते क्योंकि इससे अपकीर्ति होती है। यह सुनकर परशुराम का क्रोध चरम सीमा पर पहुंच गया और उसे काल का ग्रास बनाने पर तूल गए। राम के विनय और विश्वामित्र के समझाने पर तथा राम की शक्ति की परीक्षा लेकर अंतत: उनका क्रोध शांत होता है। इस मौके पर व्यास सोनू जी, बाबू जी चतुर्वेदी एवं तबलावादक अजय शर्मा तथा हारमोनियम वादक प्रेम सोनी, राजाराम कुमार, विजय कुमार सहित कई महिला पुरुष श्रद्धालु मौजूद थे।