बेटा हो बंदूक उठइले, बाप जपो हो माला..
लखीसराय, जाप्र. : शब्द-शब्द में शोला भरके तोहरे गीत सुनैबो हम, कसम खाहियो गंगाजी के कलम न कभी घुमैबो हम, तोहरा खातिर सबकुछ करबो, भुक्खल भी मुसकैबो हम अत्याचार मिटावे खातिर सुखल चना चबैबो हम। जैसी शाश्वत व जीवंत कविता के महान रचनाकार तथा मगही के कबीर रहे बड़हिया निवासी स्व. मथुरा प्रसाद नवीन की कृतियां आज भी समाज के लिए प्रासंगिक है। बड़हिया रामचरण टोला में 14 जुलाई 1928 को जन्म लिए कविवर नवीन ने मगही भाषा का कबीर बनकर राजनीति, धर्म, राष्ट्रभक्ति, परंपराएं, रूढि़यों के साथ आज की व्यवस्था पर अपनी रचना से चोट करते हुए विषम परिस्थितियों में भी समाज को नई दिशा दी। उनकी रचनाओं पर दर्जनों साहित्यकारों ने पीएचडी और डी-लिट की उपाधि ली परंतु दुर्भाग्य है इस समाज कर कि स्व. नवीन के निधन के दस वर्ष बाद उन्हें अपने घर में भी याद करने वाले लोग उंगुलियों पर हैं। यहां तक कि इस महान कवि की एक आदमकद प्रतिमा लगाने के लिए कई नेताओं द्वारा वायदा किया गया लेकिन आज तक प्रतिमा स्थापित नहीं हो सकी। स्व. नवीन ने अपने गांव पर व्यंग करते हुए लिखा था 'हमर गांव हो आला बबुआ, हमर गांव हो आला, बेटा हो बंदूक उठइले बाप जपो हो माला' उन्होंने सत्ता परिवर्तन पर अपनी रचना में कहा था किदे पेट भले भर सोना से झुलवे चांदी के थारी में जब तक समाज में समता नय, जब गांव के लोग बदलते नय, सरकार बदल के की करतै। हो गए मुर्ख विद्वान यहां, दलाल लगे कविता करने आदि रचना प्रेरणादायक है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, फणीश्वर नाथ रेणु जैसे ख्यातिप्राप्त साहित्यकारों के साथ काम कर मगही भाषा को उच्च शिखर पर पहुंचाने वाले नवीन के मरणोपरांत सरकार द्वारा या जिला प्रशासन द्वारा आज तक कोई रायल्टी नहीं मिली। 18 दिसंबर 2011 को स्व. नवीन जी हमेशा के लिए दुनिया को छोड़कर चले गए।
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