आत्मुग्ध कांग्रेस ने खुद तैयार की एआइएमआइएम के लिए प्लेटफॉर्म
किशनगंज। किशगनंज विधानसभा सीट पर जीत दर्ज करते हुए एआइएमआइएम ने सीमांचल की राजनीति में
किशनगंज। किशगनंज विधानसभा सीट पर जीत दर्ज करते हुए एआइएमआइएम ने सीमांचल की राजनीति में बड़ा उलटफेर की है। कांग्रेस की परंपरागत सीट बन चुकी किशनगंज सीट पर हुए उपचुनाव में जीत के साथ ही एआइएमआएम ने खुद को कांग्रेस का विकल्प के तौर पर पेश किया है। चुनाव प्रचार के दौरान भी मतदाताओं को रिझाते हुए एआइएमआइएम ने यह मैसेज देने की कोशिश की थी कि सीमांचल में अब उनके असली रहनुमा वही हैं। कांग्रेस को परिवारवाद पर घेरते हुए आमजनता से दूर होने का लगातार आरोप लगाने एआइएमाआइएम सफल रही। एआइएमआइएम ने 2015 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल को अपनी राजनीति का प्रयोगशाला बनाया। लेकिन 2015 के विधानसभा व 2019 के आमचुनाव में मिली करारी हार के बाद यह जीत संजीवनी बनकर आई और आत्मविश्वास से लवरेज पार्टी अब खुद को सीमांचल का असली रहनुमा बताकर नई राजनीतिक पारी की शुरूआत कर चुकी है।
अब बता करते हैं कांग्रेस की। 2019 के आमचुनाव में बिहार की एकमात्र सीट पर कांग्रेस को मिली जीत के बाद जहां किशनगंज को कांग्रेस का अभेद्य किला माना जाने लगा वहीं महज पांच महीने बाद किशगनंज विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में करारा झटका लगा। बिहार में एकमात्र लोकसभा सीट पर जीत से गदगद कांग्रेस इस कदर आत्मुग्ध हो गई कि कार्यकर्ताओं की नब्ज भांप ही नहीं पाई। डॉ. मु. जावेद के सांसद चुने जाने के बाद रिक्त हुई किशनगंज विधानसभा सीट को लेकर पार्टी के अंदर अंत-अंत तक चली खींचातानी में स्थानीय स्तर से लेकर आलाकमान तक अपने ही कार्यकर्ताओं के इशारों को समझने की कोशिश भी नहीं की। लोकसभा सीट पर मिली जीत से इतराई कांग्रेस जहां राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का तो स्थानीय स्तर पर भी एनडीए का एकमात्र विकल्प समझने की भूल कर बैठी। प्रत्याशी चयन के बाद चुनाव मैदान में उतरने के बाद कांग्रेस संभलने के बजाय पिछड़ती चली गई। रही- सही कसर पूरी कर दी कार्यकर्ताओं के बीच उभरे असंतोष ने। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस के मो. इमरान बागी होकर चुनाव मैदान में निर्दलीय ताल ठोंकने लगे। जिन्हें मनाने का या तो कोशिश ही नहीं की गई या फिर कोशिश असफल रही। इसी तरह अन्य जो सक्रिय कार्यकर्ता थे वे प्रत्याशी चयन के बाद से ही चुनाव प्रचार से कन्नी काटने लगे। धीरे- धीरे पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष का स्वर बढ़ता चला गया, जिसका सीधा असर मतदाताओं पर पड़ा। आखिर में मतदाता भी मान बैठे कि भाजपा को हराने के लिए मजबूत विकल्प एआइएमआइएम है न कि कांग्रेस। यही वजह रहा कि आम मतदाता भी कहने लगे कि कांग्रेस ने खुद एआइएमआइएम के लिए प्लेटफॉर्म तैयार की। जिसपर सधे कदमों पर चलते हुए एआइएमआएम मतदाताओं को साथ गोलबंद करने में कामयाब रही।