युवाओं को प्रशिक्षित कर स्वरोजगार से जोड़ रहा कृषि विज्ञान केंद्र
किशनगंज। किसानों को वैज्ञानिक और उन्नत तकनीक से खेती करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र द्वा
किशनगंज। किसानों को वैज्ञानिक और उन्नत तकनीक से खेती करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा हमेशा हर संभव कार्य किए जाते हैं। जिससे कि किसान कम से कम जमीन पर खेती कर अधिक से अधिक मुनाफा अर्जित कर सके। इसके तहत कृषि विज्ञान केंद्र सहित ग्रामीण क्षेत्रों में भी युवक-युवतियों को स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण दिए जाते हैं। इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य यह है कि यु़वक-युवतियां अपने गृह क्षेत्र में रहकर ही स्वरोजगार से जुड़ जाएं। जिससे कि क्षेत्र से होने वाले पलायन पर अंकुश लग सके। इसके अंतर्गत युवाओं को कई ट्रेड में प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास अनवरत जारी है।
बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के निर्देशानुसार स्कील डेवलपमेंट कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। इनमें माली प्रशिक्षण, वर्मी कंपोस्ट प्रशिक्षण, कृत्रित गर्भाधान प्रशिक्षण और डेयरी प्रशिक्षण सहित कई अन्य प्रशिक्षण शामिल हैं। विभिन्न ट्रेड में प्रशिक्षण की अवधि अलग-अलग होती है। माली प्रशिक्षण के लिए 15 से लेकर 30 दिन, वर्मी कंपोस्ट प्रशिक्षण के लिए 45 दिन, कृत्रिम गर्भाधान प्रशिक्षण के लिए 90 दिन, डेयरी प्रशिक्षण के लिए 15 से लेकर 30 दिन और मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण के लिए आठ से लेकर 10 दिन का समय निर्धारित रहता है। कृषि विज्ञान केंद्र में प्रशिक्षण देकर अब तक सैकड़ों युवक-युवतियों को स्वरोजगार से जोड़ने में सफलता मिली है। मधुमक्खी पालन को लेकर किसानों में जागरूकता लाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में युवाओं की रूचि देखने के बाद उनका चयन किया जाता है। इस क्षेत्र में अब तक एक सौ से अधिक युवाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें मधुमक्खी पालन से जोड़ा जा चुका है। टीएसएपी परियोजना के तहत आदिवासी गांव के 20 युवक-युवतियों का चयन कर बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर द्वारा आठ दिन का विशेष प्रशिक्षण दिया गया। इन प्रशिक्षुओं को मधुमक्खी का बक्सा सहित अन्य जरूरी सामग्री भी निशुल्क दिया गया।
वर्तमान समय में आधुनिक पशु प्रबंधन, डेयरी मैनेजमेंट सिस्टम, बकरी पालन,मुर्गी पालन और मशरूम उत्पादन का गहन प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण लेने वाले युवाओं को प्रशिक्षण प्रमाण पत्र भी दिए जाते हैं। जिससे कि सरकारी और निजी क्षेत्र में काम करने वाले युवाओं के लिए प्रमाण पत्र सहायक बन सकें। केवीके के वैज्ञानिकों का कहना है कि अब तक सैकड़ों युवक- युवतियों और महिलाओं को अनेक ट्रेड में प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार से जोड़ा जा चुका है। इस कार्य में केवीके के वरीय वैज्ञानिक इंजीनियर मनोज कुमार राय के नेतृत्व वैज्ञानिक डॉ. रत्नेश चौधरी, डॉ. नीरज प्रकाश, डॉ. हेमंत कुमार सिंह का भी अहम योगदान रहा है।
इन युवाओं को स्वरोजगार से मिली सफलता ------
खगड़ा हवाई अड्डा निवासी विजय कुमार दसवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद रोजगार की तलाश में थे। इस क्रम में कृषि विज्ञान केंद्र पहुंच कर प्रशिक्षण संबंधित जानकारी लिए। इसके बाद पशु वैज्ञानिक डॉ. रत्नेश चौधरी से पाराभेट ट्रेड में प्रशिक्षण लिए। इस प्रशिक्षण में उन्हें पशुओं को होनेवाली बीमारी सहित इलाज और टीकाकरण के विधि सिखाएं गए। आज पशु टीकारण में निपुण होकर गांव-गांव जाकर बीमार पशुओं का इलाज करने लगे हैं। इस कार्य से इनकी आमदनी भी बढ़ गई है। वहीं पोठिया प्रखंड के जोसेफ हेमब्रम मधुमक्खी पालन कर आय अर्जन के साथ अन्य लोगों को भी इस पालन से जोड़ने में लगे हैं। वहीं महीनगांव के रामाशीष वर्मी कंपोस्ट प्रशिक्षण लेकर स्वयं वर्मी कंपोस्ट तैयार कर रहे हैं। इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्र के कई युवा मशरूम उत्पादन, मुर्गी पालन, डेयरी पालन और बकरी पालन को आय अर्जन का साधन बना चुके हैं।
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कोट - बिहार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा युवाओं को स्वरोजगार के लिए स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम से जोड़ा गया है। इस डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत केवीके में युवक-युवतियों को माली, वर्मी कंपोस्ट, कृत्रिम गर्भधान सहित कई अन्य प्रशिक्षण दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त मशरूम उत्पादन, मधुमक्खी पालन, बकरी पालन, डेयरी पालन का प्रशिक्षण देकर स्वोजगार से जोड़ा जा चुका है। वित्तीय वर्ष 2018-19 में टीएसपी परियोजना के माध्यम से आदिवासियों को मधुम्कखी पालन प्रशिक्षण देकर उन्हें भी स्वरोजगार से जोड़ा गया है। - डॉ. आरके सोहाने, निदेशक प्रसार शिक्षा, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर।
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कोट - डेयरी प्रबंधन, पशु प्रबंधन, पाराभेट का प्रशिक्षण प्राप्त कर कई युवा पशु टीकाकरण, मुर्गी पालन, बकरी पालन और मशरूम उत्पादन से जुड़ गए हैं। टीएसपी परियोजना के माध्यम से आदिवासी युवाओं को पाराभेट का प्रशिक्षण दिया गया। जिससे कि प्रशिक्षित आदिवासी युवा पशुओं का टीकाकरण और इलाज कर अपनी आमदनी बढ़ा में सक्षम हो रहे हैं। - डॉ. रत्नेश चौधरी, पशु वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र।