96 वर्ष से लाहिड़ी मंदिर प्रांगण में पारंपरिक रूप से की जा रही मां दुर्गे की पूजा
किशनगंज। ठाकुरगंज के ऐतिहासिक भातडाला पोखर के समीप कमलेश मिल्स परिसर में 96 वर्षों से
किशनगंज। ठाकुरगंज के ऐतिहासिक भातडाला पोखर के समीप कमलेश मिल्स परिसर में 96 वर्षों से आयोजित लाहिड़ी सार्वजनिक दुर्गा पूजा में मां की अराधना पारंपरिक रीति-रिवाज से करती आ रही है। 1924 ई. में मां दुर्गा की पूजा पारंपरिक शैली एवं भक्ति भावना से होता आ रहा है। प्रखंड क्षेत्र समेत मित्र राष्ट्र नेपाल व पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में भी इसकी काफी प्रसिद्धि है। लेकिन कोरोना काल में 96 साल के इतिहास में पहली बार पूजा आयोजन के रूप रंग में भारी बदलाव देखने को मिलेगा।
जहां आधुनिक युग के चकाचौंध के विपरीत लाहिड़ी पूजा मंडप में दुर्गा पूजनोत्सव अपनी पारंपरिक शैली के लिए इलाके में जाना जाता है। बार कोरोना के चलते सारी चीजें बदली सी नजर आएगी। प्रशासनिक स्तर पर की गई कड़ाई और पूजा समितियों को पंडाल नहीं बनाने दिए जाने की स्थिति में इस साल दुर्गा पूजा की रौनक फीकी पड़ने लगी है। देवी की दर्शन को लेकर बनने वाले भव्य पूजा पंडाल और सजावट इस बार नजर नहीं आएगी। इस साल माता का दरबार बदला रहेगा और भव्य पूजा पंडाल नहीं दिखेगी। लाहिड़ी पूजा मंडप में गत 95 वर्षों से मेला लगने का नगर सहित आस-पास के क्षेत्र का एकमात्र मेला स्थल था पर लेकिन इस बार यहां मेला नहीं लगने की स्थिति में श्रद्धालु घरों में सिमटे रहेंगे। ------------------------
पौराणिक परंपरा के तहत की जात है पूजा अर्चना - पौराणिक परंपरा, रीति-रिवाज व विधि-विधान से दुर्गापूजा के लिए क्षेत्र में मशहूर लाहिड़ी दुर्गापूजा मंडप के मंदिर में नवरात्र शुरू होने अर्थात् कलश स्थापना के दिन से सायं को दीपक जलाने के साथ ही दुर्गापुजा प्रारंभ हो जाती है। षष्ठी तिथि को मां की प्रतिमा स्थापित होने के बाद बंगाल के प्रसिद्ध ढाक के साथ आरती तथा इस मंदिर परिसर में मेला का आयोजन इस पूजा पंडाल का मुख्य आकर्षण का केंद्र है। मंदिर परिसर में लगनेवाली मेला में आदिवासी समुदाय के पुरुष, महिला एवं बच्चे द्वारा प्रस्तुत वनवासी नृत्य भी इस पूजा पंडाल का विशेष आकर्षण रहता था। बंगाल के दार्जिलिग जिला के नक्सलबाड़ी के मुिर्त्तकार यहाँ के प्रतिमाओं को तैयार करते हैं। इस बार मां की प्रतिमा तो उसी प्रकार से बनाने का काम प्रगति पर है। लाहिड़ी पूजा समिति के मुख्य संरक्षक सुब्रत लाहिड़ी व सदस्य आलोक लाहिड़ी, जयंत लाहिड़ी, अशोक लाहिड़ी, हेमंती लाहिड़ी आदि बताते हैं कि मां के दरबार में लोगों की भारी आस्था है। मन्नतें पूरी होने के बाद दूर-दूर से लोग खासकर महानवमी के दिन पहुंच कर फल आदि की बलि देते हैं।