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हर साल बाढ़ व विस्थापन का दर्द झेलने को मजबूर होते हैं लोग

किशनगंज। महानंदा कनकई डोक समेत अन्य नदियों से घिरा कोचाधामन विधानसभा क्षेत्र में हर सा

By JagranEdited By: Published: Sun, 04 Oct 2020 08:07 PM (IST)Updated: Sun, 04 Oct 2020 08:07 PM (IST)
हर साल बाढ़ व विस्थापन का दर्द  झेलने को मजबूर होते हैं लोग
हर साल बाढ़ व विस्थापन का दर्द झेलने को मजबूर होते हैं लोग

किशनगंज। महानंदा, कनकई, डोक समेत अन्य नदियों से घिरा कोचाधामन विधानसभा क्षेत्र में हर साल बाढ़ तबाही मचाती है। नदी कटाव व सैलाब से जूझ रहे लोगों को विस्थापन का दर्द सालता रहता है। जगह-जगह घर द्वार से लेकर खेत खलिहान तक नदी कटाव की भेंट चढ़ता जा रहा है। आवागमन की सुविधा, स्कूलों में शिक्षक और स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सक की कमी का रोना है। कुल मिलाकर विधानसभा क्षेत्र में बुनियादी सुविधाएं मयस्सर नहीं होना बड़ी समस्या है।

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30 पंचायतों वाला कोचाधामन विधानसभा क्षेत्र नदी कटाव से पूरी तरह प्रभावित है। इस वजह से हर वर्ष लोगों को काफी आर्थिक क्षति होती है। साढ़े तीन लाख से अधिक की आबादी के लिए सरकार की ओर से बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। प्रखंड के अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है लेकिन खेती किसानी के लिए यहां सिचाई सुविधा का घोर अभाव है। शिक्षा व्यवस्था भी यहां वैशाखी पर टिका है। अधिकांश अपग्रेड हाईस्कूलों में शिक्षकों का अभाव है। रोजगार भी यहां एक गंभीर समस्या है। हर घर से लोग रोजी रोटी को लेकर परदेशों में है।

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हर साल बाढ़ मचाती है तबाही -

क्षेत्र की एक बड़ी आबादी महानंदा, कनकई, डोक समेत अन्य छोटी-बड़ी नदियों के कटाव से प्रभावित है। नदी के किनारे बसे गांव के लोग हर साल बाढ़ व नदी कटाव से तबाह व बर्बाद होते हैं। कोचाधामन प्रखंड के घुरना चकचकी, चनडांगी, बगलबाड़ी, डहुआ, नेमुआ चरैया, कूट्टी गांव महानंदा नदी के कटाव से प्रभावित है। जबकि मजकूरी, चिकनी,नेंगसिया,पोखरिया व बलिया गांव कनकई नदी के कटान से तबाह व बर्बाद है। वहीं बूढ़ी कनकई नदी से दुर्गापुर,सराय, गम्हरिया समेत अन्य गांव प्रभावित है। हर साल इन गांवों की सैकड़ों बीघा खेतिहर उपजाऊ जमीन भी नदी में समा जाता है जिससे लोगों की खेती किसानी चौपट हो रही है। महानंदा नदी ने तो चकचकी गांव का नक्शा ही बदल कर रख दिया है।

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नहीं बदली ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा की तस्वीर -

ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी स्वास्थ्य सेवा बैशाखी के सहारे चल रहा है। खासकर उपस्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सा कर्मी व संसाधनों का घोर अभाव है। ऐसे में आम जनता प्राइवेट या क्वैक चिकित्सक से ही इलाज कराने को मजबूर हैं। सिर्फ कोचाधामन प्रखंड के 24 पंचायतों के साढ़े तीन लाख से अधिक की आबादी के लिए एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है। 51 उप स्वास्थ्य केंद्र स्वीकृत तो हैं लेकिन अधिकांश स्वास्थ्य केंद्र सुविधाविहीन है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भी चिकित्सक, चिकित्सा कर्मी व अन्य संसाधनों का घोर अभाव है। यहां भी महिला चिकित्सक नहीं है। गर्भवती महिलाओं का प्रसव नर्सों के भरोसे चल रहा है। 54 में से 30 उप स्वास्थ्य केंद्र ही किसी तरह संचालित है। उप स्वास्थ्य केंद्र अलता, डेरामारी व हल्दीखोड़ा को छोड़कर शेष 48 उप स्वास्थ्य केंद्रों पर बिजली भी नहीं पहुंची है। अधिकतर केंद्र सप्ताह के अधिकांश दिन बंद ही रहता है।

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बंद पड़े हैं नलकूप, सिचाई के लिए तरस रहे किसान

किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाने के उद्देश्य से ढाई दशक पूर्व सरकार के लघु सिचाई विभाग की ओर से प्रखंड के विभिन्न जगहों में लगाए गए अधिकांश नलकूप (स्टेट बोरिग) बंद पड़ा है। जबकि कई नलकूपों को अब तक बिजली से भी नहीं जोड़ा गया है। मजबूरन किसानों को पटवन डीजल पंपसेट के सहारे ही करना पड़ रहा है। जिससे खेती किसानी में लागत बढ़ जाती है। भवानीगंज, डेरामारी पुराना, महसनगांव, कोचाधामन पुराना, भगाल, अलता, हसन डुमरिया, शीतलनगर, शाहपूर, शाहनगरा, रानी, पीपला, धनसोना, मुहम्मदपुर खानका, चरघरिया, दोघरिया, रंगामनी, बस्ताकोला पुराना, बुढ़ीमारी पुराना, महियारपुर पुराना, मोहरमारी पुराना, गांगी गौरामनी पुराना, नेहाल भाग सोन्था में कहने को नलकूप है। लेकिन हाथी के दांत की तरह सिर्फ दिखावा के लिए।

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हाईस्कूलों में शिक्षकों का अभाव -

क्षेत्र के अधिकांश इंटर व अपग्रेड हाई स्कूलों में शिक्षकों की कमी से छात्र-छात्राओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का लाभ नहीं मिल पा रहा है।अपग्रेड हाईस्कूलों में नामांकित छात्र-छात्राओं को प्राइवेट में ट्यूशन का सहारा लेना पड़ रहा है। जबकि सभी अपग्रेड हाईस्कूलों से हर वर्ष 50-100 बच्चे मैट्रिक की परीक्षा में शामिल होते हैं। सरकार व विभाग की ओर प्रखंड के सभी पंचायतों में एक मिडिल स्कूल को हाईस्कूल में अपग्रेड किया गया है। परंतु छात्र-छात्राओं के अनुपात में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पाई है।अपग्रेड हाईस्कूलों में शिक्षकों की कमी से इन स्कूलों में कायदे से पठन-पाठन नहीं हो पा रहा है। शिक्षकों की कमी की वजह से विषय वार पढ़ाई नहीं हो पा रही है।

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रोजगार के अभाव में पलायन बड़ी समस्या

रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं होना इलाके के लिए अभिशाप से कम नहीं है। पिछड़ेपन का दंश झेल रहे इस इलाके के लोगों को रोजी रोटी के लिए परदेश जाने की मजबूरी बनी रहती है। बाढ़ व नदी कटाव से त्रस्त इलाके में खेती किसानी में भी सीमित संभावनाएं हैं। लिहाजा रोजगार के अभाव में हर दिन अन्य प्रदेशों की ओर युवावर्ग पलायन करते दिख जाते हैं। पंचायतों में रोजगार गारंटी योजना लागू है, बावजूद लोगों को पर्याप्त रोजगार नहीं मिल पा रहा है। फैक्ट्रियां या उद्योग वगैरह की कमी की वजह से हर वर्ग प्रभावित है। आलम यह है कि क्षेत्र में प्राय: हर घर से लोग रोजगार को लेकर प्रदेशों में हैं। जो मेहनत मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करने को मजबूर हैं। कोरोना काल में घर लौटे प्रवासी श्रमिक भी रोजगार के अभाव में वापस लौटने को मजबूर हो गए।


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