प्रमुख चुनाव में अंतिम घड़ी तक चला उठापठक का खेल
किशनगंज। पोठिया प्रमुख का चुनाव इस दफे उथल-पुथल भरा रहा। 29 पंचायत समिति सदस्य में से पहले 1
किशनगंज। पोठिया प्रमुख का चुनाव इस दफे उथल-पुथल भरा रहा। 29 पंचायत समिति सदस्य में से पहले 16 सदस्य बाबुल आलम के पक्ष में थे। लेकिन ऐन वक्त पर चुनाव से दो दिन पूर्व बाबुल आलम के तीन समर्थक दूसरे खेमे में यानी जाकिर हुसैन के पक्ष में चले गए। इस बीच जाकिर हुसैन के एक समर्थक जमील अख्तर, बाबुल आलम के खेमे में पहुंच गए। इस प्रकार बाबुल के समर्थकों की संख्या 14 हो गई। जबकि 15 पंचायत समिति सदस्य विपक्ष में माने जा रहे थे। 14 समिति सदस्य जाकिर हुसैन के खेमे में पूरी तरह फिट थे। एक पंचायत समिति सदस्य ताज नूरी बेगम पर दोनों पक्ष द्वारा डोरा डाला जा रहा था। ताजनूरी पहले साढ़े चार साल तक बाबुल समर्थक के रुप में जानी जाती थी। लेकिन ऐन वक्त पर वह बाबुल आलम को छोड़कर दूसरे खेमे में चली गई। हालांकि ताजनूरी बेगम बाबुल के विरोधी गुट में भी पूरी तरह नहीं गई। जिस कारण शाम, दाम, दंड, भेद की रणनीति दोनों पक्षों ने अपनाया। ताजनूरी बेगम किसी भी पाले में स्पष्ट रूप से नहीं जाकर भूमिगत हो गई। अगर ताजनूरी बेगम पूरी तरह जाकिर हुसैन के खेमे में चली जाती अथवा बाबुल के खेमे में ही रहती तो बाबुल की जीत पहले से ही सुनिश्चित हो जाती। यदि जाकिर हुसैन के खेमे में रहती तो चुनाव का परिणाम कुछ भी हो सकता था।
कहते हैं न इतिहास अपने आपको आप को दोहराता है। ठीक वही हुआ, किस्मत एक बार फिर जाकिर हुसैन को दगा दे गई। 2016 में प्रमुख के चुनाव में भी जाकिर खेमे के पक्ष में 15 पंचायत समिति सदस्य तो विरोधी पाकीजा जमा के पक्ष में 15 पंचायत समिति सदस्य थे। उस वक्त भी दोनों ओर पंचायत समिति सदस्य पूरी तरह आधे-आधे में बंटे हुए थे। लेकिन उस वक्त भी क्रॉस वोटिग के कारण जाकिर हुसैन प्रमुख पद के लिए चुनाव हार गए और पाकीजा जमा प्रमुख के लिए चुनी गई थी। उस समय भी जाकिर खेमे के एक पंचायत समिति सदस्य ने क्रॉस वोटिग कर दिया था। लेकिन इस बार जो क्रॉस वोटिग हुई हुई सीधे-सीधे बाबुल आलम को लाभ दे गया। फलस्वरुप बाबुल आलम क्रॉस वोटिग के बल पर प्रमुख पद पर जीतने में सफल रहे और एक बार फिर जाकिर हुसैन को किस्मत दगा दे गई।