संघर्ष से मिला नाम, रोजगार का दे रही पैगाम
किशनगंज। घर की आर्थिक स्थिति को बदलने की जिद ऐसी कि शादी के तुरंत बाद ही कदम ससुराल की चौखट पार रख
किशनगंज। घर की आर्थिक स्थिति को बदलने की जिद ऐसी कि शादी के तुरंत बाद ही कदम ससुराल की चौखट पार रख दी। न परंपराओं का परवाह न परिवार का बंधन। घर की दहलीज पार कर जो कदम उठे वो कभी रूका नहीं। पहले पढ़ाई फिर स्वरोजगार कर रोल मॉडल बन चुकी बबीता कहती हैं कि मेहनत से ही तकदीर बदलती है।
1995 में शादी के बाद जब ससुराल पहुंची तो उसके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उस समय संयुक्त परिवार था। पति भी खेती बाड़ी कर गुजारा करते थे। ऐसे में घर चलाना भी मुश्किल था। इन हालातों से जुझते हुए दिघलबैंक के हरुवाडांगा निवासी बबीता देवी ने सबसे पहले पढ़ाई करने की ठानी। उसने ब्याज पर पैसे लेकर पहले मैट्रिक पास किया। फिर तुलसियाही इंटर कॉलेज से इंटर करने के बाद उसने ठाकुरगंज कॉलेज से बीए तक की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद फिर घर की दहलीज को लांघकर महिलाओं का ग्रुप बनाकर उसे योजनाओं की जानकारी दे लोन दिलाने का काम शुरु किया। उसके बाद कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़कर पशुपालन व बकरी पालन सहित सब्जी की खेती का प्रशिक्षण लेकर गांव की महिलाओं को प्रेरित करने लगी। अभी कुछ माह पूर्व अगरबती उद्योग लगाने के लिए लोन लेकर काम शुरु किया है। पशुपालन, समाख्या संस्था व सिलाई के जरिए भी वह अपनी किस्मत संवार रही है। वह गांव की महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी हुई है।
2009 में कर्ज लेकर खरीदी सिलाई मशीन
बबीता ने अपने संघर्ष की गाथा को बताते कहा कि पहले कर्ज लेकर बीए तक की पढ़ाई की। फिर उस कर्ज को चुकाने के लिए कर्ज लेकर सिलाई मशीन खरीदी। इसके द्वारा आसपास के गांव की महिलाओं के कपड़े सिलकर किसी तरह घर चलाने लगी। जिससे उन्हें बमुश्किल दो हजार रुपए की आमदनी हो पाती थी। वर्ष 2011 में उन्होंने गांव में ही 25 महिलाओं को लेकर महिला समाख्या नामक ग्रुप बनाई। उसमें शिक्षा के साथ ही स्वास्थ्य व पंचायती राज की योजनाओं के बारे में महिला को जानकारी देते सरकार से मिलनेवाली अनुदान को दिलाने का कम करने लगी। इसमें संस्था द्वारा उन्हें 6 हजार मासिक पगार दिया जाता था। इसी दौरान वर्ष 2013 में गांव हरुवाडांगा पहुंचे कृषि विज्ञान केंद्र के पशु वैज्ञानिक डा. रत्नेश चौधरी ने उसे पशुपालन सहित सब्जी की खेती के लिए प्रेरित किया। कृषि विज्ञान केंद्र से पशुपालन, सब्जी सहित वैक्सिनेशन का प्रशिक्षणसंशोधित : लिया। इसके बाद गांव की महिलाओं व किसानों को प्रशिक्षित कर उसे भी समृद्ध बना रही है। आज अगरबती उद्योग, पशुपालन व संस्था के जरिए उन्हें इतनी कमाई हो जाती है कि घर का खर्चा ढंग से चल रहा है। पति सीताराम महासेठ गाड़ी चलाकर कमाई करते हैं। इनके काम में पति का भी सहयोग मिला। चार बच्चों को भी शिक्षा देने में लगी है।