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नहाय खाय के साथ चार दिवसीय अनुष्ठान आज से

किशनगंज। लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा बिहार का प्रमुख पर्व है। इस पर्व को लेकर लोगों में

By JagranEdited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 12:45 AM (IST)Updated: Sun, 11 Nov 2018 12:45 AM (IST)
नहाय खाय के साथ चार दिवसीय अनुष्ठान आज से
नहाय खाय के साथ चार दिवसीय अनुष्ठान आज से

किशनगंज। लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा बिहार का प्रमुख पर्व है। इस पर्व को लेकर लोगों में उत्साह व खुशियों का माहौल है। रविवार को नहाय खाय के साथ लोक आस्था के इस महापर्व की चार दिवसीय अनुष्ठान शुरू हो जाएगा। नहाय खाय के दिन नदी में स्नान कर व्रती छठी मैया की अराधना करते हैं। सोमवार को छठ व्रती खरना करेंगे। मंगलवार को शाम यानी 13 नवंबर को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अ‌र्घ्य व बुधवार को उदयीमान भगवान भास्कर को अ‌र्घ्य दिया जाएगा। इस वर्ष इस महापर्व के चार दिवसीय अनुष्ठान में शुभ संयोग बन रहें हैं।

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रविवार को नहाय-खाय के दिन छठ व्रती नदी की बहती धारा में स्नान करेंगे। इसके लिए बेलवा स्थित ओदरा घाट और चकला घाट पर लोग स्नान करने के लिए पहुंचेंगे। पंडित उमा कांत बताते हैं कि इस बार नहाय-खाय के दिन सिद्धि योग का संयोग बन रहा है। मंगलवार को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अ‌र्घ्य के दिन अमृत योग और उदयीमान भगवान भास्कर को अ‌र्घ्य पर छत्र योग का संयोग बनने की प्रबल संभावना है। ऐसी मान्यता है कि सूर्य को अ‌र्घ्य देने से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाता है। पंडित उमाकांत बताते हैं कि छठ व्रती को हर संभव कोशिश करनी चाहिए कि पीतल और तांबे के पात्र से अ‌र्घ्य दें। गाय के दूध का अ‌र्घ्य देने वाले श्रद्धालुओं को पीतल के पात्र का उपयोग करना फलदायक होता है। छठ महापर्व मुख्य रूप से शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि का पर्व है। वैदिक मान्यता के अनुसार जो भक्त श्रद्धापूर्वक छठ पर्व करते हैं। उन पर नहाय-खाय से सप्तमी के पारण तक छठी मैया की असीम कृपा रहती है। यह कृपा उन्हें वर्ष भर सभी प्रकार के कष्ट, दुख और विपत्ति से दूर रखता है।

छठ पर्व को लेकर बाजार में छठ व्रतियों द्वारा खरीदारी शुरू हो गई है। मिट्टी के चुल्हे की विशेष मांग है। मान्यता के अनुसार छठ पर्व के लिए बनाए जाने वाले प्रसाद के लिए मिट्टी के चुल्हे शुभ माने गए हैं। बाजार में ऐसे चुल्हे रेलवे कॉलोनी रोड में सुविधा जनक रूप से मिलते हैं। इस समय इस चुल्हें के खरीदारों की संख्या लगातर बढ़ती जा रही है। लेकिन मांग के अनुरूप मिट्टी का चुल्हा लोगों को उपलब्ध नही हो पाता है। जिस वजह से लोग प्रसाद बनाने के लिए नए ईट जोड़ कर भी चुल्हा बना लेते हैं।


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