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मां काली के दरबार में दूर-दूर से आते हैं भक्त

खगड़िया। जिले के खजरैठा पंचायत स्थित नयाटोला- खजरैठा गांव में अवस्थित मां काली मंदिर की महि

By JagranEdited By: Published: Thu, 12 Nov 2020 11:46 PM (IST)Updated: Thu, 12 Nov 2020 11:46 PM (IST)
मां काली के दरबार में दूर-दूर से आते हैं भक्त
मां काली के दरबार में दूर-दूर से आते हैं भक्त

खगड़िया। जिले के खजरैठा पंचायत स्थित नयाटोला- खजरैठा गांव में अवस्थित मां काली मंदिर की महिमा अपार है। यह सिद्ध शक्तिपीठ है। मान्यता है कि मां काली सभी की मुरादें पूर्ण करती हैं। मां काली की आराधना को लेकर यहां भक्तों की भीड़ काली पूजा में जुटती हैं। बड़ी संख्या में मां के भक्तगण दूर दराज से मां के दरबार में पहुंचते हैं। यहां काली पूजा की तैयारी जोरो पर है। मूर्तिकार मां की प्रतिमा को अंतिम रूप दे रहे हैं। एक बार मंदिर गंगा में विलीन हो गया

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मां काली पूजा समिति नयाटोला- खजरैठा के व्यवस्थापक बालकृष्ण चौधरी बताते हैं कि कई सौ वर्ष पूर्व मां काली की पूजा सर्वप्रथम गांव के ही हंसु ठठेरी ने प्रारंभ किया था। कुछ वर्षों तक पूजा अर्चना का सिलसिला चलता रहा। उनकी माली स्थिति को देखते हुए उनके पूर्वजों ने मां काली की सेवा करना प्रारंभ किया जो अब तक बरकरार है। आज बालकृष्ण चौधरी तथा उनके स्वजन प्रतिमा निर्माण कराते हैं और पूजा-अर्चना का खर्च उठाते हैं। यह मंदिर पहले लक्ष्मीपुर में था। जो एक बार गंगा के कटाव में विलीन हो गया। पुन: 1957 में नयाटोला- खजरैठा गांव में मंदिर की स्थापना हुई। ग्रामीण मुकुंद कुमार, बुगुन चौधरी, श्यामानंद चौधरी बताते हैं कि मंदिर निर्माण में ग्रामीणों ने खुलकर सहयोग किया। काली पूजा में चार दिनों तक दर्जन भर पंडितों के द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार से वातावरण भक्तिमय हो जाता है।

काली पूजा में ग्रामीण विद्यापति चौधरी, मिथिलेश चौधरी, विपिन चौधरी, बुगुन चौधरी, नीरो चौधरी, विनय, शंभु चौधरी, बिट्टू चौधरी, मुन्ना चौधरी तथा पूर्व जिप सदस्य पंकज कुमार राय बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। पूजा-अर्चना में कोरोना के नियमों का पालन किया जाएगा। मंदिर के पंडित शंभु झा ने बताया कि अमावस्या को मां काली की प्रतिमा को पिडी पर विराजमान किया जाएगा। दर्शन हेतु मंदिर का पट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाएगा।


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