पेज तीन: तंबू में रह रहे हैं, रूखा-सूखा खाकर दिन काट रहे हैं
खगड़िया। गंगा के जलस्तर में कमी आई है, परंतु बाढ़ पीड़ितों की परेशानी बरकरार है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के लोग अभी भी जैसे-तैसे जीवन गुजर-बसर करने को बाध्य हैं।
खगड़िया। गंगा के जलस्तर में कमी आई है, परंतु बाढ़ पीड़ितों की परेशानी बरकरार है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के लोग अभी भी जैसे-तैसे जीवन गुजर-बसर करने को बाध्य हैं। बाढ़ के कारण घरों से विस्थापित हुए सैकड़ों लोग बांध-तटबंध पर रहने को विवश है। वे गांव जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। कटघरा में सड़क ध्वस्त होने बाद प्रशासन की ओर से मात्र एक नाव दिया गया है, जो नाकाफी है। बाढ़ पीड़ित किसी तरह से आवागमन कर रहे हैं। सैकड़ों लोगों को
दैनिक कामकाज भी पानी में चलकर ही निपटाना पड़ता है। दूसरी ओर
बाढ़ से जूझ रहे लोगों को अब तक सरकारी राहत नहीं मिली है। जिससे आक्रोश है। बौरना की खुर्शिदा कहती हैं- सात दिन से घर खाली कर बांध पर तंबू
में रह रहे हैं। रूखा-सुखा खाकर दिन काट रहे हैं। रात को सांप-बिच्छू का डर सताते रहता है। मो. अकीब ने कहा- एक भी अधिकारी झांकने तक नहीं आए। खेत- खलिहान, घर सभी डूब गए हैं। पशुओं के साथ बांध पर रह रहे हैं। पशुचारा का घनघोर संकट हैं। परंतु, प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठे हुई है।
रामपुर के शमशेर व भोला तांती कहते हैं- पानी का बढ़ना रूका है, परंतु गांव-घर से पानी नहीं निकला है। पानी निकलने में कम से कम एक सप्ताह लग जाएगा। जुबेर ने कहा- इस बाढ़ ने कमर तोड़ दी। फसल डूबी, घर में पानी है। पानी निकलने बाद घर दुरुस्त करना पड़ेगा। पैसे कहां से लाएंगे, समझ में नहीं आता है। प्रशासन हमलोगों को ऊपर वाले के भरोसे छोड़ दिया है। ¨बद टोली की शकुंतला देवी कहती हैं- हमलोगों के जीविकोपार्जन का एकमात्र साधन खेती है। फसल डूब गई। अब आगे का भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है। ======