विकास की सुनहरी किरण से जगमग नहीं हुए हैं बेलदौर के घर-आंगन
खगड़िया । नदी-नाले से घिरे बेलदौर विधानसभा क्षेत्र आज भी विकास की बाट जोह रहा है। तमाम दा
खगड़िया । नदी-नाले से घिरे बेलदौर विधानसभा क्षेत्र आज भी विकास की बाट जोह रहा है। तमाम दावे के बीच यहां विकास की इंद्रधनुषी रंग नहीं दिखाई पड़ रहे हैं।कोसी, काली कोसी और बागमती जब अपना रंग दिखाती है, तो इस विधानसभा क्षेत्र के हजारों-लाखों लोग मां कात्यायनी का नाम लेकर दिन गुजारते हैं। अब
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 को लेकर बिगुल बज चुका है, तो मुद्दे एक बार फिर से सामने हैं। रोजी-रोजगार के अभाव में पलायन नेताजी को परेशान करेंगे।
रोजी-रोटी को लेकर जाते हैं परदेस बेलदौर विधानसभा क्षेत्र में पलायन बड़े पैमाने पर है। उपजाऊ मिट्टी, पानी की प्रचुरता के बावजूद युवा रोजी-रोटी की तलाश में परदेस जाते हैं। कोरोना काल में भी पलायन जारी है।कोरोना का संकट आरंभ होने बाद परदेस से लौटे लोग फिर परदेस जाने को बाध्य हैं। प्राय: हर गांव-टोले से बड़े पैमाने पर पलायन है। अर्थशास्त्री डॉ. अनिल ठाकुर कहते हैं- अगर जल प्रबंधन की समुचित व्यवस्था हो जाए, तो पलायन की बात छोड़िए, यहां दूसरे जगहों से लोग रोजगार को आएंगे। जल आधारित कृषि अभी भी हमारे नेताओं के एजेंडे में शामिल नहीं है।
पीला सोना मिट्टी के भाव बिकते हैं बेलदौर में मक्का की खेती व्यापक पैमाने पर होती है। लेकिन मक्का आधारित उद्योग नहीं होने के कारण किसान औने-पौने दामों पर इस पीला सोना को बेचने को बाध्य हैं। राजेंद्र शर्मा कहते हैं- अगर मक्का आधारित उद्योग लग जाए, मक्का क्रय केंद्र खोले जाएं, तो पलायन रुकेगा। चुनाव के समय नेताजी इसकी बात करेंगे, फिर भूल जाएंगे। रामबरन चौधरी ने बताया कि बेलदौर विधानसभा क्षेत्र में नदियों का जाल है। लेकिन पानी की कीमत नेताजी नहीं जानते हैं।अगर सिचाई की समुचित व्यवस्था हो जाए, तो क्षेत्र की तस्वीर ही बदल जाएगी।